दादा से दादा तक
दादा से दादा तक
दादा से दादा तक! आश्चर्य मत किजिए, दोनों दादा अलग जरूर है, पर अलग होते हुए भी एक ही है मेरे लिए।
दादा से दादा तक, शायद दादा से आप का मतलब हमारे प्यारे गुरु दादा वासवानी से है। हाँ, मेरे लिए वो सर्वस्व है ही पर उनसे मिलने से पहले भी दादा थे मेरे जीवन में , और वो है मेरे पापा, मेरे पिताजी। हम उन्हें दादा ही बोलते थे। मेरे लिए वो दुनिया के सबसे अच्छे पापा थे। हाँ, बिल्कुल वैसे ही जैसे हर बच्चे के लिए।
जब उनका स्वर्गवास हुआ मैं छोटी थी। इतनी समझ थी कि वो अब नहीं रहे, पर इतनी समझ नहीं थी कि मैंने क्या खोया है अपने जीवन में । पर धीरे धीरे वक्त के साथ समझ आने लगा। हलांकि माँ ने इतना प्यार दिया कि वो कमी कभी खलती नहीं थी। उस दादा के साथ जितना वक्त मिला, उसमें उन्होंने हमारा आसमान भर दिया था अपने प्यार और अपने जीवन से।
और फिर माँ थी ही हमारे पास, उतनी ही प्यारी, हर बच्चे की माँ से भी प्यारी, क्यूँकी उसने अपने पराये में कभी भेद नहीं किया। जैसे वक्त के साथ माँ से प्यार बढ़ गया, अपने दादा को भी और अधिक जानने लगी। समझ आ रहा था उनका विशेष व्यक्तित्व और ये भी कि दो इतने प्यारे इंसान एक जगह पर है। भगवान को सृष्टि का संतुलन भी तो रखना होता है। सो कभी भगवान से इसकी शिकायत नहीं की। माँ में ही अपनी दुनिया देखती। अब गर्व होता है कि मैंने ऐसे पवित्र आत्मा के घर जन्म लिया।
फिर कई वर्षों के बाद मेरे जीवन में आये हमारे प्यारे गुरु दादा वासवानी, मेरी माँ के स्वर्गवास के कुछ ही समय बाद। अफसोस उनका साथ भी कम वक्त ही मिला, अगर इस भौतिक जीवन को देखें तो ! अपने दादा कि ही तरह, दादा के साथ भी इतना वक्त ही नहीं मिला कि उनके रहते महसूस कर पाए उनका महत्व इस जीवन में ।
समय बितता गया और उनके होने और ना होने का अंतर खत्म होने लगा, मानो वो मुझमें ही मौजूद हो। शायद इस भौतिक जीवन और आत्मिक शक्ति के फर्क का एहसास होने लगा है।
उनका इस भौतिक जीवन में ना होते हुए भी होने का एहसास जब होने लगा, तो उन्हें और अधिक जानने की लालसा, उनके और पास ले जा रहा है।
जो जो बाते हमारे प्यारे गुरुदेव कहते है, एक अच्छे इंसान, सच्चे इंसान के बारे में , जो गुण वो इस धरा पर हर इंसान में जगाना चाहते है, अब पता चला, वो तो मेरे दादा के पास सदैव से ही थे। मेरे माता पिता, उनमें वो हर एक बात थी जो दादा के उपदेश में हमें शा होती है - सबसे प्यार करो, अंतर की ज्योत जगाओ, विनम्र बनो।
पहले वो मुझे उतने ही अच्छे लगते, जितने हर बच्चे को अपने माता - पिता, पर उनसे सही मिलन करवाया प्यारे गुरुदेव दादा ने।
पिता को तो बहुत पहले खोया था पर गुरुदेव दादा मुझे मिले मेरी माँ के स्वर्गवास के कुछ ही समय बाद। प्यारे गुरुदेव तो सर्व ज्ञानी है, उन्हें पता था , उनका ही स्वरूप मेरी माता में भी है। शायद वो इंतजार कर रहे थे सही वक्त का। मेरे जीवन में जब उन पवित्र आत्मा का भौतिक साथ छूटा तो आगमन हुआ दादा का।
कहते है, गुरु का स्थान परमेश्वर से ऊंचा है क्यूंकि गुरु हमें उस परमेश्वर तक के मार्ग का मार्गदर्शन करवाते है, या फिर हमारे भीतर बसे परमेश्वर से मिलाते है। तो बस मेरे प्यारे दादा ने तो मुझे ना सिर्फ अपने आप से मिलाया अपितु मेरे माता - पिता के असली दर्शन भी करवाए। माँ के साथ जीने का सौभाग्य मिला, पिता की कमी जो जीवन में थी, दादा से मिलने के बाद ना सिर्फ उनके लिए सन्मान मेरे मन में बढ़ गया बल्कि वो अति पूजनीय हो गए मेरे लिए।
मेरे गुरुदेव दादा मेरे लिए सबकुछ है, उनका दिल की हर आवाज से शुकराना कि वो सही वक्त पर जीवन में आए और मेरी नाव की पतवार अपने हाथ में ली। संजोग से बड़े दादा का महायज्ञ 16/17 जनवरी तो मेरे दादा का 22/23 जनवरी। सो अब मेरे लिए16 से 23 जनवरी 'दादा सप्ताह' है।
दादा के बाद जब से दादा को समझने की थोड़ी सी बुद्धि जो दादा ने दी है, अपने पिता दादा की कमी भूल गयी। अब दोनों दादा मेरे लिए एकरूप है और वो भी हर पल मेरे साथ मेरे भीतर।
तो इसलिए था ये दादा से दादा तक!!!
