वक़्त की कदर वक़्त पर
वक़्त की कदर वक़्त पर
वक्त की कदर वक्त पर करना जरूरी है
जी हाँ, दिन में 24 घंटे है, हमारे सबके पास ही है। पर जीवन कितना है किसके पास, पता नहीं। इसलिए वक्त की कदर करना जरूरी है, वह भी वक्त पर।
क्या हुआ, थोड़ा मुश्किल लग रहा है! वक्त की कदर करना तो समझ आता है, पर यह आगे 'वक्त पर' इसका मतलब क्या? इसको समझे एक उदाहरण के साथ
मेरा कोई दोस्त बीमार है मुझे पता है उसकी हालत खराब है। मैं बहुत अच्छे से जानता हूं उसे, समझता भी हूं कि इस वक्त उसे मेरी जरूरत है पर मैं आज जाऊंगा कल जाऊंगा सोचता रहूँ, मिलने ना जाऊँ, फिर अगले सप्ताह चला जाऊं।अब हो सकता है अगले सप्ताह तक उसकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाए, या फिर वह किसी और से मदद ले अपना इलाज करवा ले। और जब मैं अगले सप्ताह जाता हूं तो अगर उसकी और हालत खराब हो गई, उसके बचने की उम्मीद भी ना रही तो मेरा कदर करना, पर वक़्त पर उसके पास ना जाना, उसके लिए कितनी मुश्किलें बढ़ा देगा। अगर उसने किसी और से मदद ले भी लिया तो मेरा उसका दोस्त होने का तो कोई मायने नहीं रह जाता है। मुझे पता होने के बाद भी, मैं उसकी मदद कर सकने में सक्षम होते हुए भी, उसकी मदद ना कर पाऊं, तो ऐसी मित्रता का क्या मायने रह जाता है?
इसलिए कहा भी जाता है कि किसी घायल को वक्त पर अस्पताल पहुंचा देना चाहिए। उसके मरने के बाद उसकी क्रिया कर्म में शामिल होने या फिर मरने के उपरांत उसके परिवार जनों से मिलने की औपचारिकता को महत्व नही रह जाता अगर आपने उस इन्सान को वक़्त नही दिया जब उसे आपकी जरुरत थी।
जब हम वक्त की कदर नहीं करते तो वक्त अपने फैसले खुद सुना देता है और कई बार उसे हमारी किस्मत मान लेते हैं हम, यह नहीं सोचते कि हमने वक्त पर कदर ना की इसलिए यह हुआ है।
जैसे हम वक़्त पर नही गये मिलने तो बाद मे मान लेते है हमारी किसमत में था ही नही उससे अन्तिम मुलाकात होना।
शायद वक्त पर निर्णय लिया होता, तो वह होता जो हम चाहते थे। मतलब मिलने चले जाते तो, जो कदर थी उसके लिये, उसे भी बताते, तो उसे खुशी मिलती और खुद को आज सुकून मिलता कि मै मिलने चला गया, अंतिम बार मिल तो लिया, मैने अपना 100% दिया।
पर अब उसका विपरीत हुआ है और उसे किस्मत में था ऐसा मान लेते हैं। किस्मत को कोसने भी लगते हैं कभी-कभी।
कहावत भी है ना, "घड़ी सबके पास होती है पर वक़्त किसी के पास नही होता"
वैसे ही अगर वक़्त रहते अपने प्यार का इज़हार नही किया और प्यार सच्चा हो तो जिंदगी भर ये अफसोस करते रहना होगा कि एक बार बोल कर देखा होता तो? घड़ी में समय को पिच्छे कर सकते है हम पर जीवन में वक़्त को पिच्छे नहीं ले जा सकते।
एक और उदाहरण देखे
हमे कोई काम मिला है जो 6 माह में पुर्ण करना है। अब ये देखे वक़्त की कितनी कद्र वक़्त पर करते है।
6 महिने है, हमे यकीं है कि 6 महिने में हो जायेगा तो हमने पुरे 6 महिने लगा दिये उसे पुरा करने में। अच्छा है वक़्त पर पुरा तो किया।
या फिर - 6 महिने मिले है हमे, पर हम अपना पुरा जोर लगा देते है और 4 महिने में ही खत्म कर देते है। हमने ना केवल वक़्त की कद्र वक़्त पर की अपितु अपने आप की काबिलियत भी जान ली। और जो 2 महिने हमे मिले उसका उपयोग कुछ और अच्छा करने में लगा सकते है।
या फिर ये भी हो सकता है 6 महिने है ये सोचते रह गये और कब 6 साल बित जाये और हम ये कहते रहे कि अभी तो वक़्त है हमारे पास! याने 6 साल हो गये पर 6 महिने नही हुए अब तक।
इसलिये हमे वक़्त की कदर अपने लिये सबसे ज्यादा करनी चाहिये। वक़्त पर काम खत्म कर हम अपना वक़्त खुद के लिये ही बचा सकते है। वक़्त का इस्तमाल कैसे करना है ये हम पर निर्भर करता है वरना हमारा इस्तमाल करने के लिये तो लोग है ही।
देखे इनमे से आप कैसे है? अब तक ऐसा कुछ आपके साथ हुआ है तो उस से सीखे। और आगे वक्त की कदर वक्त पर कर अपनी किस्मत खुद बनाएं फिर देखें आपका वक्त, आपका आज और आपका आनेवाला कल कितना सुंदर होगा।
Thank you for your time. This is Seeta with her thoughts signing off for now. Will meet you soon with some more interesting articles till then take care.
Stay safe Stay Healthy.
