अख़बार
अख़बार
भेजा है बाजार में नौकर को ताले के लिए
एक मस्जिद पर जडूँगा एक शिवाले के लिए
हो गई है पढ़ चुके अखबार जैसी जिंदगी
घर के कोने में पड़े हैं रद्दी वाले के लिए
शाह हो या रंक सबका एक सा अहवाल है
तिकड़में करते रहे हैं दो निवाले के लिए
वो अहिंसा का पुजारी मेरी गरदन ले गया
सोचता हूँ और क्या दूँ उसके भाले के लिए
वोट तो दे आये लेकिन मन कसकता ही रहा
क्यों गए थे जाड़े में हम एक साले के लिए