चाह
चाह
जो मिला,
उससे दूर रहा,
जो दूर रहा,
उसके करीब जाता रहा !
जो दूर रहा,
वो पास न आया,
जो पास आया,
उसे खोने का,
डर सताता रहा !
जो पाया,
उसे मिटा दिया,
जो मिट गया,
उसका अदृश्य,
महल बनाता रहा !
जो रहा मैं,
वो तो कोई और था,
जो कोई और था,
खुद को वही बनाता रहा !