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Anita Sharma

Classics

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Anita Sharma

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ऋतुराज बसंत

ऋतुराज बसंत

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ऋतुओं में कुसमाकर कहलाये,

हाँ,नवयौवना सी प्रकृति इतराये।

प्रेम और विरह का संयोग लिए,

देखो ऋतुराज बसंत चले आये।


नव सृजन का हो रहा आगाज़,

धरती जैसे श्रृंगार कर उठी आज,

चहुँ ओर पसरी स्वर्णिम रश्मियां,

सूर्य ने पहना खुशियों का ताज,

हर चेहरे में अति मुस्कान है छाये,

देखो ऋतुराज बसंत चले आये।


बहुरंगी सी छटा लायी है बहार,

महके उपवन बहे सुरभित बयार,

गूंजे कोकिल की कहीं कुंजन,

कहीं गूंज उठी भ्रमरों की गुंजन,

प्रस्फुटित हुई सघन अमराई लहराये,

देखो ऋतुराज बसंत चले आये।


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