STORYMIRROR

Seeta B

Others

4  

Seeta B

Others

संस्कार, जीवन की साक्षी

संस्कार, जीवन की साक्षी

4 mins
313

सुकन्या अपने स्वभाव से कोमल और भोली, आज्ञाकारी बिटिया और प्यारी बहन, हर वक़्त तत्पर अपने भाई बहन के लिये कुछ भी करने को। वो सब इतने सहज भाव से करती थी, किसी से कोई उम्मिद किये बिना। शादी एक संयुक्त परिवार में हुयीं, तो हर वक़्त काम में व्यस्त रहती। जैसे वो अच्छी बेटी और बहन थी, अब एक अच्छी बहू और पत्नि का किरदार भी उतनी ही सादगी से बिना किसी उम्मिद के निभा रही थी। आज इस आधुनिक युग में हम शायद सोच कर करे हर काम कि सामने वाला क्या सोचेगा, उसे कैसा लगेगा? और ना जाने क्या क्या..पर सुकन्या, के मन मे ऐसे विचार कभी नही आते, उसका दिल पानी से भी साफ और निर्मल था तो समुंदर से गहरा भी। हर एक को उसमे आसानी से जगह मिल जाती और उतने ही प्यार से। संयुक्त परिवार था सो लोगो का अलग अलग स्वभाव था घर में, कोई कैसा भी व्यवहार करता वो कभी शिकातत नही करती, ना अपने पति से ना कभी अपने माता-पिता से। उसे माता पिता के पास जाने की इजाजत भी कम ही मिलती थी, पर मायके से किसी के आने पर रोक नही थी, सो कभी कभी कोई मिलने आ जाता था।

अब सुकन्या के जीवन में एक और पड़ाव आया, उसके बच्चे। उसका मातृत्व का रुप जानने से पहले, उसके दाम्पत्य जीवन का एक पहलु जान लेते है।जैसे सुकन्या ने बिना व्यक्त किये एक बेटी और बहन होने के अपने किरदार को अच्छे से निभाया,वैसे ही बहू की भुमिका में भी अव्यक्त ही थी। और पत्नी का रुप भी उतना ही अबोल था। शायद ही कभी दोनो ने बैठ भविष्य की कोई योजना बनाई हो या फिर घर की किसी समस्या पर चर्चा। देखा जाये तो इन सब की ना तो कभी कमी महसूस हुयी इस दम्पति को ना ही जरुरत लगी।बिना व्यक्त किये ही रिश्ता इतने अच्छे से निभा रहे थे दोनो। शायद व्यक्त कर दुविधा ही होती। कभी कभी खामोशी शब्दो से ज्यादा एहसास करवाती है पर अगर खामोशी गलतफहमी मे बदल जाये तो बोलना जरुरी है, ऐसे मे अपने को व्यक्त करना बेहतर है। रिश्ते जब दिल के एहसास से जुड़े हो तो मानो जो पूरी हो रही है उतने की ही जरूरत थी। बदलाव की जरुरत तब महसूस होती है जब, अपने पास जो है उसमे कोई कमी महसूस हो या फिर उससे कोई तकलिफ होने लगे।पर यहाँ तो ऐसा कुछ नही था, कोई गलतफहमी भी नही थी। सुकन्या के मन में हमेशा एक सुकून था, चाहे शरीर थक जाता पर मन में कोई शिकायत ना होती। संयुक्त परिवार था सो अन्य बच्चों के साथ इनके भी बच्चे बड़े हो रहे थे। इन दोनो के लिये अपने और पराये बच्चों में कोई अन्तर नही था। सो ये कभी बैठ अपने बच्चो को कोई अलग से परवरिश दे, ऐसा नही होता। सब से एकसा प्यार।परिवार मे अनेक लोग थे, उनका व्यवहार भी भिन भिन था, पर बच्चो पर सबसे ज्यादा अपने माता पिता का ही असर होता है। सुकन्या के बच्चे भी अपने माता-पिता से सिख रहे थे, सबसे एकसा प्यार करना, किसीको अपनी वजह से दुख ना देना। शायद तभी कहा भी जाता है -माता- पिता जो कहते हैं, उससे ज्यादा वो कैसे , क्या करते है, उसका असर होता है बच्चो पर। और फिर वही संस्कार लिये बच्चे बड़े होते है। और संस्कारों की परीक्षा तो होती ही है मुश्किल वक़्त मे, तो सुकन्या को भी समय का चक्र कुछ ऐसा ही वक्त दिखाता है। पति की अचानक मौत और परिवार के लोगो से छल, टूट तो जाती है, पर अब बच्चे बड़े है। दरअसल तो ये परीक्षा है बच्चो की कि वो अपने संस्कारों पर कितने खरे उररते है। संस्कार जो कोई बैठ कर नही डाले थे, पर अपना जीवन जी कर बच्चो के लिये उदाहरण रखा था, बच्चो ने फिर से शुरुवात की। सुकन्या या उसके पति ने कभी ये सोचा नही कि बच्चे हमे देख रहे है तो हमे ऐसा करना चाहिये और ऐसा नही करना चहिये। वो जैसे थे वैसे थे, कोई दिखावा नही था ना कोई आडंबर। ऐसी सादगी और निर्मल मन के लोग मिलना मुश्किल है दुनिया में, फिर दो दो एक साथ!बच्चों ने अपने माता-पिता के सफल जीवन की साक्षी अपने कर्मॉ के रुप में दी। कभी किसी को धोका ना देकर, ना कभी लोभ रखा किसी बात का, बस प्यार ही प्यार अपने आस पास के लोगो को। वो जीवन मे हर मुश्किल का सामना तो हिम्मत से करते ही अपितु अपने लिये हुए निर्णय के परिणाम का बखुबी सामना भी करते। सूझ बुझ और समझदारी जो सुकन्या ने अपने अबोल व्यवहार से दी बच्चो को, दिखती उनमे वो। तो वो माँ, नानी, दादी भी उतनी ही प्यारी और भोली थी। अपने हर रुप मे कुछ ना कहकर बस अपने व्यवहार से दिखाया सबको जीवन कैसा जीना चाहिये, और हर रुप मे साथ कैसा निभाना चाहिये। ऐसी स्त्री किसी भी रुप मे मिले तो जीवन सार्थक हो ही जायेगा।


Rate this content
Log in