ख्वाबों का कारवां
ख्वाबों का कारवां
ये कौन से गहरे धब्बे लिपटे है रात की
स्याही से मेरे अस्तित्व को घेर कर
लो धो लिए
मिश्री रख ली ज़ुबाँ पर
ये देखो देखा मैंने आज एक खिड़की
खोलकर ये हाँ ये मेरे हिस्से का टुकड़ा
आसमान का
वो अहं की बेल से लिपटे पेड़ को
नेस्तनाबूद कर दिया घने जंगल
फैल जाने से पहले
क़ैद है मेरी हथेलियों की संदूक में
अब रिसते सपनों का जहाँ,
ना फिसल पाएगा एक भी अब
ऊँगलियों की दरारों को जोड़ लिया
है सुविचारीत खयालों से
बिखेर दिए बीज असीम हृदय
आँगन में उर्जा के,
देखो खिल रहे है हौले-हौले फूल
असंख्य मेरे हिस्से की पृथ्वी पर
रंग बिरंगी रौनक लिए
उदय हुआ एक पाक रूह का
भीतर कृष्ण की बाँसुरी सा नाद करते।।