Meena Singh "Meen"

Romance

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Meena Singh "Meen"

Romance

वो तुम हो (भाग-21)

वो तुम हो (भाग-21)

20 mins
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प्यारे रीडर्स,

अभी तक आपने पढ़ा कि जयपुर से वापसी से पहले स्पोर्ट्स टीचर उन्हें पार्टी के बारे में बताते हैं| सभी तैयार होकर उस पार्टी में पहुँचते हैं| पार्टी में मयंक अंजलि के लिए एक कविता सुनाता है, जिसे सुनकर अंजलि बहुत भावुक हो जाती है| अंजलि मयंक से कहती है मुझे तुमसे कुछ बात करनी है| मयंक और अंजलि पार्टी से बाहर चले जाते हैं| आइये अब आगे पढ़ते हैं:-


अंजलि और मयंक पार्टी से बाहर जाते हैं| आयुष उन्हें जाते हुए देख रहा था| आयुष के मन में कुछ सवाल उठ रहे थे जिनके जवाब सिर्फ अंजलि दे सकती थी| तभी दिव्या आकर आयुष के पास खड़ी हुई और उससे कहने लगी मुझे तुमसे कुछ कहना है| हाँ बोलो मैं सुन रहा हूँ, आयुष ने उसे थोड़ा इगनोर करते हुए कहा| दिव्या ने कहा चलो कहीं चलकर बैठते हैं| आयुष ने कहा नहीं यहीं ठीक है, तुम कहो मैं सुन रहा हूँ| आयुष आई एम् सॉरी!, दिव्या ने आयुष की तरफ देखते हुए कहा|

आयुष जानता था लेकिन उसने कहा सॉरी किसलिए? दिव्या ने कहा उस दिन वो बस में मैं अंजलि की वजह से तुमसे नाराज हो गयी थी| मैं अपनी उस हरकत के लिए शर्मिंदा हूँ| आयुष ने कहा ओह्ह और वो क्यों? क्या तुम्हें मेरे और अंजलि के रिश्ते से अब कोई ऐतराज़ नहीं है? दिव्या ने आयुष का हाथ पकड़ते हुए कहा प्लीज माफ़ कर दो मुझे| आइन्दा कभी ऐसा नहीं होगा, आई प्रॉमिस! अंजलि की बात सुनकर आयुष मुस्कुराया और कहने लगा अच्छा बस-बस ज्यादा सॉरी की जरुरत नहीं| तो तुमने मुझे माफ़ कर दिया, दिव्या ने चहकते हुए कहा| आयुष ने कहा माफ़ तो नहीं किया| लेकिन अगर तुम मुझे एक प्यारी-सी किस......कर दो तो मैं शायद माफ़ कर सकता हूँ| दिव्या ने इस बात पर आयुष को घूरना शुरू कर दिया| आयुष ने शरारती लहजे में कहा क्या हुआ लगता है तुम्हें माफ़ी नहीं चाहिए?


उधर दूसरी तरफ पार्टी से बाहर एक बेंच पर काफी देर से चुपचाप बैठी अंजलि ने कहा मयंक क्या तुम्हें आयुष और मेरी दोस्ती से कोई ऐतराज़ है? मयंक ने सुना तो तुरंत ही कहा नहीं ऐसा तो कुछ नहीं है| अंजलि ने कहा क्या तुम सच कह रहे हो? हाँ अंजलि मुझे इससे कोई प्रॉब्लम नहीं है| अंजलि ने एक गहरी साँस ली, जैसे कि उसे मयंक से यही सुनना था| उसे यकीन हो चला था कि मयंक उसे अच्छे से समझता है| तभी मयंक ने कहा अंजलि अगर आयुष और मुझमें से किसी एक चुनना पड़े तो तुम किसे चुनोगी? अंजलि के लिए ये सवाल एक अग्नि-परीक्षा की तरह था| अंजलि ने कहा तुम क्या सुनना चाहते हो मयंक? सिर्फ सच .............मयंक ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा| अंजली ने कहा इसमें कोई शक नहीं है कि दोनों में से मैं तुम्हें चुनूँगी लेकिन शर्त ये होगी कि मेरे लिए रिश्ता वही कीमती होगा जिसे मुझ पर पूरा विश्वास होगा| जिस दिन किसी रिश्ते का विश्वास डगमगाया, उसी दिन उस रिश्ते की समाप्ति हो जाएगी| मयंक ने सुना और समझ गया कि ये एक तरह की चेतावनी है|


अंजलि ने देखा मयंक कहीं खोया हुआ है? उसने मयंक के थोड़ा करीब होते हुए कहा क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास है? मयंक उसी तरह खामोश बैठा रहा| अंजलि को ये अच्छा नहीं लगा तो वो वहाँ से उठकर जाने लगी| अचानक से मयंक ने उसका हाथ पकड़ा और कहा अंजलि मेरा जवाब नहीं सुनोगी? अंजलि ने पलट कर देखा, मयंक की आँखों में आँसू थे| अंजलि उसकी आँखों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी| तभी मयंक ने अंजलि के हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा अंजलि खुद से ज्यादा तुम पर यकीन करता हूँ| अंजलि ने ये सुना तो उसके दिल को सुकून आ गया था| मयंक ने अपनी दोनों बाँहें फैलाते हुए कहा अंजलि मैं तुम्हारे बिना अब साँस भी नहीं ले पाता हूँ| तुम मुझे कभी अकेला मत छोड़ना| अगले ही पल अंजलि मयंक के सीने से लगी हुई थी| मैं तुम्हें छोड़कर कभी कहीं नहीं जाऊँगी, वादा करती हूँ|


खुले आसमान के नीचे दो दिल एक-दूसरे के लिए धड़क रहे थे| बहुत ही खुशनुमा एहसास था जिसे शब्द देना शायद आसान नहीं होगा| लेकिन कोशिश जरुर करुँगी|


❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️

तुम मुझे मिले इक खुशनुमा एहसास बनकर,

ख्वाब में था कभी जो मिल गया साँच बनकर,

तुम मेरे हो चुके हो, मुझे यकीन कैसे आये,

हर बार मिल रहे हो इक नया राज़ बनकर|

सोचता है दिल ये अक्सर तुम वही हो जिसे,

चाहा है मेरे दिल ने प्यार का आगाज़ कहकर,

तुम हो करीब मेरे.... फिर होश कैसे कर लूँ,

दिल को लुभा रहे हो इक नशा ख़ास बनकर|

कुछ लफ्ज़ ढल रहे हैं वादों का रूप बनकर,

कुछ एहसास जुड़ते हैं रूहानी अक्स बनकर,

मैं साँस ले रहा हूँ, तुम्हें महसूस कर रहा हूँ,

तुम साँसों में घुल रहे हो इक साज़ नया बनकर|

खुद को मैं खो रहा हूँ, तुम्हारा इश्क बनकर,

तुम भी खुद को सौंप दो, मेरा वजूद बनकर,

सहल ये इश्क होगा नहीं, देखो ये याद रखना,

शायद हर लम्हा होगा इक इम्तिहान बनकर|

इश्क हीर-राँझे सा, कभी शीरी-फरहाद बनकर,

डूबना भी पड़ता है कभी सोनी-महिवाल बनकर,

भटकना पड़ता है प्यार में कभी लैला-मजनू जैसे,

लिखी जाती हैं मोहब्बतें इक हँसी याद बनकर|

❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️

अंजलि और मयंक इक-दूजे से कुछ ऐसे वादे कर रहे थे जो मोहब्बत में अक्सर प्रेमी-जोड़े किया करते हैं लेकिन ऐसे वादे निभाने बहुत मुश्किल होते हैं| जयपुर की वो रात अंजलि और मयंक को और करीब ले आई थी| आयुष और दिव्या भी एक साथ बहुत खुश थे| उन्होंने वापिस जाकर शादी करने का फैसला ले लिया था| राघव भी रागिनी को अपनी माँ से मिलवाने का मन बना चुका था और अपना नितिन वापिस जाकर रिया को अपने दिल की बात कहने का प्लान कर रहा था| शुभम बेचारा यही सोच रहा था कि मैं तो सिंगल ही मरूँगा| नाज़िया अपने दोस्तों के साथ बीते सभी हसीन पलों को कैमरे में लगातार कैद कर रही थी क्योंकि शायद वापिस जाकर ये यादें ही उसके साथ रहने वाली थी|


अगली सुबह सभी वापिस दिल्ली पहुँच चुके थे| इस बीच मोहब्बतें बढ़ चुकी थी| हर किसी की ज़िन्दगी बदलने वाली थी| लेकिन सबसे ज्यादा कुछ बदलने वाला था तो वो था अंजलि का रिश्ता, आयुष के साथ| वापिस पहुँच कर अंजलि और आयुष के बीच एक अजीब-सी दूरी बन चुकी थी| जिसकी वजह कोई नहीं जानता था, शायद खुद अंजलि और आयुष भी नहीं| मयंक और दिव्या इस बात से अनजान अपनी ही दुनिया में खुश थे|


राघव ने मयंक को फ़ोन किया और उसे बताने लगा कि वो आज रागिनी को माँ से मिलवाने ले जा रहा है| मयंक ने सुना तो खुश होते हुए कहा अच्छा ये तो ख़ुशी की बात है| राघव ने कहा यार तू भी आजा, मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है, कहीं माँ ने मना कर दिया तो? मयंक हँस पड़ा और कहने लगा तू घर जा मैं रागिनी को लेकर आऊँगा| राघव ने कहा आर यू श्योर? यस बॉस, आई एम् श्योर| राघव मार्किट से कुछ सामान लेकर घर पहुँचा| मयंक ने रागिनी को बस स्टैंड से पिक किया और राघव के घर पहुँच गया| राघव काफी परेशान था ये सोचकर कि रागिनी से मिलकर माँ क्या कहेगी, कहीं उन्हें रागिनी पसंद नहीं आई तो, और भी ढेरों सवाल उसके ज़ेहन पर काबू किये हुए थे|


तभी राघव के घर का गेट बजा| राघव की बहन सुमन ने जाकर दरवाजा खोला| सामने मयंक को देखकर खुश होते हुए उसने कहा माँ मयंक भाई आये हैं| राघव ने सुना लेकिन चुपचाप अपने कमरे में ही बैठा रहा| राघव की माँ दूसरे कमरे से बाहर आई और मयंक को देख थोड़ा नाराज होती हुई कहने लगी मुझे तुझसे बात ही नहीं करनी| तू अपनी मर्जी से आता है, तुझे माँ की याद कहाँ आती है?


मयंक ने कहा माँ इन दिनों टाइम ही नहीं मिल पाया| अच्छा माँ आज आपके लिए बहुत बड़ी खुशखबरी लाया हूँ| कैसी खुशखबरी बेटा, अभी तो तुम लोगों के रिजल्ट नहीं आये हैं? मयंक ने कहा आप अपनी आँखें बंद करें और जब तक मैं नहीं कहूँगा, आप आँखें नहीं खोलेंगी| अच्छा बाबा ठीक है कहकर राघव की माँ ने अपनी आँखें बंद की| मयंक ने सुमन को इशारा किया और सुमन ने जैसे ही गेट खोला तो सामने रागिनी खड़ी थी| भाभी आप? कहकर सुमन रागिनी के गले लग गयी थी| राघव की माँ ने सुना तो उन्होंने झट से अपनी आँखें खोल दी| मयंक ने देखा तो नाराज़ होते हुए कहा ये क्या किया माँ? मैंने आपसे कहा था कि जब तक मैं न कहूँ आप आँखें मत खोलना| राघव की माँ ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा तू हट परे, मेरी बहू आई है| मयंक हक्का-बक्का सा राघव की माँ को तो कभी रागिनी को देख रहा था| वहीं अपने कमरे में राघव गेट से कान लगाये सब कुछ सुनने की भरपूर कोशिश कर रहा था| लेकिन अफ़सोस उसे सब कुछ सुनाई नहीं दे रहा था|


राघव की माँ ने रागिनी की बलाएँ लेते हुए कहा कितनी खूबसूरत है मेरी बहू, किसी की नज़र ना लगे मेरी बच्ची को| रागिनी ने सुना तो मन ही मन मुस्कुरा उठी थी| काफी देर बाद भी जब राघव को किसी ने कमरे से बाहर नहीं बुलाया तो बेचारा बेचैन होकर खुद ही बाहर आ गया| राघव को बाहर आया देख उसकी माँ ने कहा तू जाकर पढ़ ले बेटा| राघव ने रागिनी की तरफ इशारा करते हुए कहा लेकिन माँ ये.....................मयंक की दोस्त है ये, और मयंक इससे शादी करने वाला है, राघव की माँ ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा| क्या बकवास है ये, राघव ने तुरंत ही कहा तो माँ के साथ-साथ, रागिनी, सुमन और मयंक सभी जोर से हँस पड़े थे| राघव अपनी इस हरकत पर बेचारा झेंप कर रह गया था| माँ ने कहा क्या हुआ राघव तुझे इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ है क्या? क्या लड़की तुझे सुंदर नहीं लगी? राघव ने अब रागिनी की तरफ देखते हुए कहा – बहुत सुंदर है| रागिनी ने सुना तो शरमा गयी और माँ के गले से लग गयी थी| मयंक ने कहा क्या माँ क्यों मेरे दोस्त की क्लास लगा रखी है आपने? ये तो फुल लट्टू है रागिनी पर, माँ आपको पता है इतना जलकुकड़ा है ये कि रागिनी को किसी और के साथ बात करते भी देख ले तो इसका दिमाग ख़राब हो जाता है| राघव के मना करने के बाद भी मयंक ने राघव और रागिनी की सारी कहानी माँ को सुना दी| राघव बेचारा शरमाकर वापिस अपने कमरे में चला गया|


माँ थोड़ी देर बाद रागिनी को लेकर राघव के कमरे में गई| राघव ने कहा माँ वो मैं आपको सब कुछ बताने ही वाला था| माँ ने कहा मुझे सब पता है, बस तू ये बता की शादी कब तक करनी है ताकि मैं रागिनी के घरवालों से इसका हाथ माँगने जाऊँ| राघव ने सुना तो एकदम शांत हो गया| उसने एक नज़र रागिनी को देखा और चुपचाप दूसरी तरफ देखने लगा| रागिनी राघव की चुप्पी का मतलब जानती थी| उसने खुद ही माँ से कह दिया, माँ अभी हम शादी नहीं कर सकते| माँ ने सुना तो परेशान होकर कहने लगी क्यों बेटा? रागिनी ने माँ का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा – माँ राघव पहले कामयाब होना चाहता है| उसके बाद ही वो शादी करेगा| ये बात वो मुझसे कह चुका है और मुझे भी इससे कोई ऐतराज़ नहीं है| राघव की माँ ने ये सुना तो अपनी बेवकूफी को समझ चुकी थी| उन्होंने कहा हाँ बेटा ये तो मैंने सोचा ही नहीं कोई हम गरीबों के घर अपनी लड़की क्यों भेजना चाहेगा? रागिनी ने कहा माँ सब ठीक हो जाएगा, लेकिन तब तक हमें इंतजार करना होगा| माँ ने रागिनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा बेटा तुझ जैसे समझदार बहू पाने के लिए मैं इंतजार कर लूँगी| माँ की इस बात पर रागिनी और राघव एक साथ ही मुस्कुरा उठे थे| माँ ने रागिनी को वहीं बैठने का कहा और खुद कमरे से बाहर चली गई|


माँ के बाहर जाते ही राघव ने रागिनी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा मैं सच में बहुत लकी हूँ जो मुझे तुम मिल गई| रागिनी ने कहा हम्म...........वो तो तुम हो और दोनों हँसने लगे| तभी माँ कमरे में आई और उन्होंने रागिनी को शगुन का एक लिफाफा देते हुए कहा बेटा मैं तो तुम्हें पहले दिन से ही अपनी बहू मान चुकी हूँ| रागिनी ने कहा माँ इसकी क्या जरुरत है? बेटा ये शगुन है तुमने कहा था न कि जब राघव तुम्हें खुद मुझसे मिलवायेगा, उस दिन तुम ये शगुन कबूल करोगी| राघव को माँ की ये बात थोड़ी अजीब लगी तो वो पूछ बैठा, एक मिनट.......एक मिनट माँ रागिनी ने आपसे ऐसा कब कहा था? माँ ने कहा जब वो मुझसे मिली थी, ये कहकर माँ वहाँ से चली गई| राघव ने अब रागिनी की तरफ देखा तो रागिनी ने कहा मैं चलती हूँ अब वरना मुझे देर हो जाएगी| राघव कुछ और कह पाता इससे पहले ही रागिनी कमरे से बाहर जा चुकी थी| राघव बेचारा अब भी अपना सिर खुजा रहा था कि आखिर रागिनी माँ से पहले कब मिली थी? उधर रागिनी ने सुमन को गले लगाया और मन लगाकर पढ़ने की सलाह दी| मयंक ने कहा तो रागिनी जी या फिर भाभी जी क्या कहूँ आपको? रागिनी ने सुना तो मुस्कुरा दी और कहने लगी अभी रागिनी से ही काम चलाओ| भाभी कहने का समय अभी थोड़ा दूर है| ओके रागिनी जी..........चलिए आपको बस स्टैंड तक छोड़ दूँ|


राघव तभी कमरे से बाहर आया और उसने रागिनी को आवाज देते हुए कहा कल कॉलेज में मिलते हैं| ओके कहकर रागिनी माँ के गले लगी और अपना ख्याल रखना कहकर घर से बाहर निकल गई| मयंक ने राघव की तरफ घूरते हुए कहा कल कॉलेज में मुझसे भी मिल लियो| राघव ने उसे आँखें दिखाते हुए कहा पहले तुझसे ही मिलूँगा, अब जा और उसे बस में बिठाने के बाद ही जाना| मयंक ने कहा तू भी चल साथ में| राघव ने माँ की तरफ देखा तो उन्होंने भी कहा जा बेटा साथ चला जा, उसे भी अच्छा लगेगा| राघव ने कहा ओके और फटाफट से घर से बाहर आया| मयंक ने राघव और रागिनी को रोड पर पहुँचने को कहा| राघव और रागिनी बात करते हुए रोड तक पहुँच गए तभी उनके सामने एक ऑटो आकर रुका| बैठिये भाभी जी, ऑटो वाले ने रागिनी से कहा तो राघव और रागिनी एक-दूसरे की तरफ देखने लगे| तभी मयंक ने कहा बैठ जाओ और साथ में जाओ, अभी काफी टाइम है तुम दोनों के पास| राघव ने मयंक से कहा थैंक यू| मयंक ने कहा मैंने पैसे दे दिए हैं ऑटो वाले भैया को, मैं भी चलता हूँ थोड़ा काम है मुझे| मयंक अपनी बाइक से चला गया और वो दोनों ऑटो से बस स्टैंड के लिए निकल गए थे|


थोड़ी ही देर में वो दोनों बस स्टैंड पहुँच चुके थे| वहीं पास ही एक पार्क था, दोनों जाकर वहीं बैठ गए| राघव ने कहा रागिनी तुम्हारे घरवाले इस रिश्ते के लिए मान तो जायेंगे न? रागिनी ने कहा ह्म्म्म...........बस तुम्हारी जॉब लग जाएगी, फिर कोई ना नहीं कहेगा| राघव और रागिनी ने काफी समय एक-दूसरे से बातें करते हुए बिताया और उनकी आँखों में भविष्य के सुनहरे सपने पल रहे थे| मयंक ने अंजलि को फ़ोन किया तो अंजलि ने उसका फ़ोन काट दिया| मयंक ने दूसरी बार............फिर तीसरी बार............और फिर कई बार अंजलि को कॉल किया लेकिन हर बार फ़ोन कट जाता| ओह्ह...........इसका मतलब मैडम बहुत गुस्से में हैं| उधर अंजलि अपनी बालकनी में गुस्से में टहल रही थी क्योंकि जब से जयपुर से आये थे ना तो उसकी आयुष से बात हुई थी और ना ही मयंक से| तभी उसे हॉर्न सुनाई दिया| उसने देखा मयंक बाइक लेकर उसके घर के नीचे खड़ा है| अंजलि ने गुस्से में नीचे देखा जैसे कह रही हो यहाँ क्यों आये हो? मयंक ने उसे नीचे आने का इशारा किया तो अंजलि गुस्से में अपने कमरे में चली गई| मयंक को लगा कि शायद वो नीचे आ रही है लेकिन जब काफी देर बाद भी अंजलि नहीं आई तो मयंक ही उसके घर के अंदर जा पहुँचा|


सामने नैना जी को देखते ही उसने उनके पैर छूते हुए कहा नमस्ते आंटी| वो अंजलि कहाँ है, मुझे उससे कुछ बात करनी थी| कुछ नोट्स लेने हैं, मेरे एक फ्रेंड के लिए| बहुत देर से कॉल कर रहा हूँ लेकिन उसने फ़ोन नहीं उठाया तो मुझे घर ही आना पड़ा| नैना जी ने मुस्कुराते हुए कहा वो ऊपर है अपने कमरे में, तुम वहीं जाकर मिल लो| मैं तुम्हारे लिए कुछ चाय-नाश्ता लेकर आती हूँ| ओके आंटी कहकर मयंक सीढ़ियों से ऊपर जा पहुँचा| अंजलि कमरे में नहीं थी तो मयंक उसे इधर-उधर देखते हुए आवाज लगाने लगा| तभी उसे पीठ पर एक जोरदार मुक्का पड़ा और वो बेड पर गिर पड़ा| उसने पलट कर देखा तो अंजलि उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थी| मयंक ने कहा माय गॉड, इतना हसीन चेहरा और इतना सारा गुस्सा? इतने में अंजलि ने बेड पर रखा तकिया उठाया और मयंक को उससे मारने लगी| अरे अंजलि मेरी बात तो सुनो यार.................लेकिन अंजलि गुस्से में उसकी बात कहाँ सुनती| वो तो बस तकिये से उस पर हमला किये जा रही थी|


मयंक उसे रोकने की कोशिश कर रहा था लेकिन सब बेकार| अंजलि लगातार गुस्से में ये कह रही थी कि बहुत बिजी हो ना तुम, एक फ़ोन करने का भी टाइम नहीं है? तभी मयंक चिल्लाया, उसकी चीख से अंजलि रुकी और परेशान होकर कहने लगी क्या हुआ तुम्हें? मयंक अब और जोर से चिल्लाया आह्ह्ह.................क्या तुम्हें चोट लग गयी, दिखाओ मुझे अंजलि ने कहा...............मयंक ने कहा हाँ बहुत तेज लग गयी है, तुम इतने गुस्से में मारती ही जा रही हो तो चोट तो लगनी ही थी| अंजली परेशान होकर अच्छा सॉरी............. दिखाओ तो कहाँ लगी है चोट? मयंक ने अब अंजलि को चुप कराते हुए कहा अपना हाथ दिखाओ| क्या अंजलि ने हैरान होकर कहा...............अरे अपना हाथ दिखाओ जल्दी मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा है| अंजलि ने जैसे ही अपना हाथ आगे किया, मयंक ने उसका हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रखते हुए कहा यहाँ लगी है| अंजलि ने अजीब सा मुँह बनाते हुए कहा लेकिन मैंने तो यहाँ मारा ही नहीं फिर यहाँ चोट कैसे लग गयी? मयंक ने कहा तुम्हें क्या पता तुमने कहाँ-कहाँ मारा है? मैं कह रहा हूँ न मुझे यहाँ चोट लगी है? अंजलि ने अब थोड़ा सीरियस होते हुए कहा अच्छा ठीक है, लेकिन पहले तुमने ही मुझे गुस्सा दिलाया था| मयंक ने कहा हाँ तो गुस्सा दिलाया था तो तुम क्या मेरी जान ले लोगी? हाँ ले लूँगी, अंजलि ने भी गुस्से में वहाँ से खड़े होते हुए कहा|


मयंक ने उठकर उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा तो अगले ही पल अंजलि उसके सीने से जा लगी थी| मयंक ने कसकर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया था| अब उसका गुस्सा जैसे कहीं गायब हो गया था| मयंक ने कहा अंजलि.................हम्म...अंजलि ने धीरे से जवाब दिया| अंजलि तुम्हारी मम्मी....................ये सुनते ही अंजलि झटके से मयंक से दूर हुई| मयंक दोनों हाथ बांधे मुस्कुराये जा रहा था| अंजलि ने देखा वहाँ कोई नहीं था तो उसने मयंक को फिर घूरना शुरू कर दिया| तभी नैना जी चाय-नाश्ते की ट्रे लिए कमरे में आ गयी|


मयंक ने कहा आंटी इसकी क्या जरुरत थी, मैं बस जा ही रहा था| अरे बेटा इतने दिनों बाद तो आये हो ऐसे कैसे बिना कुछ खाए-पिए जाने देती? मयंक ने कहा ओके आंटी मैं सिर्फ चाय पी लेता हूँ| मयंक ने चाय पीते हुए अंजलि की तरफ देखा और उसे कुछ इशारा किया| अंजलि चुपचाप जाकर कुछ किताबें उठाकर लायी| तभी नैना जी कहा मयंक बेटा अनुराधा कैसी है? किसी दिन उसे भी घर लेकर आओ ना? मयंक ने कहा जी आंटी मॉम बिलकुल ठीक हैं और आप दोनों फ़ोन पर बात कर लो| वो जब कहेंगी मैं आपसे मिलवाने लेकर आ जाऊँगा| नैना जी ने कहा बेटा अंजलि तुम भी अपनी चाय लो, ठंडी हो रही है| इसके लिए ठंडी चाय ही ठीक है, मयंक ने मन ही मन कहा| नैना जी के कहने पर अंजलि ने चाय उठाई और जाकर बालकनी में खड़ी हो गयी| मयंक काफी देर तक नैना जी से बात करता रहा| तभी फ़ोन की घंटी बजी और नैना जी अभी आती हूँ कहकर नीचे चली गई| मयंक अब उठकर अंजलि के साथ आकर बालकनी में खड़ा हो गया| बहुत नाराज हो, मयंक ने धीरे से अंजलि के कंधे पर अपना सिर रखते हुए कहा? अंजलि ने कोई जवाब नहीं दिया|


मयंक ने कहा तुम्हें पता है आज रागिनी को राघव के घर लेकर गया था| राघव ने रागिनी को अपनी माँ से मिलवाया| सच कह रहे हो, अंजलि ने चहकते हुए कहा| मयंक उसे ऐसे देख कर कहने लगा तुम ऐसे कितनी प्यारी लगती हो फिर ये गुस्सा करना जरुरी है क्या? अंजलि ने कहा हाँ तो तुम्हारे पास इतनी भी फुर्सत नहीं कि एक फ़ोन कर लूँ| सॉरी...........आगे से ऐसा नहीं होगा| अंजलि ने कहा अच्छा ठीक है अब जल्दी बताओ वहाँ क्या-क्या हुआ? मयंक ने अब उसे सारी बातें बताई| इस बीच अंजलि अपने दोनों हाथ अपने गालों पर रखकर बड़े ही ध्यान से सब सुन रही थी| मयंक की नजरें अंजलि के चेहरे पर ठहर चुकी थी, जिस पर इस वक़्त सिर्फ और सिर्फ मासूमियत झलक रही थी| सॉरी मयंक..............अंजलि ने अपनी गलती समझते हुए कहा, मुझे ही तुम्हें फ़ोन कर लेना चाहिए था ताकि मुझे ये तो पता लग जाता कि तुम क्या कर रहे हो? मैं बेकार में ही इतना गुस्सा हो रही थी? मयंक ने कहा तुम शादी के बाद भी इतना ही गुस्सा करोगी? अंजलि ने सुना तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गई| उसने कहा शादी और तुमसे, कभी नहीं| मयंक ने कहा अच्छा तो प्यार मुझसे, शादी किसी और से करोगी? अंजलि ने कहा मैं शादी नहीं करुँगी, वरना फिर तुम मुझसे खाना बनवाओगे, कपड़े धुलवाओगे, और मुझसे सारे घर के काम करवाओगे और मुझे तो इनमें से कोई काम नहीं आता|

मयंक ने सुना तो हैरान होकर उसे देखता रहा और फिर अपना पेट पकड़ कर हँसने लगा| अंजलि ने कहा क्या है ऐसे क्यों हँस रहे हो? क्या मैंने कोई जोक मारा है, यही सब तो करती हैं लडकियाँ शादी के बाद, और मैं नहीं कर सकती क्योंकि मुझे आता ही नहीं|

मयंक अब भी हँसता ही जा रहा था| अंजलि ने कहा अब हँसना बंद करो वरना तुम्हारे दांत तोड़ दूँगी| मयंक ने कहा ओके ठीक है लेकिन तुम्हें ये सब काम करते हुए इमेजिन कर लिया तो मेरी हँसी ही नहीं रुक रही है| अंजलि ने कहा क्या तुमने इमेजिन भी कर लिया? मयंक ने कहा हम्म, वैसे ये सब करते हुए भी बड़ी ही प्यारी लग रही हो| अंजलि ने कहा ख्वाब देखो, मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली| मयंक ने कहा अच्छा ठीक है मैं कर लूँगा सब कुछ, तुम तो बस मुझसे ढेर सारा प्यार करना|


अंजलि ने सुना तो उसे जीभ चिढ़ाते हुए कहने लगी, वो भी नहीं करुँगी| तुम्हारी हरकतें प्यार करने वाली नहीं हैं, मार खाने वाली हैं| मयंक ने कहा मुझे अपना भविष्य अंधकारमय नज़र आ रहा है, मयंक ने थोड़ी एक्टिंग करते हुए कहा तो अंजलि खिलखिलाकर हँस पड़ी थी| ऐसे ही हँसती रहा करो तुम, तुम्हारी ये हँसी मेरे दिल का सुकून है अंजलि| अंजलि कुछ कहने को हुई तभी नैना जी वहाँ आ गयी और उन्होंने कहा मयंक बेटा अभी फ़ोन अनुराधा ने ही किया था और हमारी मीटिंग सन्डे शाम की फिक्स हुई है| तुम्हें ही उन्हें लेकर आना है| जी आंटी मैं लेकर आ जाऊँगा| अभी चलता हूँ, आज सुबह से घर से बाहर ही हूँ और घर जाकर बड़ी डांट पड़ने वाली है| मॉम बहुत गुस्सा होंगी| मयंक ने किताबों में से एक किताब उठाई और थैंक यू अंजलि कहकर वहाँ से चला गया|


अंजलि जाकर बालकनी में खड़ी हो गयी| नैना जी ने कहा अच्छा लड़का है, अनुराधा ने अपने बेटे की बहुत अच्छी परवरिश की है| अंजलि ने कहा हाँ अच्छा तो है, वैसे मॉम आपको नहीं लगता कि मैं भी अच्छी हूँ, आखिर आपने भी बहुत अच्छी परवरिश की है| नैना जी ने अंजलि के कान खींचते हुए कहा हाँ मालूम है तुम कितनी अच्छी हो, बिगाड़ कर रखा हुआ है तुम्हारे पापा ने तुम्हें अपने लाड-प्यार से| अंजलि ने नैना जी के गले में अपनी बाँहें डालते हुए कहा मॉम कभी-कभी तो मुझे शक होता है कि मैं आपकी ही बेटी हूँ या कहीं से उठाकर लायी हो मुझे| कभी तो तारीफ कर दिया करो| अंजलि ने ये बात मजाक में कही थी लेकिन नैना जी के होश उड़ चुके थे| उन्होंने अंजलि को अपने गले से लगाते हुए कहा ये क्या औल-फौल कुछ भी बक रही हो? तुम हमारी ही बेटी हो| नैना जी को इस तरह परेशान देखकर अंजलि ने कहा अरे मॉम मैं तो बस मजाक कर रही थी| नैना जी ने कहा आइन्दा से ऐसा मजाक किया तो तेरी टांगें तोड़ दूँगी| सॉरी मॉम कहकर अंजलि नैना जी के गले से चिपक गई| नैना जी की आँखों से आँसू गिरने को ही थे कि उन्होंने अंजलि से कहा चल हट जाने दे अब मुझे काम भी करना है|


नैना जी तेज क़दमों से अंजलि के कमरे से निकल कर बाहर पहुँची| उनकी पलकों में कैद आँसू अब बाहर आ चुके थे| उन्हें पोछती हुई वो रसोईघर में जा पहुँची| वो मन ही मन कह रही थी कुछ भी बकती जाती है ये लड़की, पता नहीं कब समझदारी आएगी| तभी उनके कंधे पर किसी ने हाथ रखा तो नैना जी ने पलट कर देखा| अमिताभ जी उनके सामने खड़े थे, नैना जी उन्हें देखते ही उनके सीने से लग गयी| नैना जी को इस तरह घबराया देख अमिताभ जी ने उनसे पूछा, नैना जी क्या हुआ? आप इस कदर घबरायी हुई क्यों हैं? नैना जी ने खुद को सँभालते हुए कहा कुछ नहीं बस ऐसे ही| आप हाथ-मुंह धो लीजिये, मैं आपके लिए चाय लाती हूँ|

अमिताभ जी ने कहा आपकी तबियत तो ठीक है न? जी मैं बिलकुल ठीक हूँ, आप चलिए मैं चाय लेकर आती हूँ| तभी अंजलि सीढियां उतरती हुई आकर अपने डैड के गले लग गई|

क्रमश:



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