मेरा स्कूल
मेरा स्कूल
चाहे जितना शोर मचाऊँ
मन चाहे तो उधम मचाऊँ
दौड़ू, कूदूँ ,रौला गाऊँ
खेलूँ जी भर, मस्ती पाऊँ।
कुछ-कुछ, जोड़-तोड़ में,
पन्नों में कुछ लिखता जाऊँ,
रंग भर दूँ इस दुनिया में,
सपनों को सच करता जाऊँ।
खुद से सारे नियम बनाऊँ,
जब चाहे मैं सुनूँ सभी को,
जब चाहे मैं खाली बैठूँ,
जब तक चाहूँ यूँ ही ताकूँ।
मुझे लगे तो पढ़ लूँ मैं,
खुद से कुछ सवाल बुनूँ,
उनमें ही मैं रमता जाऊँ,
मैं जब चाहूँ तो रुक जाऊँ।
चाहूँ तो मैं बढ़ता जाऊँ,
खूब हाथ के काम करूँ,
माथा–पच्ची से भरपूर रहूँ,
ऐसी ही निराली जगह को
मैं अपना स्कूल कहूँ।