माँ
माँ
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सख्ती दिखा के खुद भी बिलखती है माँ बहुत
बच्चों को डांट कर के सिसकती है माँ बहुत
पैसों के वास्ते कभी माँ को ना छोड़ना
बच्चों से दूर हो के कलपती है माँ बहुत
बच्चों का फर्ज है कि सहें माँ के वास्ते
थोड़ी सी वो तड़प कि जो सहती है माँ बहुत
छाती पे हो पहाड़ तो भी बोलती नहीं
नयनोँ के जल प्रवाह में बहती है माँ बहुत
मुरझाये उसके फूल तो मुरझायेगी खुद भी
गुलशन हरा भरा हो तो खिलती है माँ बहुत
तारे की शक्ल में उसे पाता हूँ आज मैं
मुझपर निगाह डाल चमकती है माँ बहुत ||
