मानवता को स्थान नहीं
मानवता को स्थान नहीं
क्यों शकुनि आज बना मानव
सीधी चलता कोई चाल नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं…..
बस गूंज चहुँ दिश मैं-मैं की
हम वाला कोई गान नहीं
ये तेरा और वह बस मेरा
सबका तो कहीं भी नाम नहीं
दुर्योधन बने अनेक मगर
क्यों बना कोई भी राम नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं…..
सुर्खी अखबारों की बन कर
क्यों धूल तले दब जाती है
माँ, बेटी, बहनों की इज्जत
बस किस्से क्यों बन जाती है
कहने को तो लक्ष्मी कहते
नारी इज्जत का मान नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं…..
देश हित की दुहाई दे दे कर
निज स्वार्थ ही साधा करते हैं
नए नए पाखंड सजा कर
वो देश को बाँटा करते हैं
सेवक का चोला पहन लिया
परहित का जिनको ज्ञान नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं…..
वो वीर सपूत निराले थे
निज देश पे जो कुर्बान हुए
जिनकी जोशीली दहाड़ों से
हम स्वाधीनता को तैयार हुए
क्यों आज भगत और बोस
सरीखे भारत माँ के लाल नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं…..
क्यों कंस और रावण के ही
बस वंशज अब बढ़ते जाते हैं
चाहे जिस ओर नजर डालो
भक्षक ही नजर क्यों आते है
क्यों भरत, भगीरथ और श्रवण
के वंशों का विस्तार नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं…..
जब शिशु गर्भ में होता था
माँ धर्म कथाएँ पढ़ती थीं
रण वीरों के रण कौशल की
गौरव गाथाएँ पढ़ती थीं
अब सास-बहू के झगड़ों और
मोबाइल से आराम नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं…..
एक बार जो पूछे शिष्या
गुरु सौ बार बताया करते थे
नतमस्तक हो गुरु की आज्ञा
को शिष्या निभाया करते थे
अर्थ प्रधान जगत में अब
किसी रिश्ते में सम्मान नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं…..
कर नव्य खोज महान कईं
यूं तो इतिहास रचा डाले
हर काम सधे बस मिनटों में
साधन सुविधा के बना डाले
मानव में मानवता भर दे
ऐसा कोई विज्ञान नहीं
क्यों मानव के हृदय में अब
मानवता को स्थान नहीं….. ।।