सहरा है या समंदर है
सहरा है या समंदर है
मैं हूँ और ये मेरा ज़ौक़-ए-सफ़र है
अब कहाँ अंदाज़ा-ए-शाम-ओ-सहर है
हैं कहाँ दीग़र, अब ये हाईल-ए-राह
अपनी तो फ़क़त अब, मंज़िल पे नज़र है
आसाँ नहीं परवरिश, इस इल्म-ओ-फ़न की
मांगे ख़ून-ए-जिग़र, ये इश्क़ का शजर है
कहाँ मिलती है हर एक को क़ामिल मोहब्बत,
हर क़तरा-ए-दरया की, कहाँ तक़दीर गुहर है
इस क़दर बदनाम है तू "शौक़" गेती में
तेरे कूचा-ओ-बज़्म से, हर नेक को हजर है
करता हूँ मैं दवा, जहां में अन्दोह-ए-इश्क़ की
आस्तीं में दशना पिन्हाँ, हाथों में नश्तर है
कुछ आशुफ़्ता-हाल, बेनवा मैं जीता हूँ
ग़ाफिल-ए-दहर, पर मुझे सब ख़बर है
एक मुद्दत से हूँ, सर्फ़-ए-इबाद्दत जिसकी ख़ातिर
किधर है ऐ यार, वो तेरा कूचा किधर है
मिट जाएंगे ज़िन्दग़ी, तेरी ख्वाहिश के सदक़े
तुझे मेरी जाँ, मेरी जान से शिकायत ग़र है
क्या हो हमें मयस्सर, कहाँ से ढूंढ लाएं
इसकी नहीं दवा, ये जो दर्द-ए-जिग़र है
राहज़न था जो, कारवाँ मेरा लूटा था जिसने
हाय तीराह-बख़्त, कि वही अब हमसफ़र है
डूबने को चाहे है यक़ गोशा दीद-ए-हज़ीं
मालूम नहीं कि ये सहरा है या समंदर है