वसीयतनामा

वसीयतनामा

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आज शाम तक मां को अस्पताल में भर्ती करना ही पड़ेगा ताकि समय पर मां का इलाज शुरू करवाया जा सके। कितना कहा मां को मेरे साथ शहर में चलकर रहने को लेकिन गांव के मकान से बाबूजी की जुड़ी यादें और छोटे के प्रति लगाव के आगे मेरी एक ना चली। 

सोचते-सोचते बड़े भईया भी सुबह-सुबह शहर से गांव पहुंच चुके थे ताकि छोटे को अकेले भागदौड़ ना करनी पड़े।

भईया ने कहा, "अरे, छोटे जब से आया हूं देख रहा हूं तू कुछ ढूंढे जा रहा है।"

"अरे वो मां का डॉक्टर का पर्चा और रिपोर्ट नही मिल रही", छोटे ने जवाब दिया। 

"जरूरी कागज़ात तो तुझे सम्भाल के रखने चाहिए छोटे।"

"भईया, जरूरी कागज़ात तो मैंने पहले ही दिन तिजोरी में सहेज कर रख दिए थे, बस मां का पर्चा और रिपोर्ट ही ना जाने कहाँ रख दी मैंने।"

भईया को याद आया कि छोटे के लिए तो जरूरी कागज़ात बाबूजी जी की वसीयत ही हो सकती है जो उसने मिलते ही अपनी तिजोरी में रख दी थी।


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