Priyanka Gupta

Horror

4.3  

Priyanka Gupta

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वृंदा day-5

वृंदा day-5

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"बहू ,तुम्हारा इस घर में हार्दिक स्वागत है । अपने शुभ क़दमों से इस घर में प्रवेश करो ।",वृंदा की सास ने उसका स्वागत करते हुए कहा । वृंदा ने अपने पैर आगे बढ़ा दिए थे । वृंदा को पैर बढ़ाते हुए महसूस हुआ कि मानो कोई उसके पैर पकड़कर ,क़दमों को आगे बढ़ने से रोक रहा है । वृंदा ने इसे अपने मन का वहम मानकर पैर आगे बढ़ा ही दिए थे । 

वृंदा, अपने पति कार्तिक की दूसरी पत्नी थी । कार्तिक की पहली पत्नी निशा ने आत्महत्या कर ली थी । लोगों का कहना था कि उसका मानसिक संतुलन सही नहीं था । आत्महत्या अक्सर ऐसे लोगों की अंतिम परिणीति होती है । निर्धन माँ -बाप की बेटी वृंदा के लिए जब अच्छे कमाते -खाते कार्तिक का रिश्ता आया तो वृंदा के माँ -बाप ने तुरंत यह रिश्ता स्वीकार कर लिया । बेटी के माँ -बाप वैसे ही बड़े चिंतित रहते हैं और अगर वह गरीब हों तो बेटी के विवाह का प्रश्न उनके जीवन -मरण का प्रश्न बन जाता है । 

वृंदा और कार्तिक का विवाह बड़े साधारण तरीके से सम्पन्न हुआ था । विवाह में कुछ करीबी रिश्तेदार ही शामिल हुए थे । वृंदा की सास भी वृंदा का गृहप्रवेश करवाकर ,अगले दिन ही अपने गांव लौट गयी थी । वृंदा की देवरानी गर्भवती थी और प्रसव कभी भी हो सकता था । बिना गृहिणी के कार्तिक का घर मकान बन गया था और कार्तिक के 3 वर्षीय बेटे अमन की देखभाल का प्रश्न भी था । अतः जैसे ही वृंदा के माँ -बाप ने रिश्ते के लिए हामी भरी ;कार्तिक के माँ -बाप ने बिना वक़्त गँवाये वृंदा और कार्तिक की शादी करवाने का निर्णय ले लिया था । 

नवविवाहित वृंदा पर विवाह के अगले ही दिन से घर -गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी आ गयी थी । वृन्दा अमन और अपने घर की अच्छे से देखभाल करने की कोशिश कर रही थी । वैसे भी सौतेली माँ को पग-पग पर परीक्षाओं से गुजरना होता है । समाज और लोग सौतेली माँ के व्यवहार का छिद्रान्वेषण करने में एक पल भी नहीं गँवाते है । 

वृंदा अपनी नयी दुनिया में सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रही थी ;लेकिन जब से वह इस घर में आयी थी ,उसके साथ बड़ी अजीब -अजीब सी बातें हो रही थी । 


वृंदा अपने कपड़े अलमारी में तह करके रखती ; लेकिन कपड़े कभी वृंदा को डाइनिंग टेबल पर रखे हुए मिलते ;कभी सोफे पर मिलते ;कभी छत पर मिलते । किचेन में से कभी सब्जियाँ गायब हो जाती ।एक दिन तो वृंदा जब नहा रही थी ;नल से पानी की जगह रक्त आने लगा । वृन्दा चिल्लाते हुए बाहर आ गयी थी । 

"बाथरूम के नल में पानी नहीं आ रहा । ",बदहवास सी वृंदा कार्तिक को बस इतना ही कह पायी थी । 

"एक मिनट ,चेक करके आता हूँ । ",ऐसा कहकर कार्तिक अंदर चला गया था ।

"नल में तो पानी आ रहा है । ",कार्तिक अंदर से ही चिल्लाया । 

"अच्छा हुआ ,तुम्हारे कहते ही मोटर नहीं चलाने गया । नहीं तो पानी बेकार ही बहता और बिजली का बिल बढ़ता जो अलग । पता नहीं तुम्हारा ध्यान रहता कहाँ है ?",वृंदा को देखते ही कार्तिक शुरू हो गया था । 

बाथरूम में सब कुछ सामान्य स्थिति में था ;वृंदा कुछ नहीं बोल सकी थी । 

कितनी ही बार वृंदा को छत पर किसी के चलने की आवाज़ आती ;वृंदा बार -बार छत पर चेक करके आती ;लेकिन वहाँ पर कोई भी नहीं होता था । 

वृंदा गैस स्टोव बंद करके आती ;लेकिन वह दोबारा जल जाता । एक बार तो वृंदा ने सब्जी तैयार करके गैस स्टोव बंद कर दिया था ;लेकिन गैस जल जाने के कारण पूरी सब्जी जल गयी । वृंदा ने अमन के लंच बॉक्स में अचार और पराँठा रख दिया था । 

लेकिन कार्तिक उस पर बरस पड़ा था ,"गँवार हो ;कोई काम ठीक से नहीं कर सकती । " भन्नाता हुआ कार्तिक अपने ऑफिस चला गया था । 

वृंदा दुःखी होकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गयी थी । वृंदा की नज़र तब सामने लगी निशा की तस्वीर पर पड़ी तो वृंदा की भय से चीख ही निकल गयी थी । निशा की तस्वीर रो रही थी और उसके आँसू खून के थे । वृंदा ने इसे अपने मन का वहम समझा और अपनी गर्दन झटककर दोबारा तस्वीर की तरफ देखा । अब तस्वीर एकदम सही थी ।

तब ही वृंदा की चेयर हिलने लगी । वृंदा डर से काँप गयी थी ;वृंदा की चेयर अपने आप ही तस्वीर के एकदम सामने पहुँच गयी थी । डर से वृंदा की घिग्घी बँध गयी थी और वृंदा के मुँह से चीख भी नहीं निकल पा रही थी ।उसने चेयर से उठकर भागने की कोशिश की ;लेकिन जैसे वह चेयर से चिपक गयी हो । 

"कौन है यहाँ ?",वृंदा ने जैसे तैसे पूछा । वृंदा पसीने -पसीने हो गयी थी ;उसका दिमाग सुन्न हो गया था । 

तब ही निशा की तस्वीर से रक्त की बूँदें टपकने लगी और फर्श पर गिरकर कुछ आकार लेने लगी । 

"मैंने आत्महत्या नहीं की थी । ",फर्श पर रक्त की बूँदों लिखा हुआ था । 

"निशा दीदी ,आपने आत्महत्या नहीं की थी । अगर आप निशा दीदी ही हो तो सामने आओ । ",वृंदा ने कहा । 

तस्वीर में हलचल सी होने लगी थी ;तस्वीर देखते ही देखते एक मानव आकृति में बदल गयी । इस मानव आकृति की शक्ल निशा जैसी ही थी । 

"हाँ ,वृंदा मैंने आत्महत्या नहीं की थी । ",वह आकृति कहने लगी । वह आकृति अभी भी हवा में ही थी । वैसे भी आत्मा तो हवा ही होती है । 

"फिर ?",आश्चर्य चकित वृंदा ने पूछा । 

"कार्तिक के किसी लड़की से प्रेम संबंध थे । मुझे जैसे ही पता चला ;मैंने कार्तिक को समझाने की कोशिश की ।",निशा की आत्मा ने कहा । 

"किससे थे ?",वृंदा ने पूछा । 

"उस लड़की का अब विवाह हो चुका है । कार्तिक ने उसे भी अँधेरे में रख रखा था ।उसका नाम जानने से अब कोई लाभ नहीं । ",आत्मा ने कहा । 

"समझ गयी । लेकिन आपके साथ क्या हुआ था ?",वृंदा ने कहा । 

"कार्तिक के प्रेम संबंध को लेकर मैं बहुत परेशां थी । उन्हीं दिनों घर के दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी । मैंने दरवाज़ा खोला तो एक साधु थे । वह साधु भिक्षा माँग रहे थे । उन्हें देखते ही मैं दरवाज़ा बंद करने लगी ;तब ही साधु ने कहा कि पुत्री तुम्हारे पति के कारण तुम परेशानी में हो । साधु की बात सुनकर मुझे उन पर विश्वास हो गया था । मैंने उन्हें अपनी पूरी कहानी सुना दी । तब साधु ने मेरी समस्या सुलझाने का विश्वास दिलाया । ",आत्मा ने कहा । 

"फिर आपकी समस्या सुलझी ?",वृंदा ने पूछा । 

"साधु ने कहा कि मैं अगर खुद क तकलीफ दूँगी तो उतनी ही तकलीफ उस लड़की को भी मिलेगी । साधु की बातों में आकर ,मैं भूल ही गयी थी कि दर्द देने से दर्द कभी नहीं मिटता ।फिर भी मैंने अपने सिर पर पत्थर से चोट की और दूसरे दिन चुपचाप उस लड़की के घर पर जाकर देखा तो उसके सिर पर भी चोट थी । मुझे बुखार हुआ तो उसे भी बुखार हुआ । साधु ने कहा कि अगर मैं आत्महत्या की कोशिश करूँगी तो वह लड़की भी करेगी और वह मर जायेगी । सौतिया डाह से मैं इतना बौखलाई हुई थी कि मैंने आत्महत्या की कोशिश की । फंदा बनाने और लटकने में साधु ने ही मेरी मदद की । मैं केवल आत्महत्या का नाटक कर रही थी ;गलती से स्टूल गिर गया और मैं सच्ची में मर गयी । ",आत्मा ने दुःख भरे शब्दों में कहा । 

"निशा दीदी ,इसमें कार्तिक का क्या दोष है ?",वृंदा ने पूछा । 

"उस साधु को कार्तिक ने ही भेजा था । कार्तिक ने ही यह पूरी साज़िश रची थी । मुझे साधु की बातों पर यकीन हो जाए ;इसीलिए कार्तिक ने खुद ने एक दुर्घटना के जरिये उस लड़की के सिर पर भी चोट लगा दी थी । गलती मेरी भी थी ;जिसकी मुझे तो इतनी बड़ी सजा मिल गयी । लेकिन साजिशकर्ता कार्तिक अभी तक स्वतंत्र घूम रहा है । ",निशा की आत्मा ने कहा । 

"दीदी ,आप फ़िक्र मत कीजिये । आपको न्याय मिलेगा और कार्तिक को दंड । ",वृंदा ने कहा । 

वृंदा ने पुलिस को सारी घटना से अवगत करवाया । वृंदा की मदद से वह साधु पकड़ा गया । साधु जो कि स्वयं एक हिस्ट्रीशीटर था और साधु के वेश में रह रहा था ;ने पुलिस के डंडे पड़ते ही सब कुछ उगल दिया । कार्तिक भी पकड़ा गया । निशा की आत्मा न्याय पाते ही मुक्त हो गयी और अपने बेटे की जिम्मेदारी वृंदा के हाथों में देकर प्रसन्नतापूर्वक दूसरी यात्रा पर निकल गयी । 



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