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Poonam Godara

Classics Others

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Poonam Godara

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"एक सवाल"

"एक सवाल"

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बहुत दिनों से

एक सवाल था मन में

पूछना चाहती थी उससे

लेकिन कैसे पुछूं

ये समझ न आया


आज बिन सोचे बस

पूछ ही लिया

क्या तुम

ऊब नहीं जाती

अपनी जिन्द़गी से


उसके चेहरे की मुस्कान से लगा

शायद समझ गयी हैं वो 

सवाल मेरा

फिर भी वो बोली

क्या मतलब ?


मैंने कहा 

जैसे कि

मुझे अच्छा लगता हैं जब

कोई नया काम मैं करती हूँ,

कोई नयी किताब मैं पढ़ती हूँ


एक दिन सपना मेरा

मुकम्मल होगा

ये बात हर सुबह

खुद से मैं कहती हूँ


पर तुम तो हर रोज

एक जैसे कार्यो को दोहराती हो

इस दोहराव में 

क्या कोई सपना भी सजाती हो


क्या कभी मन नहीं करता तुम्हारा कि

आजाद हो जाऊँ

इन चारदीवारियों से

बस कुछ पल ही सही लेकिन


बेफिक्र हो जाऊँ 

घर की फिक्र से

खुद से भी थोडा़ प्यार करूं

खुद की भी थोडी़ देखभाल करूं


इतना कहकर मैं रुक गयी

कुछ पल सोचा उसने

फिर बोली

तुम लोग हमेशा खुश रहो


किसी चीज की कमी न हो तुम्हें कभी

जो तुम चाहते हो

वो मिले तुम्हें

कोई गम न हो तुम्हारी जिन्दगी में

बस यही तो 


सपना हैं मेरा

शायद

जवाब पूरा था

शायद

जवाब अधूरा था

शायद


वो दुनिया की सबसे 

खुशनसीब इन्सान थी

या शायद

अपने बच्चों को खुश रखते-रखते

उसकी ख्वाहिशें 

कहीं गुम हो गयी थी।


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