Sneha Dhanodkar

Abstract

3.8  

Sneha Dhanodkar

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ये हम दोनों का ससुराल है.

ये हम दोनों का ससुराल है.

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कल ही प्रिया की सगाई अंकुश से हुई थी, वो बहुत खुश थी। अपने नए जीवन के लिये सपने संजोने लगी थी। अंकुश और प्रिया रोज बात करते थे, धीरे धीरे एक दूसरे को जानने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि दोनों की पसंद एक दूसरे से बहुत अलग थी। फिर भी आपस में बात करके एक दूसरे को समझना चाह रहे थे।

अंकुश ने ज़ब बताया की उसकी माँ थोड़े पुराने ख्यालो की है. वो अब भीं बडो के आने पर घूँघट लेती है, साड़ी ही पहनती है। हालांकि वो कॉलेज में विज्ञान की प्राध्यापिका है फिर भी उनकी सोच सबसे जरा अलग है।

वही प्रिया के घर का माहौल एकदम अलग था, उसे और उसके भाई को हर तरह की छूट थीं. माँ को कभी घूंघट में नहीं देखा। और सूट में रहती थीं, सिर्फ त्योहारों पर ही साड़ी पहनती थीं. हालांकि प्रिया को साड़ी पहनना बहुत पसंद था और उसे आती भी थीं पर रोज साड़ी पहनना पड़ेगी और सर पर पल्लू भीं। ये सोच कर थोड़ा घबरा गयी।

ज़ब से अंकुश ने ये सब बताया था प्रिया के सुहाने सपने खत्म हो गए थे। वही आग में घी का काम उसकी सहेलियों ने कर दिया ज़ब उसने बताया की उसकी सास पुराने ख्यालों की है। सब कहने लगे। अब तो तेरी आजादी गयी, जीन्स भूल जा, अब तो तू साड़ी की प्रैक्टिस कर ले वो भी घूंघट लेकर। हो सकता है तुझे नौकरी भी ना करने को मिले। अब तो एकदम सुघड़ गृहिणी बनने की तैयारी कर ले, और भी ना जाने क्या क्या।

प्रिया अब शादी के नाम से डरने लगी थीं। उलटे सीधे विचारों ने उसके दिमाग़ में घर कर लिया था। वो ख़ुशी जो मन में शादी को लेकर थीं वो गायब हो गयी थीं. अब वो खुश की जगह उदास रहने लगी थीं.

अंकुश से बात करना भी उसने कम कर दिया था. अगले हफ्ते अंकुश की बहन की गोद भराई थीं. उसने प्रिया से कह दिया था की उसे आना है और बहुत मस्त दिखना है. पर वो मन से खुश नहीं थीं तो चाहे जितना भी मेकअप करती चेहरा उदास ही दिख रहा था.  उसने लहंगा पहना था। जो अंकुश का पसंदीदा था।

ससुराल में सासु माँ ने सब बड़ों से मिलवाया. प्रिया ने सबके पैर छुए. सबने आशीर्वाद भी दिया और नेक भीं। सब खुश थे पर प्रिया भुझी भुझी सी लग रही थीं.  उसकी उदासी को सासु माँ की पारखी नजरो ने भाप लिया था। उन्होंने उसे कहां की सब चले जाये फिर मेरे कमरे में आना। अब तो प्रिया को और टेंशन हो गयी थीं उसे लगा शायद उसने सर पर पल्ला नहीं लिया इसीलिए सासु माँ नाराज़ हो गयी होंगी।

सब के जाने के बाद प्रिया डरती हुयी उनके कमरे में गयी. दरवाजे के बाहर रुक कर अंदर आने की इजाजत मांगी और फिर सहमी सी अंदर जाकर खड़ी हो गयी।

"सासु माँ बोली बेटा डर क्यूँ रही है क्या हुआ। मैं देख रही हूँ तुम आयी हो तबसे अलग ही ख्यालो में खोयी हुयी हो। कुछ टेंशन है क्या।" उनकी इतनी आत्मीयता देख प्रिया की रुलाई फुट गयी। उसने रोते हुए सारी बाते उन्हें बताई।

उन्होंने प्रिया को चुप कराया. उसे पानी पिलाया फिर मुस्कुरा कर बोली बेटा "ये हम दोनों का ससुराल है तो इसकी इज्जत करना हमारे हाथ में है.  हाँ मैं पुराने ख्यालो की जरूर हूँ पर वो मैं मेरे लिये हूँ तुम्हारे लिये नहीं। मैं शुरू से साड़ी पहनती थीं इसीलिए मुझे आदत हो गयी अब अच्छा नहीं लगता सूट पहनना।और रही बड़ो के सामने पल्लू करने की तो वो भी मेरी आदत है। अब तो जमाना बदल गया है उसके साथ हम और हमारे ख्याल भीं.  पर अगर हमारे छोटे छोटे कामों से घर के बड़े खुश होते है तो अच्छा लगता है। आखिर उनकी ख़ुशी में ही परिवार की ख़ुशी होती है ना।तुम पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं रहेगी. तुम जो चाहो वो पहन सकती हो, जैसे चाहो रह सकती हो। नौकरी भी कर सकती हो. मेरे लिये तुम भी मेरी बेटी के ही समान हो।"

सासु माँ से बात करके प्रिया को अच्छा लगा था उसने माँ को गले लगाया और बोला "धन्यवाद माँ।"

दो हफ्ते बाद शादी करके प्रिया ससुराल आयी। वो पूरे समय साड़ी में ही रही सर पर पल्ला भी रखा, सबके पैर भीं पड़े। सबने उसकी सासु माँ से कहा आपकी बहु बहुत सुशील और संस्कारी है, माँ बहुत खुश थीं। शाम को सबके जाने के बाद अंकुश ने पूछा उसे तो ये सब पसंद नहीं था फिर।प्रिया माँ की और देख कर बोली आखिर ये हम दोनों का ससुराल जो है और दोनों ठहाके लगाकर हंसने लगीं।



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