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Seeta B

Inspirational

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दुनिया का दायरा

दुनिया का दायरा

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दुनिया जैसे हम देखें वैसे है दुनिया। जितनी हमने देखी उतनी है दुनिया। इसलिए हर एक की दुनिया का दायरा उसका अपना तय किया हुआ दायरा, अपनी सोच का, अपने दृष्टिकोण का, अपनी समझ से बनाया हुआ दायरा है।

वैसे तो दुनिया में हर एक का अपना रोल है, चाहे वह इंसान है पशु पक्षी या फिर पेड़ पौधे या फिर हो पंचतत्व। पर आज हम केवल इंसानों की दुनिया की बात कर रहे हैं। क्योंकि हमारे अस्तित्व पर सबसे ज्यादा असर इंसानों का ही होता है।

दुनिया कितनी बड़ी है हमें अंदाजा है पर पता नहीं। हमारी अपनी दुनिया क्या है कितनी है उसका दायरा क्या है, वही समझ आ जाए तो बस काफी है।

आज शायद इस पृथ्वी पर लगभग 700 करोड से ज्यादा लोग हैं। पर हमारे जीवन काल में हम कितनों को जान पाते हैं। अपने परिवार, पड़ोसी, मित्र, रिश्तेदार, फिर काम के सिलसिले में या फिर जाने अनजाने, आते जाते, कुछ पल के लिए मिलने वाले लोग या फिर कुछ लोग जो सुर्खियों में होते हैं, उनके बारे में हम जान लेते हैं। इस तरह बचपन से लेकर हमारे पूरे जीवन काल में हम अंदाजन एक या दो लाख लोगों से ही बात करते हैं या रूबरू होते हैं। 

दुनिया, दुनिया क्या है कैसी है हम तय करते हैं 1 या 2 लाख लोगों से जो हमारे संपर्क में आते हैं। तो दरअसल हमारी दुनिया का दायरा तो असली दुनिया का 1% भी नहीं है। अब अगर वह लोग जो हमारे संपर्क में आते हैं ज्यादातर अच्छे हो तो हमें हमारी दुनिया अच्छी लगती है, या फिर बुरे हैं तो दुनिया बुरी लगती है। पर क्या यह नहीं हो सकता कि दुनिया बुरी हो पर जो इस दुनिया का 1% से भी कम हमारे संपर्क में आए, वह अच्छे थे ?

दुनिया पूरी तरह से बुरी या अच्छी नहीं है यह तो हम जानते हैं, पर कई बार मान नहीं पाते। अपने अनुभव या फिर जैसे अनुभव बार-बार होते हैं हमें फिर दुनिया का वही रंग दिखाई देता है। 

दरअसल जो हमे अच्छे लगते है वे क्या वाकई मे अच्छे होते है या फिर हम उनका एक पहलु मात्र जान कर उन्हे उस श्रेंणी मे डाल देते है? वैसे ही है जिन्हे हम बुरा मान लेते है।

मान लो जो हमारे करीबी है वह सब अच्छे हैं तो हम दुनिया को वैसे ही देखते हैं। जैसे जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी दुनिया का दायरा बढ़ता है। उसमें कई रंग शामिल होते हैं, और फिर हमारा नजरिया दुनिया के प्रति बदलता भी है। हमें जैसे जैसे अनुभव होंगे वैसे वैसे हमारी मानसिकता दुनिया के प्रति बदलती है।

देखा जाए तो यह सही भी है। यह जीवन बहुत छोटा है और दुनिया बहुत बड़ी। यदि कोई कहे कि मैंने पूरी दुनिया देखी है तो क्या यह संभव है? शायद नहीं, क्योंकि कुछ प्रमुख स्थान देख लेने से पूरी दुनिया देख ली ऐसा नहीं मान सकते। वैसे ही केवल कुछ लोगों से मिलने पर, उनके संपर्क में आने से, हमे पूरी दुनिया को वैसे ही नहीं समझना चाहिए। अच्छे लोगों से मिले हैं तब तो कोई बात नहीं, हमें दुनिया अच्छी हीं लगने वाली है। जब हमे ज्यादातर बुरे अनुभाव हो रहे हो तब-

विशेषत: तब हमें यह सोच, यह उम्मीद जगाए रखनी चाहिए कि यह तो 1% से भी कम है। अभी तो पिक्चर बाकी है। तो अच्छी दुनिया हमें देखने जरूर मिलेगी।

बुरे लोग मिल रहे हैं तो उम्मीद के लिए अभी 99% से भी ज्यादा बाकी है। पर हमें अच्छे लोग मिल रहे हैं तो भी संभल कर रहना और आंखें बंद कर विश्वास नहीं करना चाहिए।

यदि बुरे वक्त में उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए, तो अच्छे वक्त में खो कर अपने आप को कमजोर भी नहीं बनाना चाहिए। जिस 1% से भी कम से हमारी दुनिया बनी है, तो भी यह मुमकिन है कि हम सिर्फ उंगलियों पर गिनने जितने अच्छे लोगों से मिले हो फिर भी हमें हमारा जीवन सार्थक लगे। या फिर चंद दो चार लोग ऐसे मिले जिनकी वजह से हमारे जीवन की कायापलट हो जाए, जो आज तक अच्छी लग रही दुनिया अब जीने लायक भी ना लगे।

दरअसल हमारी दुनिया उन अनगिनत लोगों से भी नहीं होती जिन्हें हम हमारे पूरे जीवन काल में मिलते हैं। अपितु उन चंद लोगों से होती है, जिनका प्रभाव हमारे जीवन पर अत्याधिक होता है। तो हमारी दुनिया वैसी ही है जैसा प्रभाव हमने होने दिया, अपने पर उन चंद लोगों का जो हमारी दुनिया का एक हिस्सा मात्र है और हमने उन्हें दुनिया मान लिया।

इसलिए हमारी दुनिया कैसे हो, यह भी हम पर ही निर्भर करता है। अगर अच्छी लग रही है तो दायरा बढ़ा करें, ताकि बाकी लोगों को भी यह दुनिया अच्छी है, पता चले और उम्मीद जागे किसी निराश के मन में। और जो अगर आपको बुरी लगती है, तो कुछ बुराई दूर करें। अपनी दुनिया का दायरा छोटा करने में भी नहीं हिचकिचाय। क्योंकि हमें हमारी दुनिया अच्छी लगे इसका महत्व ज्यादा है, ना कि कितनी बड़ी है उसका। 

इस पर एक छोटी सी घटना गुरुनानक के जीवन से

एक बार गुरुनानक एक गांव में जाते हैं। जहां के लोग आसपास के गांव से चोरी कर अपना जीवन व्यापन करते हैं। गुरु नानक निरंकार है, उन्होंने वहां से जाते समय उन्हें आशीर्वाद दिया बसे रहो,  खुश रहो। दूसरे गांव में गये, जहां के लोग मेहनती और ईमानदार थे। सभी में आपस में प्यार भी था वहां से जाते वक्त आशीर्वाद दिया, बिखर जाओ उजड़ जाओ।

दोनों घटनाओं के बाद, भाई मरदाना जो हमेशा उनके साथ रहते थे, समझ नहीं पाए और पूछ लिया गुरु नानक से कि आपने ऐसा कैसा आशीर्वाद दिया।

जो लोग बुरे थे, उन्हें खुश रहो, बसे रहो। और जो ईमानदार प्यारे लोग थे, उन्हें कहा बिखर जाओ उजड़ जाओ। गुरु नानक हंसकर जवाब देते हैं - "जो बुरे हैं ,अगर वह खुश रहे तो वही रहेंगे, इस तरह उनकी बुराई केवल उन तक सीमित रहेगी। और जो मेहनती प्यारे लोग हैं वह बिखर जाएंगे तो उनकी अच्छाई संसार में फैलेगी, इसलिए उन्हें उजड़ जाने का आशीर्वाद दिया।"

बस इसी तरह हम भी समझे और अपनी दुनिया का दायरा स्वयं तय करें। तो आप की दुनिया कैसी है, कितनी है, जरूर बताएं जानने के लिए उत्सुकता रहेगी।



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