संस्कार और परिवार
संस्कार और परिवार
जीवन की सबसे पहली, पाठशाला होती है परिवार,
जहां हर कोई सीखता है, जीवनादर्श और संस्कार।
थोपने सी यह चीज नहीं, ग्रहण शक्ति इसका आधार,
नहीं जरूरत है कहने की, कह देता है खुद व्यवहार।
हम वह छायाचित्र हैं जिसमें, प्रतिबिंबित होते संस्कार,
हमारे आचरण से जग कुटुंब की, लेता प्राय: छवि है निहार।
निज कुल की प्रतिष्ठा के वाहक हैं, स्मृत रहे सदा ये विचार,
कुल के सुयश की सतत वृद्धि हो, हम सदा करें ऐसा व्यवहार।
जीवनपथ पर ज्यों-ज्यों बढ़ते, कुटुंब का होता वृहत आकार,
खेलकूद जिन संग पढ़ते-बढ़ते हैं, देते-पाते हैं हम कुछ प्यार।
करते काम जिनके संग मिल-जुलकर, और पाते हैं स्नेह अपार,
आर्य परंपरा के पोषक हम जिसमें, अखिल विश्व अपना परिवार।