poonam Godara

Tragedy Crime

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poonam Godara

Tragedy Crime

"यादें या हकीकत"

"यादें या हकीकत"

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हरिसिंह के पोते का आज पहला जन्मदिन था। वो बड़े ही चाव से अपने पोते के लिए रिमोट कंन्ट्रोल कार लेकर आया था और कार चला कर अपने पोते को दिखा रहा था। पास ही चारपाई पर बैठा हरिसिंह का पिता भूपसिंह ये दिल छू लेने वाला दृश्य देखकर अपने अतीत मे खो गया।

उसे याद हो आया वो पल जब दिन भर की मेहनत से थका-हारा वो घर लौटा और उसे पता चला कि वो बाप बनने वाला है। वो खुशी इतनी कीमती थी उसके लिए कि वो उसे अपने होठों से बयां ही नहीं कर पाया और भगवान को शुक्रिया कहकर उसने अपनी पत्नी को गले से लगा लिया।

नौ महीने के लम्बे से इंतज़ार के बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उस नन्ही सी जान को जब उसने गोद मे लिया तो यूँ लगा मानो रब ने दुनिया की सारी ख़ुशियाँ उसकी झोली मे डाल दी।उसने रिवाजों को परे रख अपनी पहली सन्तान का नाम खुद ही रखा-'हरि'

क्यूंकि उसका एक सपना था कि उसका बेटा इतना महान इंसान बने कि दुनिया उसे भगवान की तरह याद करे और इसलिए भूप ने हरि की परवरिश का सारा जिम्मा अपने हाथों मे ले लिया। काम पर जाने के समय को छोड़कर बाकी हर वक्त हरि भूप के पास ही रहता और उसी के साथ सोता था। रात को जब हरि बिस्तर गीला करता तो भूप बिना आलस के झट से उसका बिस्तर बदल देता। कभी जब वो बुखार से तड़पता तो रात भर जाग कर गीली पट्टी किया करता और सुबह होते ही उनींदी आँखों से फिर काम पर निकल पड़ता।

पर इस नयी खुशी के साथ उसपर जिम्मेदारियां भी बढ़ गयी थी। गरीबी में पला-बड़ा भूप अपने बेटे को एक बेहतर कल देना चाहता था और इसलिए अब वो पहले से दुगनी मेहनत करने लगा।

समय गुजरता गया। हरि बड़ा हो गया। भूप की पत्नी ने एक बेटी तारा और एक और बेटे को जन्म दिया। गरीबी से लड़ते हुए भी भूप ने हरि को आठवीं तक पढ़ाया और फिर परिस्थितियों से हारकर उसे गाँव में ही एक जमींदार के यहाँ काम दिलवा दिया। भूप ने तारा की शादी कर दी और एक बेटे को अपने बडे़ भाई को गोद दे दिया क्यूंकि सात लड़कियों के आगमन के बाद भी वो नि:पुत्र ही थे।

हरि अपनी शादी के बाद कमाई के लिए बाहर चला गया और हिस्से पर जमीन लेकर खेती करने लगा।

एक-एक पैसा जोड़कर अपने परिवार के लिए बनाए गए घर मे अब भूप और उसकी पत्नी अकेले रह गए थे। भूप को जब लकवे की बीमारी हो गयी तो उसने हरि से अपने इलाज के लिए कुछ पैसे भेजने की विनती की लेकिन हरि ने तंगी का हवाला देकर बात को टाल दिया। भूप की पत्नी ने गाँव के ही कुछ घरों मे काम करके दो वक्त की रोटी कमाई और कुछ साल भूप की देखभाल की ।

लेकिन कहते है न कि" दुनिया की जरूरतें पूरी करने वाले इन्सान की ख़ुदा को भी जरूरत होती हैं।" तभी तो भूप की पत्नी को ख़ुदा ने वक्त से पहले ही बुला लिया।

भूप को एक तरफ तो गहरा दुख था अपने हमसफर से बिछड़ने का लेकिन एक छोटी सी खुशी भी थी कि चलो जमाने की शर्म से ही सही लेकिन उसकी पत्नी के अंतिम संस्कार में उसके दोनों बेटे मौजूद थे। कुछ दिन रस्मों-रिवाज चले, लोग मिलने आए, किसी ने धीरज बंधाई, किसी ने सांत्वना दी लेकिन फिर सब अपने-अपने काम लग गये। दोनो बेटे काम के लिए वापस चले गये। तारा को भी ससुराल वाले लेने आ गये लेकिन एक बात उसे अन्दर ही अन्दर खाए जा रही थी कि'अपने ही परिवार के ख़ातिर अपने ही परिवार को कैसे छोड़ जाऊँ।

कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने निर्णय लिया कि 'चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन मैं अपने बाबा को इस तरह बेसहारा छोड़कर नहीं जाऊँगी।' 

तारा ने अपने पति से बाबा को अपने साथ ले जाने की बात कही। पति ने भूप के उस छोटे से घर की कीमत के लालच मे तारा की बात पर हामी भर दी और भूप को अपने घर ले आया। तारा ने अपने पिता की इतनी अच्छी देखभाल की कि भूप को किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं हुई लेकिन जैसे ही घर बेचने से मिली रकम खत्म हुई तारा के पति के तेवर बदलने लगे। वो हर रोज भूप की दवाईयों के खर्चे के नाम पर तारा से झगड़ने लगा और धीरे-धीरे इस झगडे़ ने मारपीट का रूप ले लिया। भूप से जब ये सब देखा नहीं गया तो उसने अपने दामाद से कहा कि वो उसे हरि के पास छोड़ आए। तारा ने पहले तो बहुत चाहा कि बाबा को अपने पास रख लूँ लेकिन जब वो किसी भी तरह तारा के घर ठहरने को राजी नहीं हुए तो तारा को अपने मन को मारकर उन्हें हरि के घर जाने की अनुमति देनी पड़ी।

जब भूप हरि के घर आया तो उसने देखा कि हरि उसके यहाँ आने से जरा भी खुश नहीं था और यही बात उसकी बूढ़ी आँखों को नम कर गयी थी।

"ये मर क्यों नहीं जाता, न जाने किस जन्म की दुश्मनी निकाल रहा हैं हमसे" हरि की इस कड़कती हुई आवाज़ ने भूप को यादों की दुनिया से हकीक़त की दुनिया मे पहुँचा दिया।

ये वही समय था जब हरि हर रोज़ भूप को शौच के लिए लेकर जाता था लेकिन आज उसने भूप का हाथ पकड़ने के बजाय उसे चारपाई से गिरा दिया। भूप के लिए भूखा-प्यासा रहना, गाली, थप्पड़ और लात खाना, कड़ी धूप और कंपकंपाती सर्दी सहना कोई नयी बात नहीं थी। लेकिन उसे इस बात का अचंभा था कि आज न तो उसने पानी माँगा और न ही कपड़ों मे शौच किया तो फिर उसे चारपाई से क्यों गिरा दिया ?

वो कुछ समझ पाता उससे पहले ही हरि ने उसे मारना शुरू कर दिया। वो गिड़गिडा़ते हुए कह रहा था कि "हरि मुझे मत मार,

मैं हाथ जोड़ता हूँ तुम्हारे आगे,

ह..ह..हरि भगवान के लिए रहम कर,

हरि छोड़ दे मुझे।

लड़खड़ाती हुई भूप की आवाज़ थम गयी, लेकिन हरि नहीं रूका, जब उसके हाथ थक गये तो उसने पैरों से मारना शुरू कर दिया। जब सूरज धरती को तपा दिया तो हरि ने भूप को घसीटते हुए घर से काफी दूर ले जाकर मार्ग पर धड़ाम से गिरा दिया और एक निर्लज्ज सी हँसी हँसते हुए बोला

अब देखता हूँ बूढे़!

तेरी ये लकवाग्रस्त टाँगें कैसे नहीं चलती।

तू तो क्या अब तो तेरा बाप भी चलेगा।

जेठ की भरी दुपहरी में जब भूप का बदन जलने लगा तो वो कराहता हुआ अपने पेट के बल घिसटने लगा।

पत्थरों से उसका पेट छिल गया और खून बहने लगा।

वो इस हाल मे आधा किलोमीटर चलकर झोपड़ी में आया और और औंधा ही गिर पड़ा।

साँझ हुए भूप की मौत की तलाश मे जब हरि झोपड़ी में आया तो देखा 'भूप अभी भी जिन्दा था'........


 


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