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धूप

धूप

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कितना चला हूँ धूप में छालों से पूछ लो 

कुछ मोल पसीने का निवालों से पूछ लो।

 

शर्मो हया से आज नहीं लाल हुए हैं 

क्या धूप की तपिश है ये गालों से पूछ लो।

 

जो धूप में पड़ी हैं अपना हाल कहेंगी

भेड़ों की उतारी हुई खालों से पूछ लो।

 

मेरी बिसात पर थी धूप वो कहाँ गई 

क्या खेल है शतरंज का चालों से पूछ लो।

 

क्यों रुक गई हवा कहाँ गायब हुई है धूप

कुम्हलाई कुमुदनी है क्यों तालों से पूछ लो।

 

क्यों कर न धूप मिल सकी अब तक अवाम को

सत्ता के भेड़ियों से दलालों से पूछ लो।

 

जो दाम चाहती है तुम्हारे शहर की धूप

हम कैसे दे रहे हैं उजालों से पूछ लो।

 

                       


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