बिखरता परिवार
बिखरता परिवार
हमारी धरती पर एक बड़ा परिवार बसा है,
यह सब उस बनाने वाले की इच्छा है।
पूर्वजों ने धरती को वसुधा बताया और,
फिर वसुधैव कुटुंबकम का नाम बनाया।
यह नाम कहता है कि हम सब एक हैं,
और इंसान के अंदर ढूंढोगे तो सब नेक हैं।
रीति-रिवाज धर्म सब एक साथ चलते हैं,
सभी यहां धरती मां की गोद में पलते हैं।
लोभ, मोह, माया, त्याग इसी के सदस्य हैं,
ना जाने कितने यहां राज और रहस्य हैं।
मेहमान भी यहां भगवान का दर्जा पाते हैं,
सारे भारतीय इसमें सर्वोच्च नाम कमाते हैं।
इस परिवार में कुछ अलगाव का माहौल हैं,
एकता के नाम में भी डामाडौल हैं।
जात पात के नाम पर कत्ल किए जा रहे हैं,
यहाँ अहंकार व नफरत जगह लिए जा रहे हैं।
इस परिवार का एक सदस्य लापता है,
इंसानियत जिसका नाम और पता है।
खोए हुए सदस्यों को घर लाना जरूरी है,
क्योंकि अब परिवार में ही बन रहे दूरी है।
अत्याचार व बलात्कार ने परिवार को छोड़ा है,
दया, मदद, और प्रेम ने भी सब नाता तोड़ा है।
स्वार्थ पनप रहा है और निखरता जा रहा है,
जो बड़ा परिवार था ना अब बिखरता जा रहा है।