पहली प्रीत
पहली प्रीत
कवि : श्री राजशेखर स:एच:वी
ओ सजनी! ओ सजनी!
तुझसे हुई जो पहली प्रीत,
तेरी आवाज़ लगे सुगम संगीत,
इन लबों ने गाये सुरीले प्रेमगीत,
तुम ही हो मेरे मन के मीत |१|
ओ सजना... ओ सजना!
मारे ख़ुशी से चहक रही हूँ,
तेरे प्यार से महक रही हूँ,
इस प्रेम अगन से दहक रही हूँ,
लगे जैसे मैं बहक रही हूँ |२|
ओ सजनी! ओ सजनी!
खूबसूरत है तेरी हर अदा,
तेरी मदहोश मुस्कान पे हुआ मैं फ़िदा ,
करो मुझसे यह पहला वादा ,
के हम-तुम कभी न होंगे जुदा |३|
ओ सजना !... ओ सजना!
मेरे हमदम बनके हुए मेरे हमराज़,
तेरे जैसे हमजोली पे है मुझे नाज़,
हमेशा छेड़ो मोहब्बत का साज़,
तुम ही तो मेरे हमनवाज़ |४|
ओ सजनी! ओ सजनी!
तू ही तो है मेरी चंदा,
कभी न होंगे गुमशुदा,
एक दूजे के रहेंगे सदा,
मज़बूत है यह इरादा |५|
ओ सजना !... ओ सजना!
थामा तुमने जो मेरा हाथ,
लगन से बने तुम मेरे नाथ,
जीयेंगे सदा हम साथ साथ,
आशीष दें हमें प्रभु श्री जगन्नाथ |६|