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Mohanjeet Kukreja

Tragedy Others

5.0  

Mohanjeet Kukreja

Tragedy Others

चेतना!

चेतना!

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याद है वो दिन… जब ख़्यालों की दुनिया में

मैं शायद कुछ ज़्यादा ही खो गया था…

कुछ सोचते-सोचते, लगभग बेसुध हो गया था!


फिर जब चेतना लौटी… तो मैंने पाया- 

कुछ लोग लिए जा रहे थे,

काँधों से लगाये - मेरी ही अर्थी को!


जनाज़े के पीछे की भीड़ को मैंने ग़ौर से देखा,

काफी लोग थे - जाने-पहचाने और कुछ अनजाने (!)

कुछ ऐसे चेहरे, जिन्हें मैं पहचानता था;

और कुछ ऐसे, जो शायद मुझे जानते रहे हों!

सब की आँखें नम थीं और ज़ुबाँ पर मेरे अफ़्साने थे -

‘ख़ुदा जन्नत बख़्शे… बहुत ख़ूबियां थीं मरने वाले में!’


मुझे लगा कि मैंने शायद कुछ जल्दबाज़ी की,

इन सबको तो वाक़ई मुझ से प्यार था…

पर दिल ने दलील पेश की - ‘तूने कोई ग़लती नहीं की,

ये मुर्दा-परस्त लोग बस यूँ ही किया करते हैं!’

और मैं… एक बार फिर ‘अचेत’ हो गया था…

मुझे आज भी याद है वह दिन…!!


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