Yogesh Kanava

Abstract Tragedy Crime

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Yogesh Kanava

Abstract Tragedy Crime

वो रात

वो रात

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बच्चे शहर से बाहर गए हुए थे सो शाम को हम दोनों पति पत्नी ही घर पर थे। श्रीमतीजी पूछ रही थी क्या बनाऊँ और मैं टी.वी. न्यूज में आंखें गड़ाए चुपचाप बैठा था। बार-बार नहीं पूछने पर जब जवाब नहीं मिला तो वो भी थोड़ा सा नाराजगी के साथ पास ही बैठ गयी। मैंने मुस्करा कर कहा आज सब्जी मैं बनाता हूँ जानती हो ना वो झटपट वाली सब्जी। अरे हां वहीं पापड़ की सब्जी थोड़ी सी मलाई डालकर, समझी। मुझे मालूम था अब यदि नहीं उठा तो बस आज अच्छा खासा दंगल बनने वाला है घर। मन मारकर मैं उठा किचन में गया और पापड़ सेके। प्याज काटे, लहसुन छीला और कड़ाही में तेल डालकर बस सब्जी बनाने लगा। कुल पांच मिनट में तैयार हो जाती है ये सब्जी, नीलिमा ने रोटियां पहले ही सेक दी थी सो मैंने ही दो थालियों में खाना लगाकर सीधा बेडरूम में ही ले गया। नीलिमा ने झिड़कते हुए कहा अभी इतनी बूढ़ी भी नहीं हुई हूँ मैं, बस साठ की ही तो हुई हूँ, खाना मैं ही ले ही आती।

अरे मैं ले आया तो क्या हो गया कभी-कभी मैं भी तो सेवा कर लूं। इतना बोलना था कि वो और तुनक गई खैर मैंने उसे मनाया और हम खाना खा ही रहे थे कि बाहर अचानक ही तेज आवाज़ें आने लगी। आवाज़ जानी पहचानी सी थी, हां पुरोहित जी की आवाज़ लग रही थी हमारे घर से एक घर छोड़कर ही तो उनका घर है। मैंने कहा ये पुरोहित जी किसको मारने की बात कह रहे हैं। हमने जल्दी से खाना खाया और बार आ गए। बाहर का नज़ारा बड़ा ही विचित्र था गली वाले लोग सब चुप पुरोहित जी बड़ी ही गन्दी से गन्दी गाली दे रहे थे और चिल्ला रहे थे मार साली को। इसका चोटा पकड़कर अन्दर ले चल। कुछ माजरा समझ में आता इससे पहले ही पुरोहित जी, उनका लड़का, पत्नी तीनों ही उस लड़की --- हां पुरोहित जी के लड़के की पत्नी को भीतर ले गए। वहां मौजूद लोग धीरे-धीरे कह रहे थे यार कैसे लोग हैं लड़की को इतनी गन्दी गाली दे रहे हैं। इस तरह से कोई करता है क्या वैसे पुरोहित जी के लड़के की शादी अभी कोई साल भर पहले ही हुई थी। आमतौर पर कभी भी पुरोहित जी को ऊँची आवाज़ में बोलते नहीं सुना था। गली मौहल्ले में भी उनका बैठ उठ किसी से भी नहीं थी बस कभी कभार जब उनको कोई काम होता या कहीं बाहर जाना होता तो हमारे पास आकर उनके पौधों विशेषकर तुलसी में पानी डालने के लिए ज़रूर कहकर जाते थे।मैं भी एक अच्छे पड़ोसी की तरह तुलसी सहित सभी गमलों में पानी दे आता था। वैसे भी घर में बागवानी करना मेरा शौक है। ख़ैर पुरोहित जी का आज का इस प्रकार का व्यवहार समझ में नहीं आया था। गली मौहल्ले वालों को किसी को कोई मतलब नहीं था। सो एक एक करके सब अपने अपने घर को चले गए। मैं और नीलिमा भी अनमने से भीतर आ गए और उसी बारे में बात करने लग थे। कारण समझ में नहीं आया था इस लिए जल्दबाजी में कोई कदम भी नहीं उठाना चाहते थे। नीलिमा ने तो मुझ से कहा था कि पुलिस को फोन कर दो लेकिन मैंने ही मना कर दिया था। मैं चाहता था उस मामले को समझना कि एक साल में ही आखिर क्या हो गया। इसी प्रकार बातें करते करते हम दोनों ही सो गए।

रात को अचानक ही मुझे लगा कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। दस्तक काफी धीरे से दी जा रही थी। मैंने जाली के दरवाजे में से ही बाहर झांका कोई लड़की बाहर मुंह ढके खड़ी थी। धीरे से बोली अंकलजी जल्दी से दरवाजा खोलो, वो लोग मुझे मार डालेंगे। मेरे उठने की आवाज़ सुनकर ही नीलिमा भी पीछे पीछे ही आ गई थी। उस लड़की को मैं पहचान नहीं पाया था लेकिन नीलिमा ने झट से पहचान लिया था वो मुझ से बोली अरे दरवाज़ा खोला ये तो पुरोहित जी की बहु है। मैंने दरवाज़ा खोल दिया। वो धीरे से अन्दर आयी और नीलिमा के गले लगकर सुबक सुबक कर रोने लगी। स्थिति की नज़ाकत समझ मैंने उसे अन्दर वाले कमरे में ही आने को कहा। वो नीलिमा को अपनी दास्तान बताने लगी थी। मैं भी बाहर बैठा सुर पा रहा था। वो कह रही थी आंटी जी मैं आपको कैसे बताऊं, आप मेरे कपड़े देख रहे हैं ना ये ब्लाउज फटा हुआ ---- ये देखो पेटीकोट किस तरह से नोचा है मुझे ------।

वो धीर-धीरे रोती जा रही थी और बोलती जा रही थी। मुझे तो आज अपने ऊपर भी घिन्न आ रही है कैसे घर में आ गई हूँ जो बाप समान होता है ससुर वो ही आज - इतना बोली और फिर रोने लगी थी। नीलिमा ने उसे चुप करवाया तो वो फिर बोली।

आंटीजी आप विश्वास बिल्कुल नहीं करेंगी मैं जानती हूँ कोई भी नहीं करेगा लेकिन यह सच है। शादी के बाद जब मैं यहां आई तो पहले दस दिन तक मेरे पति मुझे कहते रहे कि हम दोनों में जब तक समझ पैदा नहीं हो जाती है तब तक हम लोग साथ नहीं सोएंगे। मैंने भी सोचा था कि मेरा पति कितना अच्छा है उसे केवल तन की भूख नहीं है बल्कि वो वाकई बहुत अच्छा इंसान है। लेकिन धीर-धीरे वो मुझसे कतराने लगे थे मैं पास जाती थी तो वो कोई ना कोई बहाना बनाकर कमरे से बाहर चले जाते थे। उनके इस प्रकार के व्यवहार के कारण मैं भी आहत हो गई थी सो मैं थोड़ा सा रियेक्ट करने लगी थी। एक दिन मैं सफाई कर ही थी कि उनकी मेडिकल फाइल मिल गयी थी मुझ उसमें डॉक्टर ने लिखा थार - परमानेन्ट इरेक्टाइल डिसफंक्सन एण्ड एजुस्पर्मिया। मैंने तुरन्त गूगल पर इसका अर्थ खोजा तो समझ आया कि वो पूरी तरह से नामर्द है, नपुंसक है। और हमें धोखे में रखकर शादी की है क्यों कि यह रिपोर्ट हमारी शादी के पहले की थी। मैं बाहर बैठा सारी बात सुन रहा था। अवाक सा रह गया था में यह सुनकर।

नीलिमा ने यह सुनकर उसे कहा देखो बेटा आजकल सब बीमारियों का इलाज हो जाता है। डॉक्टर से बात करो। सब ठीक हो जाएगा। वो तपाक से बोली।

नहीं आंटी जी नहीं हो सकता है अब इलाज। मैंने भी इनसे कहा था कि यह मेडिकल फाइल कैसी है। पहले तो आनाकानी करते रहे फिर जब मैंने ज्यादा दबाव डाला तो उन्होंने खुद ही कहा कि वो एक नपुंसक है। डॉक्टर ने साफ मना कर दिया है और ---- शादी के लिए भी मना किया था लेकिन मम्मी पापा की ज़िद थी सो तुम से शादी कर ली थी।


उस रात आंटीजी मैं खूब रोयी थी फिर इसे अपनी तकदीर समझकर मैं चुप बैठ गयी लेकिन पिछले पन्द्रह दिन से ----।

इतना कहकर वो फिर से रोने लगी थी। उधर बाहर फिर से पुरोहित जी की आवाज़ें ज़ोर ज़ोर से आ रही थी। घर में लाइट हमने पहले ही बन्द कर रखी थी सो मैंने जाली वाले दरवाज़े के पास से ही सुना। वो अपने लड़के को कह रहे थे --- कहां गई हरामजादी, इन्हीं घरों में किसी में घुसी है। ढूंढ साली को।

उनकी आवाज़ें शायद नीमिला और उस लड़की तक भी चली गयी थी सो वो दोनों चुप हो गयी थी। मैंने भी कुछ न बोलना ही उचित समझा। थोड़ी देर में बाहर से आवाज़ें बन्द हो गयी थी। वो लड़की नीलिमा को फिर से बोली --- पिछले पन्द्रह दिन से मेरे ससुर रोज़ना मेरे कमरे में आकर अश्लील से बातें करने लगे थे। मैंने अपने पति से आज की बात को कहा कि पापा का इस तरह से मेरे कमरे में आना मुझे अच्छा नहीं लगता है, वो बहुत गन्दी गन्दी बातें मुझ से करते हैं इतना कहना था कि मेरे पति ने मुझे पीटना शुरू कर दिया और बोले कि घर में एक बच्चा तो चाहिए ना। बच्चा नहीं होगा तो लोग क्या सोचेंगे। इसलिए चुपचाप जो वो कह रहे हैं मान लो और उनसे एक बच्चा कर लो सब ठीक हो जाएगा।

मुझ पर तो जैसे आसमान ही टूट पड़ा था। मैंने तय किया कि तुरन्त मेरे पीहर फोन करके सब बताती हूँ। मैंने फोन उठाया था कि मेरे पति ने मेरा फोन छीनकर तोड़ दिया और कमरे में बन्द कर दिया था। मैंने दरवाजा भी पीटा लेकिन कोई फायदा नहीं निकला था। मैं भी रोते रोते सा गयी थी। अभी रात में मेरे सास आयी थी कमरे में और बोली कि चुपचाप से तैयार हो जा आज वो ही तेरे साथ यहाँ सोएंगे, मुझे हर हाल में एक बच्चा चाहिए बस। मैंने साफ मना कद दिया ऐसा नहीं हो सकता है तो वो मुझे मारने लगी थी। उसके साथ ससुर और पति ने भी मारा था। मैं बचाव के लिए घर से बाहर भाग आयी थी लेकिन पकड़कर वापस ले गए थे और --- और --- फिर ----।

वो फिर से रोने लगी थी। नीलिमा ने उसे सीने से लगाकर चुप करवाया। वो बोली ससुर आया था मेरे कमरे में जोर जबरदस्ती करने लगा था मेरे कपड़े भी उसने फाड़ दिए। मैंने फूलदान उठाकर उसके सर पर मारा और बचकर आपकी छत पर जाकर छिप गयी थी। मौका पाकर आपका दरवाज़ा खटखटाया था। किसी तरह से अपनी इज़्ज़त बचाकर भागी हूँ सारी बातें सुनकर मैं बाहर बैठा सोच रहा था। आदमी इतना कैसे गिर सकता है। मैंने अपना मोबाइल उठाया और सीधे अन्दर बेड रूम में उन दोनों के पास चला गया। बोला देखो बेटा तुम कहो तो अभी पुलिस में चलते हैं या फिर तुम्हारे पापा को फोन कर लो।

उसने अपने पापा को फोन किया और सारी बात बता दी। तभी उस लड़की ने एक निर्णय लिया और बोली अंकल जी एक काम और कर दीजिए ना प्लीज मुझे किसी तरह से बस स्टैड छोड़ दीजिए ना मैं अपने गांव चली जाऊं। मैंने उसे समझाया देखो बेटा अभी ये लोग कुत्तों की तरह तुम्हें खोज रहे हैं। मैं भी इतना ताकतवर नहीं हूँ कि इनका मुकाबला कर सकूं। ये लोग ज़रूर बस स्टैण्ड पर तुम्हें खोजेंगे। इसलिए अभी तुम्हारा जाना ठीक नहीं है। मैं मौका देखता हूँ फिर तुम्हें छोड़कर आ जाऊंगा।

इतना कहकर मैं बाहर ही दीवान पर लेट गया। बाहर अब भी वो तीनों उसे ढूंढ रहे थे। सुबह के चार बजे थे तभी पुरोहित कह रहा था, चलो चाय पी लेते हैं सुबह ढूंढेंगे उसे जाएगी कहां। अपने लड़के को कहा तू बस स्टैण्ड जाकर बैठ जा और जैसे ही वो दिखे उसका चोटा पकड़कर घसीट लाना।

मैंने अपनी गाड़ी निकाली पिछली सीट पर नीलिमा को आधा से लिटा दिया और पीछे डिक्की में उस लड़की को बिठाकर चल दिया उसके गांव की ओर।



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