मानव सो गया है
मानव सो गया है
तुम में क्या मानव सो गया है
इतिहास की तरह पन्नो में खो गया है
या जगाने की हिम्मत नहीं रही तुम में
क्या तुम्हरा सारा धैर्य खो गया है
तुम में क्या मानव सो गया है
जो आफत दिखाई नहीं देती सामने
या आब-ए-आईना से तुम अंधे हो गए
क्या तुम्हारा आफताब ही खो गया है
तुम में क्या मानव सो गया है
जो आब-ए-तल्ख़ की पहचान खो गया है
या फिर खुदा को ही आना होगा धरती पे
क्योकि आदिल इंसान में अब सो गया है...!