कहीं मुँह छिपाये बैठा है। भाग गया नामर्द, मेरी झोली में अपनी मर्दानगी डालकर, मुझे हालातों से अकेली ल... कहीं मुँह छिपाये बैठा है। भाग गया नामर्द, मेरी झोली में अपनी मर्दानगी डालकर, मुझ...
मैं इसे पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करूँगी।" " हमें नामर्द कहते हो, और तुम ?" " आ......क्.......... मैं इसे पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करूँगी।" " हमें नामर्द कहते हो, और तुम ?"...
मर्द के वेश मे यहाँ बहुत नामर्द घूमते हैं। मर्द के वेश मे यहाँ बहुत नामर्द घूमते हैं।
ख़ैर पुरोहित जी का आज का इस प्रकार का व्यवहार समझ में नहीं आया था ख़ैर पुरोहित जी का आज का इस प्रकार का व्यवहार समझ में नहीं आया था
चाह कर भी कोई कुछ नहीं कर सकता, समाज में निरंतर बढ़ रहे अन्याय-अत्याचार के खिलाफ... यह लाचारी क्यों औ... चाह कर भी कोई कुछ नहीं कर सकता, समाज में निरंतर बढ़ रहे अन्याय-अत्याचार के खिलाफ....