वृद्धाश्रम

वृद्धाश्रम

3 mins
736


"ना बेटा ना, मुझे घर लेकर चलो। यहाँ क्यूँ ले आए ?!!"

"यहां छोड़कर जाओगे तो मैं मर जाऊंगा! तुम तो मुझे कहीं और घुमाने ले जानेवाले थे?!!"

" पापा आप भी कैसी बच्चों जैसी बाते करते हो? भला, यह कोई आपकी घूमने की उम्र है?" इसलिए मालती ने आपके लिए यह वृद्धाश्रम चुना है। यहां आप आराम से रहोगे। आपकी पेंशन की रकम से आपको यहां किसी भी चीज की कोई कमी न होगी ।फिर हम तो हर संडे आपसे मिलने के लिए आएंगे।"


शशधर मुखर्जी, जो एक समय उच्च सरकारी पदाधिकारी थे , जिनकी अनुकंपा पाने के लिए बीसियो लोग उनके सामने हाथ बांधे खड़े रहते थे, आज वे ही बेटे और बहू के आगे हाथ जोड़कर गिरगिरा रहे हैं कि उन्हे वृधाश्रम में ना रखे। डूबते हुए को तीनके के सहारे की भांति मुखर्जी सहब ने अपने बेटे सौमेन का हाथ लपककर पकड़ लिया। यहाँ तक कि सौमेन का हृदय उनकी इस बेबस दशा पर पसीज ने लग गया था। आखिर वे उनके पिता जो थे ।मगर उसकी पत्नी मौपिया ने उसे ज्यादा द्रवित होने का अवसर ना दिया। उसने ड्राईवर को आदेश दिय़ा की गाड़ी चला दे। जिस लड़की को कभी खुद अपने इंजीनियर बेटे के लिए पसंद करके लाये थे, उसके इस रूखे व्यव्हार से मुखर्जी सा'ब एकदम हक्के बक्के रह गये।


प्रतिमा को गुजरे आज मुश्किल से पांच महिने भी ना बीत पाये थे और बहू ने उन्हें वृढाश्रम में लाकर पटक दिया। प्रतिमा को शुरु से ही यह लडकी नापसंद थी। परंतु मौपिया की खुबसूरती और सुशील स्वभाव को देखकर मुखर्जी ने जिद्द करके गरीब स्कूल मास्टर की बेटी को इतने संभ्रांत घर की बहू बनाया था। जब तक प्रतिमा जीवित थी तो पूरे घर को वह ही सम्भाले हुए थी। परंतु उसके आंख मुंदते ही बहू ने आपने रंग दिखना आरम्भ कर दिये।मुखर्जी सहब को अब अपने भोले भले बेटे की चिन्ता सता रही थी। ना जाने बहू उसके साथ क्या क्या करेगी।


आज मुखर्जी साब फिर से पुरानी अलबम खोले बैठे हैं। पुरानी स्मृतियों को उन तस्वीरों के जरिए टटोल रहे हैं। आज बीस साल से यह वृद्धाश्रम ही उनका घर, परिवार सबकुछ रहा है। कौन कहता है कि वृद्धाश्रम बुरे होते हैं। वे तो सगों से भी अपने साबित हुए उनके मामले में। पिछले बीस सालों से इन लोगों ने ही उन्हें संभाला है, उनके सारे नखरे उठाए हैं। यहां के आश्रमिक सारे उनके दोस्त है। सब उन्हीं की तरह अपने नाते रिश्ते छोड़कर आए थे और परिस्थितियों ने उन्हें वापस में दोस्त बना दिया।


आज सुबह से ही आश्रम में बड़ी चहल पहल थी। कुछ नए बोर्डर आने वाले थे।कुछ समय पश्चात् एक वृद्ध की रोने की आवाज सुनकर वे अपने कमरे से बाहर आते हैं।


" बेटा मुझे यहां नहीं रहना, मुझे अपने घर लेकर चलो।" सौमेन अपने बेटे की हाथ पकड़कर उसी तरह गिड़गिड़ा रहा था।

"वह घर अभी आपका कहाँ है? आपने तो उसे हमारे नाम कर दिया है। इसलिए आपके रहने के लिए हमने यह आश्रम चुना है। काफी अच्छी व्यवस्था है यहां, पापा। आपको कोई तकलीफ न होगी ।" सौमेन के दोनों जुड़वा बेटे यतीन और नीतिन ने एकसाथ कहा।

सौमेन ठगे से खड़े अपने दोनों बेटे को जाते हुए देख रहे थे कि तभी कंधे पर कोई जीर्ण शीर्ण सा परिचित स्पर्श पाकर वे पलटकर देखते हैं।

उनके पिताजी, सिनियर मुखर्जी सा'ब बाहें खोले अपने बेटे का स्वागत करने के लिए खड़े थे।


वर्षों पहले जिस पिता को सौमेन वृद्धाश्रम छोड़कर गए थे आज उन्हीं की सेवा में उनका दिन कटता है। पिता अपने प्रिय पुत्र को इस रूप में वापस पाकर बहुत खुश है। और सौमेन खुश है अपने पाप का प्रायश्चित्त कर पाने के लिए!



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy