Kunda Shamkuwar

Abstract Others

4.5  

Kunda Shamkuwar

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ज़रूरत वाली बात

ज़रूरत वाली बात

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आज न जाने क्यों वह कुछ परेशान सी थी।बात कुछ नही थी लेकिन फिर भी कोई बात दिल को लग रही थी। कहते है कि जब दो लोग साथ होते है तो शेयरिंग और केयरिंग बढ़ती है।लेकिन उसके साथ तो ऐसा कुछ भी नही हो रहा था।बल्कि उसे अपना अकेले रहना ज्यादा ठिक लग रहा था।

इस बात को वह क्या किसी से एक्सप्रेस कर सकती है ? क्या कर भी पायेगी? क्या उसे करना भी चाहिए? लोग क्या कहेंगे? उसकी इमेज का क्या होगा? लोग मुझे बिल्कुल भी एडजस्टमेंट ना करने वाली की तरह पेश करेंगे। न जाने कितने सारे और भी सवाल उसके गोल गोल घूमते रहते थे। उन सवालों को वह खामोश देखती रहती..... जवाब न देकर वे सवाल खामोशी से उसकी तरफ़ मुहँ बाएँ खड़े हो जाते। वह परेशान होकर उन सारे सवालों से भागने की कोशिश करती। लेकिन वे सवाल फिर उसके साथ हो लेते थे। दिन ऐसे ही गुजरते जा रहे थे।

सेलेक्टिवली बातचीत? जब उसका अपना मन बात करना चाहे तब उधर दूसरी ओर चुप्पी....

लेकिन साथ रहने वाला गर ऐसा ही करे तो? क्या यह बातचीत है? यह कोई संभाषण है? जैसे यह जरूरत है, नही?

उसे अपने मन को समझाना होगा और अपनी हद को भी जानना होगा। उसे भी बातचीत में सेलेक्टिव होना होगा।  

आज तक या यूँ कह सकते है अब तक कि जिंदगी में वह ढेर सी बातें करती आयी है लेकिन अब उसे ज़रूरत के हिसाब से बात करना होगा। उसे यह कठिनतम काम लग रहा था...

ज़रुरत के हिसाब से बात करना.... सेलेक्टिवली बात करना...

हाँ, बीइंग राइटर लफ़्ज़ों के साथ वह जो चाहे बाजीगरी करती रहेगी लेकिन ज़रूरत के हिसाब से बात करना क्या वह कभी सीख पाएँगी?

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