अंतर

अंतर

2 mins
642


"जानती हो मधु..जब मैं ब्याह के आई थी तो मुझे अपने मायके से ससुराल बहुत अलग लगी थी पर धीरे धीरे मेरी सास ने मुझे यहीं के रंग में ढाल दिया...बहुत प्यार करती थीं वह मुझे। मैं भी अपनी बहू शिखा को यहां के सारे तौर तरीके बताऊंगी।",राधा ने बनारसी साड़ी का पैकेट उठाते हुए कहा।

"पर मैं तो उसे बेटी बना कर लाऊंगी उस पर कोई बंधन नहीं होगा।", मधु ने बहू के लिये जींस ख़रीदी थी।

राधा और मधु बचपन की सहेलियां थीं। दोनों के बेटों के विवाह अगले माह आगे पीछे थे।

"मधु..बेटी और बहू में अंतर होता है....किसी के घर की बेटी को अपना बनाने के लिए पहले उसे बहू बना कर अपने तौर तरीके और रिश्तों के सांचे में ढालना होता है तब वह समय के साथ धीमे-धीमे बेटी बनती है....वरना न वह बेटी होती है और न ही बहू बन पाती है।"

"आंटी नमस्ते..."शिखा ने झुक कर मधु के पैर छुए तो वह अतीत से बाहर निकल आई।

आधुनिक पोशाक होते हुए भी कितनी शालीनता थी उसके आचरण और पहनावे में।

उसकी आँखों में अपने घर का दृश्य घूम गया जहाँ पहले दिन से ही उसने अपनी बहू रागिनी को पूरी छूट दे दी थी जिसका उसने भरपूर फ़ायदा उठाया। दिन पर दिन उसकी बढ़ती स्वछन्दता अब मधु को भारी पड़ रही थी।

"लो यह हलुवा खाओ...शिखा ने बनाया है बिलकुल वैसा ही जैसे मेरी सास......"राधा बहू की प्रशंसा मे बोल रही थी पर मधु के भीतर एक ही बात उठ रही थी, 'बहू और बेटी के बीच एक फ़ासला होता है जिसको पाटने के कुछ नियम हैं पर वह अपने उत्साह में उन नियमों को अनदेखा कर गयी थी।'


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama