मेरा खज़ाना
मेरा खज़ाना
बरसों बाद आयी हूँ पीहर
चली गयी थी ससुराल
एक दुल्हन बनकर।
माँ, तुमने ही तो
किया था विदा।
सजा सँवार कर
डोली में था दिया बिठा।
अपनी गृहस्थी में मैं
ऐसा रम गयी
जाने कब माँ, तुम्हारी बेटी
बेटी से बहू बन गयी।
मन से तो थी मैं
पास तुम्हारे।
पर बैठ विदेश में
मैं लग न सकी कभी
गले तुम्हारे।
करती थी माँ,
मैं तुमसे रोज़ ही बात।
पर कह न पायी तुमसे कभी
अपने दिल की बात।
पर तुम तो मुझसे ऐसा रूठी
ऐसी तुम हुई नाराज़
कि चली गईं तुम छोड़ के मुझको
दूर बादलों के पार।
बह रहे आँसुओ में
अब मेरे सारे ज़ज़्बात।
रह गयीं मेरे पास
अब तुम्हारी यादें
तुमसे जुड़ी तमाम बातें।
घर के कोने-कोने में
तुम हो बसी।
माँ, है मेरी दुनिया जबसे बसी
मैं ढूंढती थी सबमें तुमको
पर किसी में
वो बात कहाँ तुमसी।
माँ, है जिंदगी का अब
बस इतना सा फ़साना
सबसे अमीर हूँ मैं
तुम हो अब मेरा खज़ाना।