अब हमारी बारी है
अब हमारी बारी है
"रमन कैसे करोगे सब कुछ अकेले। बाबूजी को सुबह दवाई, मां को काढ़ा देना। बिट्टू का कॉलेज, तुम्हारा ऑफिस, नाश्ता-खाना कैसे सम्भलेगा सब। इसके अलावा भी घर-बाहर के ढेरों काम होते हैं" रूपा झुंझलाते हुए बोली।
मां ने सारे दिन के लिए एक कामवाली देखी है जो मां-बाबूजी, खाना-पीना सब सम्भाल लेगी। बिट्टू और मैं बाहर के काम देख लेंगे। छ: महीनों की तो बात है।इतने साल तुमने मेरे और घर के लिए बहुत कुछ किया,अब हमारी बारी है। तुम अपने गायिका बनने का सपना पूरा करो। ट्रेन में सामान रखते हुए रमन ने रूपा को चूम कर विदा किया।