पति का आरक्षण
पति का आरक्षण
आज अचानक ही रोहन की नजर अखबार के साहित्य पन्ने पर पड़ी और अपने मित्र लेखक कवि की एक कविता पर कविता की पंक्तियां थी
अपने इरादों को सुरों की झंकार दो
उठो बस तुम गांडीव को टंकार
हो अजय तुम बस उठो पार्थ बनो
दुश्मन सामने है सिंह हुंकार दो
तेरे कांधों पर है अब यह बोझ सारा
शेषनाग सा ले धरती को वार दो
तुझे धरा पुकारती ओ सुत भारती
अपने हाथों से हरा श्रृंगार दो
किसी रोते हुए नन्हे बच्चे को
बस नन्ही सी थपकी से बस
तुम पुचकार दो ।
अपने भीतर के दर्द को संजोए रखने वाले रोहन को न जाने कैसा सुकून मिला । धीरे से अखबार को एक कोने में रखकर फिर से स्मृतियों में खो गया । कानों में आज भी वो शब्द गूँज रहे थे - मुझे यहाँ के तौर तरीके नहीं मालूम है । लोग मुझे अजनबी समझते हैं एक आप है जो पता नहीं शायद अलग लगते हैं।
- अलग लगता हूं मतलब मैं तुम्हें आदमी जैसा नहीं देखता हूँ
-आप ही केवल इंसान दिखते हैं, नहीं तो लगता है यहाँ किसी ने लड़की को देखा ही नहीं है सब ऊपर नीचे तक मेरा एक्स रे करते रहते हैं ।
-ऐसा कुछ नहीं है
-नहीं सर औरत को भगवान ने सिक्सेंस बहुत ज्यादा दिया है वह चाहे छोटी सी लड़की हो या फिर बड़ी उम्र की महिला पुरुष की नजरों को ताड़ लेती है
-ओके सब ठीक हो जाएगा तुम बस जरा सहज रहा करो और हां थोड़ा सा रिलैक्स रहो ,रिलैक्स मूड में काम ठीक से हो पाता है। टेंशन में काम बिगड़ता ही है
- जी सर
और फिर वह लड़की रोहन के कमरे से चली गई जैसा नाम वैसी ही फितरत स्वीटी हां यही नाम था उस लड़की का और वाकई स्वीटी ही है। बहुत ही सहज भाव से अपनी बात कहना और काम करने का नया सीखने की ललक । यही उसे औरों से अलग करती है कितनी सहज है यह लड़की । इस लड़की में सीखने की ललक है लेकिन इस सहज भाव के पीछे मुझे लगता है इसकी आंखें किसी बड़े दर्द को छुपाए हुए हैं । यही सोच रहा था कि वह लड़की एक बार फिर से उसके कमरे में आ गई । सर आज आपने अखबार में यह कविता पढ़ी पता नहीं ये कवि लोग भी क्या क्या सोच लेते हैं ।
अपने वीरानों को सुरों की झंकार दो
देखिए ना सर
हाँ ये ऐसे ही लिखता है चौराहे पर खड़े आदमी तेज चुभती रोशनी के बीच भीतर छुपा अंधेरा और उसी में इसकी कविताएं।
सर आप इन्हें जानते हैं
हाँ मेरा दोस्त है पिछले पच्चीस सालों से हम साथ साथ हैं
सर मुझे भी मिलवा दो ना एक बार प्लीज, प्लीज सर
ओके देखते हैं अबकी बार आएगा तो मिलवाता हूं
और बस अपने काम में लग गया था वो इधर स्वीटी के काम में दिन प्रति दिन निखार आ रहा था । एक दिन अचानक ही रोहन ने स्वीटी से कहा -
आजकल काफी अच्छा काम करने लगी हो वेरी गुड ।
थैंक यू सर
कई बार मैं सोचता हूं तुम खुश नहीं हो काम पसंद नहीं है क्या ?
मैं तो पूरा मन लगाकर काम करती हूं सर आपको ऐसा क्यों लगा था?
कुछ नहीं बस लगा कि तुम खुश नहीं रहती हो । मुझे लगता है कि खुश रहने के कागज़ी पहरन तुमने ओढ़ रखे हैं । उदासी और हताशा कहीं गहरे में बैठी है तुम्हारे भीतर ।
सर आप-
आई मे बी रॉन्ग बट मेरे को ऐसा लगता है। एम सॉरी मुझे इस तरह का सवाल नहीं करना चाहिए था।
नहीं सर आप सॉरी मत बोलिए सर ।
और धीरे-धीरे बड़े-बड़े हिमखण्ड अपने ऊपर लिए हिमालय सी भीतर के दर्द की ज्वाला से पिघलने लगे । भीतर की ज्वाला किसी को नहीं छोड़ती है। बड़े-बड़े हिमखंडों को पिघलाकर बाहर ले जाती है । यही दर्द की ज्वाला मैंने देखी है । स्वीटी के भीतर के दर्द की ज्वला ने भी मन पर जमी हुई बर्फ को पिघला दिया था और वही बर्फ आँसू बनकर बहने लगी थी। रोहन का मन कर रहा था कि उसके आंँसू पौंछ दे लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया । थोड़ी देर बाद स्वीटी आँसू पोंछ कर अपने कमरे में चली गई । रोहन सोचने लगा अविवाहित स्त्री के मन पर असुरक्षा बोध किस कदर हावी हो जाता है । और यह असुरक्षा का भाव अतीत की स्मृतियों के कारण हो सकता है या फिर - - - । उदासी और हताशा की जड़ में हमेशा अतीत की स्मृतियां ही होती है । वह सोच ही रहा था कि अचानक ही अपने मित्र लेखक की उस कविता की अंतिम पंक्ति पर उसकी नजर टिक गई थी । किसी रोते हुए नन्हे से बच्चे को बस नन्ही सी थपकी से तुम पुचकार दो । यह ठीक रहेगा उसने स्वीटी की प्रॉब्लम जानने की कोशिश की पता चला कि वह अपने घर के वातावरण से परेशान थी । माता-पिता की रोज की लड़ाई से तंग आ चुकी थी । उनकी इस लड़ाई के कारण वह दोनों ही लगभग भूल चुके थे कि स्वीटी की शादी की उम्र भी निकली जा रही है । स्वीटी को समझाते हुए रोहन ने कहा
- देखो तुम्हारी प्रॉब्लम कोई प्रॉब्लम नहीं है पापा मम्मी अगर झगड़ते हैं तो कोई बात नहीं उन्हें समझाने की कोशिश करो नहीं समझते हैं तो हमें उनके हाल पर छोड़ दो । तुम अपनी जिंदगी को क्यों इस तरह बना रही हो। हां कोई अच्छा सा लड़का देखकर विवाह कर लो।
- सर मैं कहाँ से देखूंगी लड़का व
ो तो मां-बाप का फर्ज है ना
हां वो तो है पर यदि वह नहीं देख रहे हैं तो तुम खुद देख लो ।
सर आप ही देखे ना
मैं - - मैं तो ज्यादा को जानता भी नहीं हूँ तुम्हारे बारे में, चलो फिर भी देखते हैं ।
और समय के साथ दोनों अपनी बातें शेयर करने लगी एक दिन तो रोहन ने उससे पूछ ही लिया बताओ तुम्हें लड़का कैसा चाहिए ?
सर एकदम आपके जैसा है
क्या मेरे जैसा
एकदम आपके जैसा
तुम भी मजाक के मूड में लग रही हो
मैं बहुत सोच समझकर कह रही हूं और वह भी एक दम अच्छे से सोच कर मैं कोई मजाक के मूड में नहीं हूँ सर।
लेकिन मुझ में तो ऐसी कोई खास बात नहीं है फिर भी ?
मैं जानती हूं आप में कितनी तरह की खास बातें हैं मैंने बहुत करीब से देखा है आपको । और मैं जानती हूं कि इस जन्म में मैं आपसे विवाह नहीं कर सकती लेकिन भगवान जी से अगले जन्म के लिए एडवांस बुकिंग कर लेती हूँ अगले जन्म के लिए अपने पति का आरक्षण कर लेती हूँ और अगले जन्म में मुझे केवल आप ही पति के रूप में चाहिए ।
तुम्हारा दिमाग तो सही है ना पागल हो तुम एकदम बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देती हो
सॉरी सर मैंने जो भी बोला है सोच समझकर बोला है केवल आप जैसे पति की कल्पना करती हूँ मैं और अब तो मैंने आपको अगले जन्म के पति के रुप में स्वीकार भी कर लिया है ।
कल्पना और यथार्थ में बहुत बड़ा अंतर होता है
सर कल्पना को साकार भी तो हम ही कर सकते हैं ना अपने कर्मों से
तुम्हारा ज्ञान तुम अपने पास रखो ,तुम औरतों को ना शायद भगवान भी नहीं समझ पाता है यह बात भी कोई बात हुई आदमी की मर्जी हो ना हो तुम लोग अपने अगले सात जन्मो तक के लिए उसी पति का एग्रीमेंट कर लेती हो कभी करवा चौथ का व्रत करके कभी वट सावित्री व्रत और कभी कुछ और। उस आदमी से भी कभी पूछा है कि वह तुम्हें अगले जन्म में पत्नी के रूप में चाहता है कि नहीं ।
सर अब आप मुझे चाहते हैं कि नहीं ?
अभी स्वीटी प्लीज तुम अभी बातें बंद करो
मैंने भगवान जी से अगले जन्म के लिए आपका आरक्षण कर लिया है आपको पति के रूप में पाने के एग्रीमेंट मैंने कर लिया है। तब तक शादी का इरादा कैंसिल ।
पति का आरक्षण कर लिया है मैंने अगले जन्म के लिए रह रह कर यही पंक्ति सोचने पर मजबूर कर रही थी । स्वीटी ने ऐसा क्यों कहा यही बातें सोच रोहन का दिल और दिमाग उधेड़बुन में लगा रहा लेकिन यह भी सच था कि रोहन के दिल में भी स्वीटी के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर था। वह धीरे-धीरे पसंद करने लगा था लेकिन उसे जाहिर भी नहीं होने दे रहा था क्योंकि यह समाज किसी भी रिश्ते को टिकने नहीं देते हैं और बेवजह बदनाम करते हैं। यह सही भी है कि जिसे हम पसंद करते हैं उसे तकलीफ में नहीं देख सकते हैं । अगली सुबह रोहन को इंतजार था तो सिर्फ स्वीटी का
- गुड मॉर्निंग सर
गुड मॉर्निंग आज तो तुमने आने में बहुत देर लगा दी
देर तो हो गई सर
स्वीटी के आगे कुछ बोलने से पहले ही रोहन ने कहा
क्या कोई प्रॉब्लम हो गई थी तुम्हारी तबीयत ठीक है ना गाड़ी से तुम गाड़ी से तो नहीं गिर पड़ी तुम स्वीटी ?
वो चुपचाप रोहन को देखती रही खड़ी रही फिर बोली
नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं थी सुबह देर से उठी थी रात में लेट सोई थी ।
उसके लिए इतना क्यों सोच रहा है उसके दिमाग मेंना जाने कितने ही प्रश्न आ रहे थे जा रहे थे और सवालों का जवाब उसके पास नहीं था ।
एक बात पूछूं तुमने ऐसा क्यों कहा कि पति के रूप में तुमने मेरा आरक्षण कर लिया है नहीं बस ऐसे ही पूछ रहा हूं मेरे जैसा आदमी तुम्हें क्यों चाहिए ?
आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो, आपने मुझे हर जगह सपोर्ट किया है मेरी बातों को ध्यान से समझा है और सलाह दी । आप मुझे इतने अच्छे से समझते हो और कहीं ना कहीं मैं आपको पसंद करती हूँ मुझे नहीं पता कि यह गलत है या यह सही है लेकिन यह सच है कि मैं आपको बहुत पसंद करती हूँ। आपका घर परिवार है ऐसे में मैं कोई काम नहीं करूंगी जिससे आपको या मुझे कोई परेशानी हो। मैं तो बस इंतजार कर सकती हूं तो मैंने इंतजार अगले जन्म तक के लिए तय कर लिया है । वो सारी बातें सुनता रहा । और रोहन इस तरह बैठ बातों को सोच रहा था कि खामोश रहने वाली लड़की भी ऐसा सोच सकती है । अकेलापन इंसान को खा जाता है और इसी अकेलेपन के चलते उसे जरूरत थी तो सिर्फ प्यार की और वह भी उसे कभी अपनों से नहीं मिल पाया । कितना सच्चा है इसका दिल बिना कोई सवाल जवाब किए मुझ पर इतना विश्वास कर लिया । यह भी फिक्र नहीं कि यह सब सुनकर मेरा इसके बारे में क्या जवाब होगा मैं क्या सोच लूंगा और मुझसे इतना प्यार करती है कि अगले जन्म के लिए पति के रूप में मेरा आरक्षण भी कर लिया । कुछ ही दिनों में स्वीटी का तबादला हो गया था और शादी भी सब कुछ बदल गया लेकिन कुछ नहीं बदला था तो वो था स्वीटी की यादों का सिलसिला। अगले जन्म में पति के आरक्षण का खयाल । यदि अगला जन्म होता है तो निश्चय ही वह रहना चाहेगा स्वीटी के लिए भी आरक्षित रहना ।