सत्येन्द्र कुमार सिंह, एक जाने माने लेखक, कवि, करियर काउंसलर व ट्रेनर है. उनकी तीन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं. शीघ्र ही पांच लघुकथा संग्रह प्रकाशित होने वाली हैं.
न भगाता तो शायद उसके बच्चे भूख से मर जाते। न भगाता तो शायद उसके बच्चे भूख से मर जाते।
नेहा के चेहरे पर ख़ुशी और ग़म के मिश्रित भाव थे। नेहा के चेहरे पर ख़ुशी और ग़म के मिश्रित भाव थे।
अब उनकी बेचैनी में उसे मज़ा आ रहा था। अब वह स्वार्थी बन गया था। अब उनकी बेचैनी में उसे मज़ा आ रहा था। अब वह स्वार्थी बन गया था।
पुनिया को पढ़ने का बहुत मन था। पुनिया को पढ़ने का बहुत मन था।
दाने खाते हुए वे भी सेल्फी के मार्फ़त इंटरनेशनल सेलेब्रिटी जो बन रहे थे। दाने खाते हुए वे भी सेल्फी के मार्फ़त इंटरनेशनल सेलेब्रिटी जो बन रहे थे।
देवर के कमरे के बाहर छाप लगवा दिया देवर के कमरे के बाहर छाप लगवा दिया
“समाज सेवा करने के लिए पेट में अन्न भी होना चाहिए...तन्खवाह के बगैर कैसे...?” – “समाज सेवा करने के लिए पेट में अन्न भी होना चाहिए...तन्खवाह के बगैर कैसे...?” –
सबसे ज्यादा कीमत तो घर जमाई की थी। सबसे ज्यादा कीमत तो घर जमाई की थी।
चुनाव के दिन मिले सौ सौ के नोट लोकतंत्र में लोक का कुछ भला कर पाते थे शायद। चुनाव के दिन मिले सौ सौ के नोट लोकतंत्र में लोक का कुछ भला कर पाते थे शायद।
कलुई को अब यकीन हो गया था कि सुहानी वितृष्णा से ज्यादा भरी थी। कलुई को अब यकीन हो गया था कि सुहानी वितृष्णा से ज्यादा भरी थी।