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माँ

माँ

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ठंडी हवा के झोकों जैसी माँ कमरे में आती है 

 हाथ फेरती माथे पर वो अपना नेह लुटाती है

 पढ़ना लिखना नहीं जानती लेकिन ज्ञान अनूठा है

 उंगली के पोरों पर गिनकर व्रत त्यौहार बताती है

 मुन्नी के बचपन की चूड़ी,पप्पू की धुंधली तस्वीर

 उसके बक्से में ढूंढो तो यही कीमती थाती है

 उजली धुली ड्रेस पहने जब बच्चा पढ़ने जाता है

 मैली फटी पुरानी साड़ी पहने भी सुख पाती है

 कभी ख़ुशी का किया कलेवा, कभी पिए आंसू के घूंट

 कौन जानता किस मौके पर माँ क्या पीती खाती है

 बेटी की शहनाई के अरमानों का सपना पाले

 अपना पेट काटकर मइया पैसे रोज बचाती है

 डांटे डपटे कभी किसी को ,कभी किसी के ताने सुन

 जीवन के इस रंगमंच पर अपना रोल निभाती है

 आज पास है तो उसके चरणों का पूजन कर लेना

 एक बार जो चली गई तो फिर ना वापस आती है

 


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