नीड़ का निर्माण कर लो
नीड़ का निर्माण कर लो
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ध्वंस से निर्माण कर लो!
नीड़ का निर्माण कर लो!
जब चले आंधी भयावह, वृष्टि हो पागल गरजती
मन रहे कातर व्यथित काया भयातुर भाव गहती
तुम धरा पर दृष्टि डालो जो गगन के वार सहती
भाव मन में पुष्ट करना जो बड़े हों उच्च, महती
अंजुरी में सृष्टि का सारा बचा उत्साह भर लो!
ध्वंस से निर्माण कर लो!
नीड़ का निर्माण कर लो!
मूढ़ता जब घर जला दे, कष्ट की आंधी चला दे
नफरतों का हिम गिराकर नेह के अंकुर गला दे,
बेबसी असहाय होकर क्रूरता को निज गला दे
तब दबी कुचली जवानी को उबरने की कला दे
मुष्टि बांधो औ डरे बिन, मुष्टि में संसार धर लो
ध्वंस से निर्माण कर लो!
नीड़ का निर्माण कर लो!