यादों के साये
यादों के साये
कभी यूं भी तो हो।
कभी यूं भी तो हो।
दरिया का साहिल हो पूरे चांद की रात हो
और तुम आओ....जगजीत सिंह जी की ये गज़ल सुनते सुनते अर्चना अपने अतीत के उस भाग में पहुंची जहां वो थी उसकी दोस्त रश्मि थी और थी उसकी मोहब्बत..प्रतीक।
प्रतीक, हां प्रतीक ही नाम है उसका।
अर्चना: "कॉलेज का पहला दिन और पहले ही दिन लेट हो गए रश्मि चल अब चल जल्दी चल और पांच मिनट लेट हुए तो लेक्चर मिस हो जाएगा।"
रश्मि:" क्या यार अर्चना कॉलेज के पहले दिन कौन पढ़ता है पहले दिन तो बस इंट्रो और थोड़ी बहुत मौज मस्ती ही होती है।"
अर्चना: "चल अब बातें ना बना और जल्दी चल।"
अर्चना और रश्मि जल्दी में फर्स्ट फ्लोर अपने लेक्चर रूम की तरफ बढ़ रही थी कि चलते चलते अर्चना किसी से टकरा गई और गिर पड़ी। रश्मि अपनी ही बातों कि धुन में थोड़ा आगे बढ गई उसे पता भी ना चला कि कब अर्चना गिर गई। अर्चना उठने की कोशिश ही कर रही थी कि एक हाथ उसकी मदद के लिए आगे बढ़ा।उसने जैसे ही हाथ पकड़ा एक अलग ही एहसास हुआ।एक सिहरन सी उसके पूरे बदन में दौड़ गई।
अर्चना: "मदद करने के लिए धन्यवाद।कहती हुई अपने क्लास के लिए चली गई।"
लेक्चर खत्म होने के बाद दोनों कॉलेज पार्क में बैंच पर बैठी हुई आज का लेक्चर डिस्कस कर रही थी।की तभी अर्चना को ऐसा लगा जैसे कोई है जो उन दोनों को देख रहा है।अर्चना ने चारों ओर देखा लेकिन कोई दिखा नहीं।
अर्चना: "घड़ी देखते हुए ,रश्मि चलो अब अगले लेक्चर का टाइम हो गया।"
रश्मि: "आज के लिए इतना ही रहने दे ना यार, एक तो फर्स्ट डे है आज और दूसरा किसी से इंट्रो भी नहीं हुआ।"
अर्चना : "रश्मि चल कॉलेज की लाइब्रेरी चलते है देख कर आते है कहां है।"
रश्मि: "ठीक है चल वैसे भी मेरे मना करने पर कोन सा तू मानेगी।"
अर्चना और रश्मि लायब्रेरी में गई।कुछ सब्जेक्ट से संबंधित किताबें देखी और पढ़ने के लिए लेकर घर के लिए चलने को मुड़ी कि तभी अर्चना का पैर स्लिप हुआ और गिरने को हुई कि तभी वहां किसी ने उसे गिरने से बचा लिया।
अर्चना: "ये वही अहसास सो सुबह भी हुआ ये कैसा अलग ही एहसास है सोचने लगी कि तभी एक आवाज़ आई.."
"एक्सक्यूज मी;आप ठीक हैं।"
अर्चना: "जी..वो.. हम . हां ...हम ठीक हैं "
अर्चना : "जी धन्यवाद आपका।"
आवाज़: "कोई बात नहीं वैसे आप इस कॉलेज में नई आई हुई लग रही है।"
अर्चना: "जी हां हमने फर्स्ट ईयर में कुछ दिन पहले ही एडमिशन लिया है।"
आवाज़: "ठीक , वैसे मेरा नाम प्रतीक है और मै फाइनल ईयर में हूं।"
अर्चना: "जी, हमारा नाम है अर्चना। और ये हमारी दोस्त रश्मि।"
प्रतीक:" तो हम दोस्त आज से ।"
अर्चना : "जी बिल्कुल। रश्मि चलें अब घर के लिए "
रश्मि: "चलो।"बाय प्रतीक कल मिलते है दोनों ने कहा ओर घर के लिए निकल गई।रास्ते में अर्चना ने रश्मि को सुबह वाली घटना भी बताई और जो अहसास हुआ वो भी बताया।
अगले दिन कॉलेज में फिर से तीनों दोस्त मिलें और खूब सारी बातें करी।धीरे धीरे तीनों की बॉन्डिंग अच्छी होती गई।एक दिन रश्मि को अपने पैरेंट्स के साथ किसी रिश्तेदार के यहां शादी अटेंड करने जाना था तो इसीलिए वो कॉलेज नहीं आई।
प्रतीक: "आज रश्मि नहीं आई अर्चना।"
अर्चना: "नहीं आज उसे किसी रिश्तेदार की शादी में जाना था ना इसीलिए।"
प्रतीक : "ओके। तुम्हारा तो लेक्चर होगा ना।"
अर्चना:" हां जी।"
प्रतीक: "ठीक है लेक्चर के बाद मिलते है कैंटीन में।"
अर्चना: "ओके बाय कहते हुए लेक्चर रूम की तरफ बढ़ गई।"
इधर अचानक से मौसम में परिवर्तन होने लगा। काली घटाएं घिर आईं।हवाएं तेज चलने लगी। बारिश कभी भी शुरू हो सकती है।
प्रतीक: "अर्चना आज मौसम खराब है बारिश के पूरे पूरे आसार हैं।आज मै तुम्हे घर छोड़ देता हूं।"
अर्चना: "प्रतीक हम खुद से चले जाएंगे तुम रहने दो।बेकार में परेशान हो जाओगे तुम।और वैसे भी हम दोनों का घर विपरीत डायरेक्शन में है।हमें छोड़ने जाओगे तो तुम खुद भीग जाओगे। जो हम बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि हमारी वज़ह से तुम भीगो और बीमार पड़ो।"
प्रतीक: "ज्यादा फर्मल्टी की जरूरत नहीं है ठीक। हम अच्छे दोस्त है।और वैसे भी इतना खराब मौसम है मैं छोड़ दूंगा तुम्हे घर।"
अर्चना: "ठीक है प्रतीक।"
अर्चना प्रतीक के साथ घर जाने के लिए निकलती है।तभी रास्ते में प्रतीक एक डागी और उसके दो छोटे छोटे बच्चो को भूख से बिलखते देख कर रुक जाता है।भूख की वज़ह से उनसे चला भी ना जा रहा।प्रतीक ने आस पास देखा पास में ही एक छोटी सी शॉप थी।वहां से उसने दो ब्रेड के पैकेट और एक पैकेट मिल्क का लिया।और थोड़ा सा देखने पर पास में ही मिट्टी का टूटा हुआ बर्तन मिला।उसने सारा मिल्क और ब्रेड मिला कर उसमे डाल दिया और डॉगी ओर उसके बच्चों के पास खाने के लिए रख दिया और अर्चना के साथ आगे बढ गया। इसी तरह चलते हुए उसने अर्चना को उसके घर पर छोड़ कर वापस अपने घर के लिए निकल गया।इधर अर्चना आज पूरे टाइम सिर्फ प्रतीक के बारे में सोचती रही।कितना अच्छा है।हमेशा जरूरतमंदो की मदद करता है।
अर्चना का नजरिया प्रतीक के लिए बदलने लगा।उसके हृदय में प्रतीक के लिए अलग ही भावनाएं आने लगी।
प्रतीक: पता नहीं क्या हो जाता है जब भी वो मेरे साथ होती है उससे जो कहना होता है वो कह ही नहीं पाता।कल कितनी देर वो मेरे साथ थी लेकिन नहीं कह पाया।अपने आप से ही बातें कर रहा था प्रतीक उसे पता ही नहीं चला कबसे रश्मि आके उसके पीछे खड़ी है और उसकी सारी बातें सुन रही है।
तभी रश्मि ने कहा - "किसकी बातें हो रहीं हैं अकेले में।"
प्रतीक : घबराकर "किसी की भी नहीं।"
रश्मि : "तुम बताओ या ना बताओ हमें पता है तुम अर्चना को पसंद करते हो है ना।"
प्रतीक: "नहीं... हम.. वो .. ऐसा.. नहीं..।"
रश्मि: "अरे अरे घबराओ नहीं.. अगर पसंद करते हो तो उसे बोलो। क्या पता उसके मन में भी ऐसी ही कुछ बात हो और वो तुम्हारे बोलने का इंतजार कर रही हो ।"
प्रतीक: "रश्मि लेकिन हमें समझ ही नहीं आ रहा कि बोले तो बोले कैसे उसे उसके सामने आते ही समझ ही ना आता कैसे कहूं उससे।"
रश्मि: "लेकिन प्रतीक कहना तो होगा ही ना।"
प्रतीक : "ठीक है मै कोशिश करूंगा।"
लेक्चर के बाद प्रतीक अर्चना से मिलने के लिए कैंटीन की तरफ बढ़ गया।
प्रतीक: "अर्चना,रश्मि चलो आज बाहर चलते हैं मूवी देखने वैसे भी कितना समय हो गया हम लोगों को साथ में मूवी देखे हुए"।रश्मि ने मना कर दिया क्यूंकि वो चाहती थी कि प्रतीक अपने मन की बात अर्चना को बता दे।"
अर्चना ने कहा ठीक है चलें अब। मूवी देखने के बाद दोनों एक रेसटोरेंट में कॉफी के लिए जा रहे थे कि रास्ते में प्रतीक ने देखा कि एक वृद्ध व्यक्ति सड़क क्रॉस करने के लिए बढ रहा है और सामने से एक तेज रफ्तार गाड़ी उसकी तरफ बढ रही थी।प्रतीक उस वृद्ध व्यक्ति को बचाने के लिए आगे बढ़ा और उसे सड़क क्रॉस करा दी। लेकिन लौटते हुए उसका पैर एक पत्थर पर पड़ा और स्लिप हो गया तभी एक गाड़ी के नीचे आ गया और इस दुर्घटना में उसकी जान चली गई ।
अर्चना: "प्रतीक... चीखते हुए एकदम उठी और दौड़ी.।"
रश्मि: "अर्चना कहां जा रही हो दौड़ते हुए.. होश में आओ । दस साल हो गए इस घटना को आज भी तुम भूल नहीं पाई उसे।"
अर्चना: "नहीं रश्मि हम उसे कभी नहीं भूल पाएंगे। वो भले ही प्रत्यक्ष रूप से हमारे साथ नहीं है लेकिन उसका प्रेम, उसकी यादें उसका वो अहसास हमेशा जिंदा रहेगा मुझमें।वो उसका यूं चुपके से देखना, वो उसका पहला एहसास, सब कुछ हमारी यादों में ऐसे संजोया हुआ है जैसे कल की ही बात हो।प्यार सिर्फ पाने या साथ रहने से मुकम्मल नहीं होता।ना वो कभी इजहार कर पाए ना हम फिर भी एहसास हमेशा रहा। इसी एहसास और उसकी यादों के साए तले हम अपना जीवन जी लेंगे।"
जो दूरियों में भी कायम रहें वो इश्क़ ही कुछ और है...।