खिले खिले मकरंद
खिले खिले मकरंद
मन डूबा है रंग बसंती,
उमगा उमगा प्यार !
यादें झूला दे जाती हैं,
ले जाती उस पार !
दस्तक दे मधुमास खड़ा है,
ऋतु ने खोले बंद !
मतवाली है चली बयारें,
खिले खिले मकरंद !
बीते दिवस नजर के सम्मुख,
चित्र खिंचे हर बार !
पाग पलाश केसरी बांधे,
सरसों चूनर पीत!
फाग ऋतु संग रंग खेलता,
नित्य बढ़ाए प्रीत !
सुमन गंध के गठबंधन से,
झंकृत मन के तार !
हुआ मिलन जो कभी हमारा,
है मुकाम की ओर !
नाजुक इस रिश्ते को बांधा,
लिए नेह की डोर !
नाव तुम्हारे हाथों सौंपी,
थामो अब पतवार !
पकड़ कलाई ले चलना अब,
राह बिछे हों फूल !
साथ निभाए रखना तुम तो,
पा जाएंगे कूल !
नयन झुकें तब लाज समेटे,
बांहे दे गलहार !

