Mridula Mishra

Tragedy

5.0  

Mridula Mishra

Tragedy

यादें

यादें

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बाहर नीम के नीचे जो चबुतरा बना था वहीं कर्मों बैठी ख्यालों में गुम थी। सामने ही उसकी मौसी का घर था। माता-पिता तो उसे और छोटे भाई को छोड़कर एक दुर्घटना में मारे गये थे कुछ दिन तो चाचा-चाची ने प्यार से रखा पर ज्यादा रख नहीं पाये क्योंकि उनके अपने भी चार-पांच बच्चे थे। वे गरीब ममता स्नेह तो दे देते पर पेट भरने में असमर्थ थे।तब नाना उसे आकर अपने साथ ले गये ।नानी नहीं थी एक विधवा मौसी अपने बेटे के साथ वहीं रहती थी उसने उन दोनों बच्चों को भी अपने सीने से लगा लिया।

समय गुजरता रहा वे बच्चे भी बडे़ होने लगे।नाना की पुरोहिताई काफी बड़े-बड़े घरों में थी अतः कोई परेशानी उन्होंने बच्चों पर नहीं आने दी थी। कर्मो की शादी की बात अब होने लगी थी उम्र तो ज्यादा नहीं थी कर्मो की पर, गाँव के ही एक राजपूत लड़के से उसके प्रेम की चर्चा उभरने लगी थी। बात फैलने के पहले ही उन्होंने कर्मो की शादी बडे़ धूमधाम से अपनी बिरादरी में कर दिया।वह अपनी ससुराल चली गई।

पति उसपर जान लुटाता था पर,कर्मो उससे कटी-कटी रहती थी घर में सब इस बात से परेशान थे पर नई बहू होने के कारण सब चुप थे। रिवाज़ के मुताबिक वह कुछ दिनों के बाद पुनः अपने नाना के घर चली आई।अब वह स्वछंद होकर अपने प्रेमी से मिलने लगी सारी मर्यादाएं भूलकर।

लेकिन ससुराल बालों की जल्दबाजी ने उसे पुनः ससुराल जाने को मजबुर किया।इस बार जल्दी वापसी के कोई आसार नहीं थे।कर्मो को मन मारकर रहना ही पडा़ पति के साथ रहकर उसे दो बच्चे हुये एक बेटा और एक प्यारी सी गुड़िया जैसी बेटी। ससुराल में रहते हुये पाँच साल बीत गये इसी बीच उसके भाई और मौसी के बेटे की शादी का संदेशा आ गया वह पति के साथ मायके पहुंच गयी। दो-चार दिन रहकर उसका पति शादी में आने का वायदा कर चला गया।अब कर्मो फिर अपने प्रेमी से मिलने लगी। उसके प्रेमी की शादी भी हो गई थी पर बीबी उसे पसंद ही नहीं थी। 

एक दिन कर्मो अपने प्रेमी से मिलकर खूब रोई और अब वे अलग नहीं रह सकते यह सोचकर दोनों ने भागने की योजना बनाई। रात हुई कर्मो कराहते हुये उठी मौसी ने पूछा क्या हुआ कर्मो ? मौसी पेट में बहुत दर्द हो रहा है फारिग होकर आती हूं और बाहर निकली उसका प्रेमी बाहर ही खड़ा था दोनों भाग गये। न तो बच्चों के मोह ने कर्मो को रोका और न पत्नी की आरज़ू ने रज्जन सिंह को। जब बच्ची की रुलाई से मौसी की नींद खुली तो उन्होंने कर्मो को पुकारा पर कर्मो तो भाग चुकी थी। इधर रज्जन सिंह भी भाग चुके थे गाँव में बात फैलते देर नहीं लगती। नाना से यह बर्दास्त नहीं हुआ और वे बीमार पडे़ और कुछ दिनों में उनकी मौत हो गई। दोनों नातियों ने काम तो सम्भाल लिया था पर, अब उतनी इज्जत उनकी नहीं थी।

आठ- दस साल के बाद पुनः कर्मो अपने नाना के गांव लौटी और रज्जन सिंह उसे अपने घर ले गये। घर वाले इतने दिनों के बाद दोनों को देखकर बहुत खुश थे। उनके चार-पांच बच्चे भी साथ थे। रंजन सिंह की बीबी ने कर्मो की सेवा करने में अपनी भलाई समझी। इधर पूरे गांव में थू-थू मची थी। कर्मो के बच्चों का सब अपमान करते थे। हालांकि बच्चों की कोई गलती नहीं थी पर गांव वाले समझने को तैयार नहीं थे। रंज्जन सिंह ने पंचायत में यह बात रखी। पंचों ने फैसला दिया कि वे अपने बच्चों को रखकर कर्मो को अपने से अलग कर दें और एक अच्छा सा भोज गांँववालों को दे दें तो उनके बच्चों को राजपूतों में शामिल कर लिया जायेगा। रंज्जन सिंह ने यह मान लिया और कर्मो को चले जाने का फरमान जारी कर दिया।

कर्मों ने बहुत दुहाई दी पर वह टस से मस नहीं हुआ। कर्मों को घर से निकाल दिया गया।

कर्मों को अपने किये की भरपूर सजा मिली थी एक दिन अपने छोटे बच्चों को छोड़कर भागी थी आज बच्चों के लिए रज्जन सिंह ने उसे भगा दिया था।

आज कर्मो की पहले घर की बेटी का ब्याह था। गांव के ब्राह्मणों में खूब उत्साह था। रीति-रिवाज पूरे किये जा रहे थे। माटी कोड़ने की विधि थी। कर्मों बेचैन होकर सबको देख रही थी। कोई तो उसे पहचाने। रज्जन सिंह ने उसे एक कोठरी रहने को दिया था और महीने का राशन आदि भिजवा देते थे। बाकी कोई सम्बंध नहीं रखते थे। गांव के किसी भी घर में उसका आना-जाना बंद था। अतः वह नीम के नीचे चबूतरे पर बैठे रहती थी।

आज उसके बेटी की बारात थी, अगर वह वहां रहती तो कितनी ठसक उसकी होती। कर्मों को अपने पहले पति की भी याद आ रही थी। कितना नेक इंसान था वह, उसे मौसी की भी याद आ रही थी जिसे उसने धोखा दिया था।

अब यादें ही उसके जीने का सहारा थी अच्छी-बुरी दोनों।


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