मर्द

मर्द

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“ए चिकने...कुछ जेब खाली कर न…”,

बल खाती आवाज़ के साथ एक हाथ उस सुनसान बस स्टैंड पर खड़े अकेले युवक की खुरदुरी जींस की पाकेट पर लहरा गया।

“चल...परे हट..”।,

युवक उसका हाथ झटक कर कोई गंदी गाली देने ही वाला था कि अचानक कुछ सोच कर जेब से बटुआ निकाल उसने बिना देखे ही पचास का नोट बाहर खींच लिया।” ले...और जल्दी से दफ़ा हो।”

नोट हाथ में आते ही किन्नर की दृष्टि उधर दौड़ गई जिधर वह युवक देख रहा था।….सुनसान रास्ते पर अकेली लड़की जल्दी जल्दी इधर ही आ रही थी।शायद आफिस से देर हो गई थी। इस सुनसान जगह से आखिरी बस रात नौ बजे जाती थी। अभी पौने नौ बजा था।

“बस तो आज आएगी नहीं मैडम… चलो जहाँ जाना है मैं पहुंचा देता हूँ।”, वह शोहदा सा दिखने वाला युवक अचानक ही जैसे मर्दानगी से भर उठा।

“नहीं….मैं बस का इंतजार करूंगी।”

लड़की ने स्वर को यथा संभव कठोर करते हुए कहा तो युवक ने बेशर्मी से उसकी कलाई पकड़ ली,

”चलेगी कैसे नहीं… माँ कसम आज तो तुझे घर मैं ही पहुंचाऊंगा।”

लड़की ने छूटने की कोशिश की तो उसने गिरफ्त और तेज़ कर दी,

”चल उधर पेड़ के पीछे….वरना...”

“बचाओ…”,लड़की की निरीह दृष्टि सामने खड़े किन्नर पर पड़ी।

“अरे ये हिजड़ा क्या करेगा….यह किन्नर तुझे बचाएगा ?”

युवक बेशर्मी से हँसा और अचानक जैसे किन्नर की चेतना जाग उठी..… एक पल में ही अभी तक नारीत्व की मोहक अदाओं से युवक को रिझाते हुए किन्नर के भीतर की औरत की एक झटके से मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर जीवित हो उठा एक मर्द।

“ क्या कहा तूने….हिजड़ा….?” गोरिल्ले की तरह लपक कर उसने युवक की गर्दन दबोच ली..

”चिकने… एक अकेली औरत के साथ जबरदस्ती करने पर तू अपने आप को मर्द समझता है….अरे मर्द तो वो होता है जो उसकी हिफाज़त करे….बहुत मर्दानगी है न तुझमें.. आ लड़ मेरे से…”,क्रोध से कांपते किन्नर की आंखों में जैसे खून उतर आया।

”छोड़ दो मुझे… अब नहीं करूँगा।”, अचानक उस चंडी रूप को देखकर युवक डर गया तो एक झटके से किन्नर ने उसकी गर्दन आज़ाद कर दी।

“जा..भाग यहाँ से...आगे कभी इस इलाके में नज़र भी आया तो….तुझे भी किन्नर बना दूँगी…”

“जा बहिन… तेरी बस आ गई….संभल कर जाना.. और हाँ आगे से अकेले इस बस स्टाप पर मत आना। मर्द के वेश मे यहाँ बहुत नामर्द घूमते हैं।”


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