STORYMIRROR

Gopal Yadav

Romance

4  

Gopal Yadav

Romance

इश्क़ का सफर

इश्क़ का सफर

3 mins
260


इश्क़ का पहला पड़ाव- दीदार 

उस रोज तुम्हारी गली से गुजरा,

तुम छत पर कपड़े सूखा रही थी,

बेवजह मेरा मुड़ना हुआ,

तुम भी छत की मुंडेर तक चली आई थी,

आंखों में सूरज की चमक पड़ रही थी 

धुंधला सा चेहरा देखा तुम्हारा,

उस रोज से ही हुँ नशे में,


संगमरमर से तराशी हुई काया,

इश्क़ है तो मुश्किल बदनामी सब जायज है,

रोका किरणों को हाथो की ओट से,

माथे से टपकी पसीने की बून्द,

लुढककर चेहरे पर आई,

अभागी हई जो गालो से छूटकर जमीं पर आई 


फिर आया इश्क़ का दूसरा पड़ाव....मोहब्बत का एहसास 

जब आदमी को पहली बार मोहब्बत होती है तो उसका मिजाज ही

बदल जाता है तो उसे लफ़्ज़ों का रूप दिया है,,,,


पहली नजर में ही दिल के मरीज हो गए,

उस रोज से बेवजह उसकी गली के मुसाफिर हो गए,

तेरी गली के बदमाशो में मशूहर हो गए,

लफ्ज़ लड़खड़ाते थे अब शायर बन गए,


बिन पिये नशा ऐसा चढ़ा तेरा,

हाल कुछ हुआ ऐसा मेरा,

फिर चला दौर ऐसा,


तारीफे तेरी लफ़्ज़ों में बयां होने लगी,

बेवजह हर चीज में खुशी मिलने लगी,

आंखे राह तेरी ताकने लगी,

नैना ख्वाब तेरे संजोने लगे,


कागज की कश्ती लेकर दरिया में उतरने लगे,

आईने में देख इतराने लगे,

बातें दिलों की मुस्कुराहटों में नजर आने लगी,

हवाओं में खुशबू उसकी महकने लगी,

लगा जैसा बिन मांगे सारी दुआएं क़बूल होने लगी,

रूह उसके दीदार से मुस्कुराने लगी !


फिर आया इश्क़ का तीसरा पड़ाव-इजहार-ए-इश्क़ 

मैं रोज उसकी गली से गुजरता था,

पर छत पर रोज वो भी आया करता था,

एक रोज छत पर बुला ही लिया,

आंखों ने इजहार किया,लबो ने जवाब दिया,

दोनों तरफ से प्यार का आगाज हुआ,


फिर हुआ बातो का सिलसिला शुरू,,,


वर्तमान को बर

्बाद कर, भविष्य के सुंदर सपने संजोने लगे,

हर जनम संग रहने का वादा करने लगे,

फ़ोन पर बच्चो के नाम बतियाने लगे,

मर्ज-ए-इश्क़ क्या था पता नही,दवाओं का ज्ञान देने लगे,

इश्क़ परवान चढ़ा,यहाँ तक सोचा जमाने से भीड़ जाएंगे !


फिर आया इश्क़ का चौथा पड़ाव- मिलना जरूरी है !


मुलाकातों का दौर आया,

रूह से रुह का मिलान हुआ,

लब से लब टकराए,

छाती और सीना करीब आये,

श्रृंगार रस की कलाओं का ज्ञान हुआ,

खुशियों से भरे क्षणिक ब्रम्हांड से सामना हुआ!!


फिर आया इश्क़ का पांचवा पड़ाव- प्यार छुपता नही!!

मेरे कॉल मैसेज उसके घरवालों ने देख लिए,

उसके पायल की रुनझुन मेरे घरवाले सुन गए,

फिर क्या था....

गुनाह-ए-इश्क़ की सजा मिलनी थी!

जमाने के आगे हम दोनों ने घुटने टेक दिए,

वो लाचार हो गई और हम बेबस हो गए,

उसकी शादी हो गई,और हम काफिर बन गए,


फिर आया इश्क़ का छटा पड़ाव- तन्हाई 


उसके श्रृंगार में कोई और खोने लगा,

उस मदिरा का प्याला कोई और पीने लगा,

मैं गम उसका सीने से लगा रात भर रोता रहा,

कुछ दिन उसे भी अच्छा नही लगा होगा,

कुछ दिन मैं भी जाम मदिरा सिगरेट पीने लगा,

मैं अपना दुश्मन उसे समझता रहा,

और इस तरह मैं अपने आप को बर्बाद करता रहा 


इश्क़ का अंतिम पड़ाव- याद -ए-शहर


यादों के मकान ढेह गए,पर हम मलबे को लेके बैठे है,

शहर आबाद हो गए,पर हम वीरान कुटिया में बैठे है,

लोग पूरा उजाला घेरे है,और हम चिमनी की लौ में बैठे है,

बात बिगड़ी नही हालात बिगड़े है,

अब प्यासे नही दरियाँ में डूबे है,

भटके है तेरी गलियों में तब जाके ठहरे है,

तेरे ना होने की शिकायत नहीं हर जगह तेरे ही पहरे है,


जब भी तेरी याद आती है

मेरी कलम रो देती है और मैं मुस्कुरा देता हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance