वोट
वोट


वह अकेला किसी तरह वोट डालकर वापस आ रहा था।
सारे साधन बंद थे पर अब तो चुनाव केंद्र दो किलोमीटर के अंदर बनने से उसे आराम हो गया था सो धीरे धीरे घर वापस पहुँच ही गया।
उसका बस चलता तो हर छह महीने में कभी पंचायती तो कभी एम।एल।ए। तो कभी सांसदी का चुनाव करवा देता।
चुनाव के दिन मिले सौ सौ के नोट लोकतंत्र में लोक का कुछ भला कर पाते थे शायद।