स्वार्थी
स्वार्थी


वह दर्द को बर्दाश्त कर सकता था पर कोई उसकी नीयत पर शक करे, उसे बर्दाश्त न था।
उसने तो अपनी जवानी...अपनी दौलत...अपने सपने...सब अपनों पर लुटा दिया था।
आज उमर के आख़िरी पड़ाव पर उस पर सबको अपने नियंत्रण में रखने की चाहत का आरोप लगा था.
उसने गुस्से में अपनी सारी सम्पत्ति मंदिर को दान में दे दिया था।
अब सब बेदखल थे, अब उनकी बेचैनी में उसे मज़ा आ रहा था। अब वह स्वार्थी बन गया था।