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Yogesh Kanava

Others

4.5  

Yogesh Kanava

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झक सफेद

झक सफेद

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आज पुलिस मुख्यालय में एक समारोह रखा गया था । विदाई समारोह सभी के बीच फुसफुसाहट थी कि अचानक ही रणविजय सिंह ने वीआरएस क्यों लिया । किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था डीएसपी के पद पर कार्यरत रणविजय सिंह पुलिस महकमे के सबसे कामयाब अफसर माने जाते थे। कितना भी उलझा हुआ केस हो रणविजय सिंह के हाथों में आने के बाद वो कभी अनसुलझा नही रहा । यही कारण था कि डीजीपी ने खुद उससे वीआरएस नही लेने का अनुरोध किया था लेकिन रणविजय सिंह ने उनका आभार व्यक्त करते हुए एक ही बात कही थी पुलिस महकमे ने मुझे जो किया है वह कम नहीं है किंतु अब समाज के लिए भी मैं कुछ करना चाहता हूंँ ,कुछ करने का समय आ गया है।

धीरे-धीरे पुलिस मुख्यालय का ऑडिटोरियम भरने लगा था वैसे तो रणविजय सिंह की पोसिं्टग बरेली रेंज के मुरादाबाद सर्कल के अमरोहा में थी किंतु उसके प्रति पुलिस प्रशासन ने सम्मान देने के लिए मुख्य विदाई समारोह बरेली के बजाय लखनऊ में ही रखना उचित समझा था ।उसकी काबलियत और डी जी पी के सबसे विश्वास वाला डी एस पी था रणविजय सिंह । खुद डीजीपी साहब का हुक्म था यह आयोजन लखनऊ में ही होगा। अब ऑडिटोरियम पूरा खचाखच भर गया था अमरोहा मुरादाबाद और बरेली से काफी सारे अफसर और पुलिसकर्मी इस मौके के गवाह बनने के लिए आज पुलिस मुख्यालय लखनऊ के इस ऑडिटोरियम में आए हुए थे। मंच पर धीरे धीरे रोशनी बढ़ने लगी थी और ऑडिटोरियम में रोशनी धीरे-धीरे मध्यम होने लगी ,जो इस बात का संकेत थी कि अब कार्यक्रम आरंभ होने ही वाला है। एक खूबसूरत साड़ी में सजी एंकर सामने मंच पर दिखाई देने लगी । उसके हाथ में कुछ कागज और दूसरे हाथ में माइक था। उसकी मंच पर आमद भी कुछ फिल्म के इंट्रो की तरह हो रही थी। वो धीरे धीरे सहज मीठे स्वर में बोली लेडिज एंड जैंटलमैन आपके इंतजार की घड़ियांँ खत्म हो रही है। मंच पर आ रहे हैं प्रदेश के पुलिस मुखिया आदरणीय डीजीपी साहब और अपने साथ लेकर आ रहे हैं उनको जिन के सम्मान में आज खुद डी जी पी साहब ने यह समारोह आयोजित किया है। जी हां नन अदर देन कुंँवर रणविजय सिंह, जो आज पुलिस महकमे को अपनी अल्पकालिक सेवाएं देने के पश्चात वीआरएस ले रहे हैं । डी जी पी सर के ही साथ आ रहे हैं एडीजीपी हैडक्वाटर्स ,एडीजीपी लॉ एंड ऑर्डर, आईजी बरेली रेंज ,एसपी मुरादाबाद और साथ है कुंँवर रणविजय सिंह । जोरदार तालियों के साथ आप इनका स्वागत कीजिए । सभी अतिथि गणों से विनम्र अनुरोध है कि अपना अपना आसन ग्रहण करें ।

समारोह करीब एक घंटा चला सभी ने कुंँवर रणविजय सिंह की तारीफ की लेकिन सभी ने एक सवाल हवा में जरूर छोड़ा ,इतनी जल्दी क्यों कुंँवर रणविजय सिंह वीआरएस ले रहे हैं ? पुलिस महकमे से उनका मन क्यों उचट सा गया है । यह सवाल हवा में तैर रहा था और इधर रणविजय सिंह मुस्कुराकर इस सवाल को टालते गए । कुंँवर रणविजय सिंह के चेहरे पर मुस्कान तो थी परंतु मन के भीतर कोई गहरी फांस चुभती सी प्रतीत हो रही थी किंतु मन के भावों को अपने चेहरे पर आने नहीं देना चाहते थे। बस सबका अभिवादन करते रहे और आभार व्यक्त करते रहे। समारोह संपन्न हुआ समारोह के संपन्न होने के बाद कुंँवर रणविजय सिंह को सरकारी गाड़ी से उनके बंगले तक छोड़ा गया जहाँ पर परिवार में पहले से ही एक छोटे से समारोह का आयोजन किया हुआ था। घर तक उनको छोड़ने आए सभी पुलिस जनों का परिवार ने भरपूर स्वागत किया उनको चाय नाश्ते के पश्चात विदा किया ।

वीआरएस लिए हुए कोई पन्द्रह दिन का समय बीत चुका था पूरा भारत भ्रमण करने का उनका मन कर रहा था । सच्चाई तो यह थी उसके मन के भीतर छुपी हुई फांस उसको चैन से बैठने नहीं दे रही थी। इस बात को वह अपनी पत्नी और परिवार पर जाहिर नहीं करना चाहते थे । उन्होंने फैसला किया अकेले ही भारत भ्रमण पर निकलेंगे और उनकी पत्नी घर पर रहकर ही बच्चों और माता पिता का ध्यान रखेगी। क्योंकि वह जानते थे कि यदि पत्नी को साथ लिया तो उन ग़रीबों की भावनाओं को और सच्चाई को बहुत करीब से वह कभी नहीं जान पाएगा। कुंँवर रणविजय सिंह चाहते थे कि वह ग़रीबी लाचारी को करीब से देखें ,करीब से जाने जिसके कारण उन लोगों पर अमीरों के जुल्म भी होते हैं और वह कुछ कर भी नहीं पाते । कुंँवर रणविजय सिंह का बचपन बेहद अमीरी में ही गुज़रा था । वह हल्द्वानी राजघराने के चिराग थे जिनके पढ़ाई लिखाई राजघराने के कानून कायदों के हिसाब से ही हुई थी। आज़ादी से पहले उनके दादाजी की तूती बोलती थी । अंग्रेज साहब लोग हवेली में आते जाते रहते थे । अंग्रेजी तौर तरीकों से उनके हवेली में नाच गान और सभी तरह के आमोद प्रमोद होते रहते थे । यह बात कुंँवर रणविजय सिंह के पिताजी बताया करते थे। रणविजय सिंह के तौर-तरीके भी करीब करीब वैसे ही थे अंग्रेजों जैसे । हालांकि रणविजय सिंह का जन्म 1980 में हुआ था भारत में इमरजेंसी के बारे में सुनते थे सन 1975 में इमरजेंसी लगाई गई थी उनको सन 1984 के दिल्ली दंगों के बारे में कुछ खास याद नहीं थी । दुनिया को अपने अमीरी के चश्मे से देखने वाले एक फौजी परिवार के पुरुष बचपन से ही राजघराने के होने के कारण उनमें भी सत्ता विरोध समाता चला गया था। अटल बिहारी वाजपेई के भाषणों का उन पर खासा प्रभाव था। वह अटल बिहारी वाजपेई बेहद पसंद करते थे । उनके घरवाले चाहते थे कि वह भी परिवार की परंपरा के अनुसार फौज में जाए । उनके दादाजी राय बहादुर संग्राम सिंह अंग्रेजों की सेना में कप्तान और पिताजी भारतीय सेना में कर्नल के पद से रिटायर हुए थे । इसलिए पिताजी चाहते थे कि वह भी भारतीय सेना में ही जाए परंतु पता नहीं क्यों कुंँवर रणविजय सिंह यूपी पुलिस में जाना बेहतर समझा । पुलिस की नौकरी के प्रति पता नहीं क्यों रणविजय सिंह को इतना लगाव है उसे लगता था कि फौज में जाने के बाद केवल जंगलों में ही भटकना पड़ेगा और पुलिस की नौकरी में समाज के बीच रहा जा सकता है । समाज से अलग होने का भय था और यही वजह थी समाज से दूर नहीं होना चाहता खैर जो भी था वह पुलिस में डीएसपी के पद पर सेलेक्ट हो गया और पुलिस ज्वाइन कर ली । घर में फौजी माहौल के कारण अनुशासन और उसके दिलो-दिमाग में बैठी हुई थी । सीनियर का जो भी हुकुम हो उसको पूरा करना अपना दायित्व समझता था । सही मायने में कहे तो उसे पुलिसिया फरेब , दाव-पेच, मक्कारी और धौंस जमाना, पैसे ऐंठने वाले पुलिसया गुण उसने अभी नहीं थे । सही कहे तो वो बेहद ईमानदार और आज्ञाकारी व्यक्ति था । लेकिन धीरे-धीरे उसे समझ में आने लगा कि शायद वो गलत जगह में आ गया है। लेकिन वह खुद ही अपनी पसंद से तो पुलिस में आया था घरवालों की इच्छा के बिल्कुल विरुद्ध । अब ऐसे में वह घर वालों से कैसे कहें कि वह गलत जगह आ गया । सेवानिवृत्ति के पश्चात भारत भ्रमण पर निकल गया, अलग-अलग इलाकों में घूमते वापस अपने घर अमरोहा आठ महीने बाद पहुंचा । अमरोहा आने के बाद अपनी यायावरी की डायरी लिखी लेकिन मन में अभी भी सुकून नहीं था । मन के किसी कोने में अभी भी एक बात बार-बार उसे कुछ और लिखने के लिए प्रेरित कर रही थी ,कचोट रही थी । कुछ दिन यूंँ ही घर पर परिवार के साथ बिताने के बाद अचानक एक दिन वह अपने कमरे में एक टेबल और कुर्सी लगाकर बैठे गया था । आज उसका मन कर रहा था कि अपनी पुलिस की नौकरी की भी एक डायरी, यायावरी डायरी की तरह ही लिखें । मन तो कर रहा था लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि षुरुआत कहांँ से करें अचानक एक सवाल जो हवाओं में काफी अरसे से तैर रहा था सामने आ खड़ा हुआ। रणविजय सिंह ने वीआरएस क्यों लिया था । पुलिस की नौकरी करते समय तो उसमें हिम्मत नहीं थी कि वह सच को सच और गलत को गलत कह सकें। अपने ऊपर के अधिकारियों का डर लगता है लेकिन आज उसमें वह हिम्मत आ गई थी । आज उसे रोकने और डांटने वाला ना तो कोई डीजीपी था ना कोई एसपी था और ना ही कोई रंगबाज,अडंगेबाज नेता । बस अपने ही अतीत से लड़ रहा था वो । पुलिस में उसके साथ जो गुज़रा था वह उसको याद कर रहा था । अपने अतीत से लड़ना, अपने मन से लड़ना किसी छाया से लड़ने जैसा होता है । उसका मन किया वह पुलिस में चला गया था। ओशो ने कहा है मन का लगना धर्म नहीं है और नहीं लगना तो इंसानी आदत है । रणविजय सिंह के साथ हुई तो यही हो रहा था । मन ने कहा पुलिस में चल, तो वह चला गया किंतु वह धर्म तो नहीं था और मन पहले भी फौज के लिए नहीं था और पुलिस में भीतर का डर लेकर गया,वो शायद पुलिस के लिए बना ही न था। वहांँ रहते हुए अपने ही मन से लड़ाई करने लगा जो अपनी ही परछाई को काटने जैसा लग रहा था । क्या व्यक्ति

अपनी परछाई को काट सकता है ? वही कुछ उसके साथ घट रहा था वह अपने खयालों में खो गया था । ऊपर से हुक्म आया था अमरोहा कोतवाली में एक बदमाश को पकड़ा है उससे सच उगलवाने है और यह कबूल करवाना है की घटना को अंजाम उसी ने दिया था । आईजी बरेली रेंज ने वायरलेस मैसेज किया । रणविजय सिंह को अमरोहा कोतवाली में भेजो , वही उगलवा सकता है । एसपी ने तत्काल रणविजय सिंह को आदेश दिया । आदेश की पालना में रणविजय सिंह अमरोहा कोतवाली पहुंँचा और उस बदमाश को देखा अपने तरीके से पूछना शुरु कर दिया । जब उसने उसके मन मुताबिक उत्तर नहीं दिया तो उसको मारना पीटनाष्शुरू किया वो उसे मारता गया लेकिन वह हर बार एक ही बात एक ही जवाब कहता गया वह निर्दोष है उसे नहीं मालूम वह काम किसने और क्यों किया था । रणविजय सिंह को मिले आदेश के अनुसार उसे हर हाल में उससे यह कबूल करवाना था कि वह एक मुसलमान है और वह कांड उसी ने अंजाम दिया था । रणविजय सिंह को मन मुताबिक जवाब नहीं मिला तो वो बिना रुके बस पीटता गया। वह व्यक्ति हर बार कहता रहा कि वह एक ईसाई है मुसलमान नहीं है पिटते पिटते वो बेहोश हो गया लेकिन रणविजय सिंह को लग रहा था शायद अभी भी झूठ बोल रहा है क्योंकि रणविजय सिंह के दिलों दिमाग पर केवल अफसरों की कही बात पर विश्वास करने का नशा चढ़ा हुआ था । इधर वो आदमी जो ईसाई था अपने आप को मुसलमान कैसे मान लेता । वह व्यक्ति बेहोश हो गया उसको पानी के छींटे देकर फिर से होश में लाने की कोशिश करते हुए न जाने अचानक रणवीर सिंह के दिमाग में यह बात आई कि हो सकता है यह व्यक्ति सच बोल रहा हो । इतना मारने के बाद भी के बाद भी यह व्यक्ति वही बोल रहा है जो षुरू से बोल रहा है लगता है यह सच भी हो सकता है । हो सकता है यह मुसलमान ना हो यह भी हो सकता है यह सच में झूठ बोल रहा हो लेकिन इतना मारने के बाद तो भूत भी सच बोलने लगता है। ऐसा लगता है सच ही बोल रहा है । उसे धीरे धीरे होश आने लगा । फिर वही क्रम एक बार फिर से वो बेहोश हो गया था । आज तक रणवीर सिंह वही करता आया था जो उसके ऊपर वाले अफसरों ने कहा और जो वह चाहते थे । उसने वैसा ही किया लेकिन आज इस आदमी को देखकर इस आदमी को पीटने के बाद उसे देख कर ऐसा लगा षायद वह ग़लत कर रहा है । अपने ही विचारों में उलझा जा रहा था अपने अफसरों पर आंँख मूंदकर विश्वास करने वाला रणवीर सिंह आज कुछ अलग सोच रहा था । अचानक उसे लगा कि फिर से वह व्यक्ति होश में आ रहा है अभी । देखा जिंदा है एक बार फिर से रणवीर सिंह ने कड़क कर उसको कहा "बोलो सच बताओ तुम मुसलमान हो या नहीं ।" और वो धीरे से बुदबुदाया "नहीं सर ।"

"तो फिर कौन हो तुम ।"

"मैं एंथनी हूंँ सर और मुझे पता नहीं यहांँ क्यों लाया गया है ।"

"लेकिन फिर वह कांड?"

"किसने करवाया था मुझे नहीं मालूम था मैं बस वहांँ मटन लेने गया था तभी चार पुलिसवाले आए और मुझे पकड़कर यहांँ ले आए थे ।"

"मटन किसके यहाँं से ले लेने गए थे।"

सर वो इब्राहिम के यहाँं से।"

"मैं सच ही बोल रहा हूंँ मेरे पास कोई सबूत नहीं है अपने आपको सच्चा साबित करने का लेकिन बस यही कहँूंगा, प्रभु यीशु जानता है कि मैंने अपनी जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है । आप जान से भी मार देंगे तो भी सच यही रहेगा सर ।

रणविजय सिंह सोचने लगा था इसकी बातों में सच्चाई है तभी उसके जेहन में एक विचार कौंधा था ।

ऊपर वाले अफसर क्यों चाहते हैं कि इस आदमी को मुसलमान घोषित किया जाए और इसे क्यों फंसाना चाहते हैं।

उसने अपने स्तर पर ही गुपचुप तहकीकात शुरू कर दी। चौंकाने वाले तथ्य उसके सामने आने लगे। अपने आप पर गुस्सा आ रहा था । आज तक अपने ऊपर वाले अफसरों की बात मान कर उसने कितने ही निर्दोष लोगों को ....। अब उसे इस बात की भी चिंता भी सताने लगी कि इस आदमी से सच कबूल नहीं करवाया गया यह कि वह मुसलमान है तो फिर उसकी नौकरी का क्या होगा । पूरी रात सोचता रहा नींद नहीं आई थी । अभी सुबह जल्दी ही वो एंथनी की सेल में पहुंचा । एंथनी को कहा तुम यहाँं से भाग जाओ मैं तुम्हारी मदद करूंगा । वो आश्चर्य में पड़ गया, हो सकता है जो कल तक मार रहा था आज मुझे यहांँ से भागने के लिए कह रहा है कहीं मुझे भी गोली तो नहीं मार देंगे । वह भीतर ही भीतर डर भी रहा था लेकिन रणबीर सिंह ने उस को विश्वास दिलाया कि वो खुद उसकी रक्षा करेगा और उसको पूरी हिफाजत से किसी महफूज जगह पर पहँुंचा दिया जाएगा । एंथनी को वहाँं से भगा कर उसी समय उसने त्यागपत्र दे दिया । मजेदार बात तो यह थी किसी को अभी तक कानो कान खबर नहीं थी एंथनी भाग गया है त्यागपत्र को देखकर पूरा महकमा उसे मनाने में लग गया और इस मामले में और सब लोग उसको भूल गए। रणविजय सिंह ने एंथनी को एक महफूज जगह पर पहुंँचा दिया था और सुरक्षित ऐसा कि जहांँ पुलिस का परिंदा भी पर नहीं मार सकता था । रणविजय सिंह को याद आया उस रात जब वह एंथनी को पीट रहा था और बेहोशी के बाद वह जो कुछ बड़बड़या था तभी उसने एंथनी से उसने कहा था आज मैंने प्रभु यीशु को देख लिया है तुम सच्चे हो मैं गलत था मुझे माफ कर देना भाई । अनजाने में ही मैंने तुम्हें बहुत तकलीफ की है वक्त आने दो मैं उसका प्रायश्चित भी करूँंगा । पुलिस से भगा कर और सुरक्षित जगह पर उसे रखवा कर रणवीर सिंह अपना प्रायश्चित कर रहा था । आज के अखबार में एंथनी की फोटो छपी थी और लिखा था परवेज़ नाम का यह शख्स उस कांड के लिए जिम्मेदार है, तत्कालीन डीएसपी रणविजय सिंह के त्यागपत्र के बाद ही यह शख्स भाग गया है । रणविजय सिंह का नाम छाप कर एक संदेश को साफ हो गया अब उस पर भी संदेह कर सकती थी किंतु रणविजय सिंह की छवि ऐसी थी कि कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहता था उस पर । वो डायरी लिखे जा रहा था रणविजय सिंह अखबार की खबर के बाद और अधिक चौकन्ना हो गया था छोटी सी भी गलती दोनों की जान को खतरा बन सकती थी और पुलिस के साथ-साथ उस मंत्री के भी गुंडे भी कुत्तों की तरह एंथनी को सूंघते फिर रहे थे । यह वही मंत्री था जिसने वो कांड करवाया था और ठीकरा एंथोनी के सिर फोड़ा जा रहा था ।जिसकी जांच गुपचुप तरीके से रणवीर सिंह ने की थी जिससे यह साफ हो गया था कि वो काण्ड उस मंत्री ने आने वाले चुनावों मे उसकी जीत हो जाए इसलिए करवाया था । राजनेताओं का कोई धर्म नहीं होता है । एक चुनाव जीतने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते हैं । इस बार भी ऐसा ही था पूरा काण्ड करवाया मंत्री ने लेकिन उसका पूरा ठीकरा रणवीर सिंह के सर पर भी फोड़ना चाहते थे । इधर चुनाव की घोषणा हो चुकी थी मीडिया बार-बार उसका फोटो दिखाकर उसे परवेज घोषित करने में लगा हुआ था । वैसे भी नब्बे प्रतिशत से ज्यादा मीडिया तो सरकार के हाथों बिका हुआ था। इसलिए मीडिया वही बात कह रहा है जो सरकार के पक्ष की हो, जो मंत्री के पक्ष की हो और जिस में सरकार को फायदा होता है । हिंदू और मुसलमान का मसला जानबूझकर उछाला जा रहा था । मुसलमानों को देशद्रोही बताया जा रहा था । यह सरकार की सोची-समझी रणनीति थी जिसको वह बिका हुआ मीडिया बढ़ा चढ़ा कर बता रहा था । एंथोनी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी गई और इधर रणविजय सिंह पर भी नजर रखी जाने लगी थी।उसका और उसके परिवार का फोन सर्विलेंस पर था। वो ये सब हथकंडे जानता था। इसलिए उसने एंथोनी की सुरक्षा पहले पुख्ता कर दी थी। देश के बाहर इंतजाम करवाया था उसके छिपने का और उसे डीपोर्ट कर अण्डरग्राउण्ड कर दिया था । चुनावों की घोषणा हो चुकी थी । मंत्री जी अब लोकसभा के चुनाव में व्यस्त हा गए थे, वह खुद भी चुनाव लड़ रहे थे । इतने गुनाह करने के बाद भी इतने लोगों को उस कांड में मरवाने के बाद भी मंत्री जी एकदम सफेद दामन लिए हुए और यूपी पुलिस का सबसे बड़ा सोलर रणवीर सिंह मोन था । चुनावी रैलियों मे इस बार वही काण्ड मुख्य मुद्दा बना हुआ था। वो सब कुछ देख रहा था टेलीविजन पर, किन्तु कौरव सभा में पितामह की तरह, जहांँ सियासत में चीरहरण तो हो रहा था किंतु सभा मोन थी , जनता मोन थी । चीर हरण होता रहा , बलात्कार होता रहा सच्चाई का , संस्कारों का । फरेब जीत रहा था ,रणवीर सिंह का चक्र भी अपनी अंगुली में ही रहा, चल नहीं पाया था । उसे पता था मंत्री जी एक बार फिर चुनाव जीतकर फिर से मंत्री बन जाएंगे वही मौत का तांडव होगा, वही हिंदू मुसलमान होगा ,वही कांड होंगे और वह सब यूंँ ही देखता रहेगा। कुछ नहीं कर पाएगा क्योंकि मंत्री जी का कद इस चुनाव के बाद और बड़ा हो जायेगा और उसका दामन रहेगा एकदम साफ, बस एकदम झक सफेद है।



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