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Seeta B

Abstract Drama

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Seeta B

Abstract Drama

खुशी

खुशी

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राजस्थान के गाँव मे एक मध्यम वर्ग परिवार में रहती थी अंजली, पढ़ाई मे होशियार और बहुत ही सुशील लडकी। माता पिता का सर हमेशा गर्व से ऊँचा रहता। घर मे सभी का कहा मानती अपना और अपने छोटे भाई का भी ध्यान रखती थी। छोटा भाई बहुत मस्ती करता था। कभी कभी भाई की वजह से अंजली को ही पिता से डांट पड़ती पर अंजली सुन लेती।

अपनी सहेलियो के बिच भी सबसे प्रिय और स्कुल के अध्यापक भी हमेशा उसे प्रोत्साहित करते रहते। अंजली का दसवीं कक्षा मे अपने जिले मे प्रथम क्रमांक आया। उसके स्कुल वालो ने उसका माता पिता के साथ सम्मान किया और उसके पिता पे जोर डाला उसकी पढाई जारी रखने के लिये।

छोटा गाँव था सो पढ़ाई की ज्यादा सुविधा नहीं थीं। अंजली की कुछ सहेलिया पंजाब जा रही थीं आगे की पढ़ाई करने इसलिये अंजली के पिता भी मान गये। डॉक्टर बनने की इच्छा रखती थी सो पंजाब के एक कॉलेज मे उसका दाखिला करवा दिया।

अंजली जितनी होशियार थीं उतनी ही शर्मीली। वो पहले तो किसी से ज्यादा घुलमिल नहीं पाती बस अपनी कुछ सहेलियो से ही बाते करती थी। पर अब एक प्रोजेक्ट मे अंजली को एक साथी मिला एक पंजाबी लड़का, गौरव। कॉलेज का प्रोजेक्ट था सो करना तो था ही।

प्रोजेक्ट की वजह से अंजली को अब गौरव से बात करनी ही पड़ती। धीरे धीरे दोनों मे अच्छी दोस्ती हो गयी और दोस्ती प्यार मे बदल गयी। दोनो एक ही कॉलेज मे डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे और अंतिम परीक्षा के बाद दोनो को लगा के अब आगे क्या? क्युकी अंजली तो वापस गाँव जाने वाली थीं।

दोनो एक होना चाहते थे एक दुसरे के साथ जीना चाहते थे। तब अंजली ने गौरव से कहा कि वो गाँव आ कर उसके माता पिता से बात कर ले। गौरव अंजली से कहता की आगर तुम्हारे घर वाले ना माने तो? अंजली चाहती थीं गौरव एक बार घर वालो से बात करके तो देखे शायद वो मान जाए।

गौरव, गाँव जा कर ना सुनना पड़ सकता है इसलिये गाँव जाना ही नहीं चाहता था। गौरव ने कभी भी अंजाली को आपने माता पिता से मिलाने की भी कोशिश नहीं की । दोनो अपने अपने घर चले गये। गौरव चाहता था अंजली अपना घर छोड़ कर उसके पास आ जाये पर अंजली ने मना कर दिया। उसने सोचा जो लड़का आज उसके घर वालो का सामना नहीं करना चाहता तो शायद उसका भी साथ नही दे पाएगा।

अंजली को बहुत दुख हुआ पर उसने अपने आप को अपने काम मे व्यस्त रखने के लिये आस पास के गाँव मे जा कर लोगो का इलाज करना शुरु कर दिया। अंजली का भाई अपने पिताजी के काम मे मदत करने लगा। घर मे सभी ठीक से चल रहा था। अंजली के काम से लोग भी खुश थे वो अपना इलाज अब उसी से करवाना पसंद करते।

इस दौरन उसकी मुलाकात एक और डॉक्टर, संदीप से हुयी। उसे भी अंजली का काम करने का तरीका अच्छा लगा, सो दोनो बहुत बार साथ काम करते। अंजली को एहसास होने लगा कि संदीप उसे पसंद करते है पर वो ध्यान नही देती। एक बार संदीप उन्ही के गाँव मे थे इसलिये घर भी आये और बातो बातो मे अंजली के पिता से अंजली के लिये पुछ भी लिया। दोनो साथ में काम कर रहे थे संदीप का व्यहार सभी से अच्छा था तो पिताजी के पूछने पर अंजली ने भी हां बोल दिया।

शादी करके पास ही के गाँव मे दोनो रहने लगे। कभी कभी संदीप के माता पिता भी आ जाते इनके साथ रहने। अंजली के पिता भी दोनो का हमेशा समाचार लेते रहते। काम के सीलसिले मे दोनो को कभी साथ तो कभी अलग अलग गाँव जाना पड़ता।

कुछ महीनो बाद अंजली को एक पत्र मिला। था तो संदीप के नाम, पर संदीप कुछ दिनो के लिये बाहर गया हुआ था, इसलिये अंजली ने पत्र पढ़ लिया। अंजली के पैरों तले से जैसे जमीन ही खिसक गयी। पत्र मे समाचार था की उसकी पत्नी की तबियात बहुत खराब है शायद अंतिम समय हो इसलिये फौरन अपने ससुराल आ जाए। अंजली अपने पिता के साथ उस पते पे गयी तो उसे पता चला संदीप पहले से शादीशुदा हैं और एक छोटा बच्चा भी हैं उनका।

संदीप की पत्नी को कंसर था इसलिये उसने अपनी पत्नी व बच्चे को अपने ससुराल मे छोड़ दिया था। यह बात कभी संदीप के माता पिता ने भी अंजली से नहीं कही थीं।

अंजली के पूछने पर संदीप ने कहा कि उसकी पत्नी अपनी बीमारी से लड़ रही थीं कुछ समय की ही महेमान थीं और बच्चा भी अपने नाना से साथ ही रहने वाला है इसलिये नहीं बताया।

अंजली, अब तक जिसे अच्छा इंसान समझ रही थी उसने तो इंसानियत की सारी हदें ही पार कर दी थी। एक डॉक्टर होते हुए संदीप ने अपनी पत्नी को मरने के लिये छोड़ दिया था। और उस नन्हे बच्चे का क्या कसुर था उसका भी नही सोचा।

अंजली टूट के बिखर गयी थीं वो किसी से बात नहीं करती, किसी से नहीं मिलती। पिताजी उसे बहुत समझाते पर अंजली अंदर से टूट चुकी थी। फिर जब अंजली के भाई का लड़का हुआ और उस नन्हे को उसने देखा उस मासुम ने शायद उसका दर्द कुछ भुला दिया। अंजली अब दिन भर उसके साथ खेलने लगी। धीरे धीरे पिताजी के कहने पर वो गाँव के लोगो का फिर इलाज करने लगी।

फिर एक बार अंजली ने अपने जीवन की डोर अपने हाथों में ले ली। पर अब वो सिर्फ काम और काम करती रहती। एक समाज सेवक उसके काम से खुश था गावँ मे भी बहुत अच्छे काम किये उसने, उसने अंजली से शादी करनी चाही। वो अंजली के पिताजी से भी मिला। पिताजी ने जब शादी की बात की अंजली से तो अंजली ने मना करते हुए कहा कि क्या जिंदगी में शादी के अलावा कुछ नहीं है? क्या एक औरत की पहचान सिर्फ शादी से ही होती है? क्या औरत का अकेले कोई अस्तित्त्व नहीं है? मुझे नही लगता कि अब मुझे किसी के सहारे की जरुरत है। मैं अपने काम से और अपने काम में खुश हूँ। अगर आपको मेरे यहाँ रहने से कोई परेशानी हैं तो मैं कहीं और चली जाती हूँ। 

पिताजी को वैसे भी कभी अपनी बेटी से कोई शिकायत नही थी और ना ही किसी और को घर में, पर अब पिताजी को अंजली की बातों का तर्क भी समझ आ रहा था सो उन्होनें भी समझ लिया कि आज की महिला आत्मनिर्भर हैं। वो ना सिर्फ खुद को समझ सकती है अपितु इस दुनिया में हर पारिस्थिति का सामना भी अच्छे से कर सकती है। इसके बाद अंजली अपने काम में व्यस्त रहती और जब वक़्त मिलता अपने पिता और परिवार के साथ भी वक़्त बिताती।


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