Yogesh Kanava

Abstract Inspirational

4.0  

Yogesh Kanava

Abstract Inspirational

संबंधों के शव

संबंधों के शव

6 mins
160



     आज सुबह-सुबह ही संदेश को न जाने क्या सूझी वह अपनी पुरानी डायरी लेकर बैठ गया था अपने लिए की पुरानी कविताएं गीत और ग़ज़लें देख खुद ही मुस्कुरा लेता और पन्ना पलट देता था । पुराने लम्हात जैसे जीवित हो उठे हों । डायरी में लिखे सतरंगी लम्हात जो कभी गुदगुदाते से, कभी हंसाते, कभी रुलाते से । इन्हीं में खोया संदेश आज पूरी तरह छुट्टी के मूड में था । बीते हुए लम्हे जीवित हो उठे थे । बस यूं ही पन्ने पलटते पलटते उसकी नज़र एक ग़ज़ल पर पड़ गई । पूरे दस बरस पहले लिखी थी ये ग़ज़ल । ना जाने क्यों उतना ही दर्द आज भी दे रही थी ये ग़ज़ल जितना इसे लिखते समय दिया था इसने ।

           रजत पथ यहाँ धूल बन जाएंगे 

              फूल भी दूंगा तो शूल बन जाएंगे 

              मैं जानता हूं वक्त जालिम है बहुत 

                किनारे भी मजेदार बन जाएंगे 

                  वक्त दुश्वार सही न पतवार सही 

                     मेरे हाथ ही बस पतवार बन जाएंगे 

                      कमी नहीं है यहां नाखुदाओं की 

                        हौसले मेरे खुद एतबार बन जाएंगे 

                         लगेगी सफीना साहिल पर ज़रूर 

                            खिजां के दरख्त बहार बन जाएंगे 

                              पछताओगे तुम एक दिन जरूर 

                                फूल अपने ही शूल बन जाएंगे ।।

       एक एक कर सारी बातें उसे याद आ रही थी। मिस्टर शर्मा के परिवार से संदेश के पारिवारिक संबंध हो गए थे । एक ही दफ्तर में काम करते थे दोनों, मिस्टर शर्मा वहां के हैंड और संदेश एक सबओरडिनेट रूप् मे कार्य कर रहे थे । सभी जानते थे कि संदेश सबसे बेहतरीन वर्कर थ वहाँ का । संदेश की यही खूबी उसे औरों से अलग खड़ा करती थी जो कि सभी के भी मन में भा जाती थी । इस पर कविताएं लिखने का शौकीन संदेश प्रायः अपनी कविताएं मिस्टर शर्मा को जरूर सुनाता था। शर्मा भी संदेश की कविताओं के बड़े प्रशंसक थे। शर्मा जी का बड़ा बेटा तो संदेश का जैसे दीवाना ही था। संदेश के लिखे एक एक शब्द उसे जबानी याद थे । ज्यादातर ऐसे ही होता था कि संदेश अपनी लिखी कविता की पंक्तियां भूल जाता था लेकिन शर्मा जी का बेटा याद रखता था। वक्त धीरे-धीरे करवट बदलता रहा संदेश का लेखन दिन ब दिन और निखरता गया। इसी कारण शर्मा जी और उनका बेटा ही नहीं और भी कई लोग संदेश को बेहद चाहते थे। इन्हीं में से एक थी विशाखा जो दीवानगी की हद तक संदेश को और उसकी कविताओं को पसंद करती थी। वह हमेशा कहती थी कि संदेश तुम्हारी कविताओं मे जादू है जो किसी को अपना बना सकता है। कहां से सीखी है यह जादूगरी? इस सवाल पर संदेश बस मुस्कुरा देता था। मन तो उसका भी करता था कि जवाब दे लेकिन बस मुस्कुरा देता था। वो मुस्कुरा देता और नई कविता लिख देता । इसी तरह विशाखा को लेकर संदेश ने न जाने कितनी ही कविताएं लिखी। अभी विशाखा मन ही मन उसे बेइंतेहा प्यार करने लगी थी। संदेश बस अपनी चाहत का इजहार केवल कविताओं के माध्यम से ही करता था। उसका अपना अंदाज था इज़हारे इश्क का और हो भी क्यों ना और संदेश कवि जो ठहरा।

       वो बैठा सोच रहा था कि जिंदगी की सर पीली पगडंडियों पर चलते कब विशाखा और मैं बढ़ गए थे उस अनजान डगर की तरफ जहां पौष धूप की तरह यह संबंध मन को भा रहा था लेकिन पौष का सूरज भी तो प्रौढ़ पुरुष की ही तरह होता है देर से जागता है और जल्दी सो जाता है । ऐसा ही इन दोनों के संबंध के साथ हुआ । संबंधों की धूप को जाने कब कौन सा कैसा कुहासा निगल गया । इस कुहासे के बीच दोनों के हाथ से संबन्धों की डोर छूट चुकी थी। विशाखा की डोर को पकड़ लिया प्रौढ शर्मा जी ने । यूँ तो शर्मा जी संदेश के प्रशासक प्रशंसक थे किंतु मन ही मन उनको टीस भी होती थी एक दलित व्यक्ति की महिला मित्र ब्राह्मण कन्या कैसे हो सकती है । अब इसी के कारण शर्मा जी को संदेश में हजारों कमियां लगने लगी ।यह अंकुरण था उस बीज का जो उसके मन में पल रहा था, विशाखा के लिए। बस यहीं से शर्मा जी को संदेश में हज़ारों कमियाँ लगने लगी। आए दिन वो संदेश को डाँटने लगे। उनका यह व्यवहार पहले तो संदेश को समझ में नहीं आया किंतु एक दिन उसने खुद ही शर्मा जी को और विशाखा को बातचीत करते हुए देख लिया और सुन लिया । शर्मा जी कह रहे थे तुम एक होनहार लड़की हो काम तुम करती हो उसका पूरा क्रेडिट ले जाता है वह संदेश । तुम खुद सोचो अगर उसके गीतों को तुम स्वर नहीं दो तो क्या वह इतना पॉपुलर हो पाएगा। पॉपुलेरिटी उसके गीतों में नहीं तुम्हारी आवाज़ में है। अपनी आवाज़ के जादू को पहचानो, तुम्हारी आवाज़ में वो जादू है ,जो किसी के भी गीतों को पॉपुलर कर सकता है फिर ये संदेश क्या है ? मगर सर संदेश भी तो अच्छा लिखता है। नहीं यह तुम्हारी ग़लतफहमी है, मैंने कहा ना तुम अच्छा गाती हो, वैसे एक बात कहूँ जरा सोचो ,एक दलित पिछड़ी जाति के आदमी के साथ रह पाओगी तुम ? उसका खान-पान, रहन-सहन सभी कुछ तो.............। ख़ैर मेरा काम तुम्हें समझाने का है, बड़ा हूँ और मेरी ही जाति की हो तुम- स्वजाति दुरातिक्रमों सुना है ना तुमने। जी सर, सर आप बहुत अच्छे हैं, मैं मानती हूँ सर। शर्माजी इसी वक़्त की ताक में थे। वक़्त का फायदा उठा उन्होंने विशाखा को सीने से लगा लिया, और विशाखा ना जाने क्यों उनकी बातों आ गई। और फिर एक दिन उसने संदेश पर आरोपों की झड़ी लगा दी। संदेश एकदम टूट-सा गया था। शर्माजी ने उसे अपने कमरे में बुला कर मीमो थमा दिया था ,जिसमें उस पर लगे तमाम आरोपों का स्पष्टीकरण मांगा गया था। वो क्या स्पष्टीकरण देता, उस कहानी का ,जिसके लेखक और निदेशक स्वयं शर्माजी थे। स्पष्टीकरण नहीं देने के कारण एक दिन संदेश को सस्पेण्ड कर दिया गया। एक दिन विशाखा उसे यूँ ही रास्ते में मिल गई ,तो बरबस ही उसके मुँह से निकल पड़ा - तुम शर्माजी से पंगा मत लो वो बड़ा ही कमीना आदमी है वो , उसने मुझे तुम्हारे खिलाफ इस्तेमाल किया है । एक तरफ से तुम्हारे से अलग करवाया और दूसरी तरफ मुझे उसने बरबाद कर डाला.........। वो रोने लगी थी संदेश उससे दूर ही खड़ा रहा ,उसने बस इतना ही कहा, मर चुका है वो कवि-              

                 मत कुरेदो

                 जो कुरेदोगे तो

                अवशेष कवि के कहेंगे

                नहीं दे पाया वो सब ,हो सके तो 

                मुझे दुबारा ज़िन्दा मत करना

                मैं विषाद की प्रति छवि

                मैं खुशियाँ नहीं दे सकता हूँ ।

बस इतना कह कर वो तेजी से चला गया। इधर विशाखा शून्य में ताकती रही और उधर शर्माजी मुस्कुरा रहे थे ,एक ही तीर से तीन शिकार हो गए विशाखा को पा लिया, संदेश से अलग कर दिया और संदेश जैसे दलित को सवर्ण से प्रीत जोड़ने पर सजा भी दे दी। अपनी ही कुटिलता पर गर्वित शर्मा जी, अपनी मूँछों को मरोड़ते, दफ़्तर में संदेश को बुला कर झूठी सांत्वना देने का प्रयास कर रहे थे ,तभी संदेश ने कहा- सर मैं सम्बन्धों के शव को काँधों पर ढोने का आदि नहीं हूँ, शव को कंधे पर ढोओगे तो सड़ांध ही आएगी, और मैं सड़ांध के बीच नहीं रहा करता हूँ। आपके और मेरे सम्बन्ध कभी के मर चुके हैं। सड़ांध से पहले ही मैं सम्बन्ध के इस शव को दफन कर चुका हूँ। हाँ पर एक बात याद रखना- याद रखना 

              तुम्हारे अपने ही फूल शूल बन जाएंगे। 

             पछताओगे तुम एक दिन ज़रूर, 

              ये रजत पथ सब धूल बन जाएंगे। 

             तुम्हारे अपने ही फूल....................।

बस इतना कह कर वो वहाँ से चला गया और शर्माजी ठगे से बस उसे जाते देखते रहे ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract