खूँटा
खूँटा
"लोग क्या कहेंगे"? यही सोच सोच कर शिखा ने आठ बहुमूल्य वर्ष घुट घुट कर निकाल दिये।विवाह की प्रथम रात्रि को ही प्रकाश की साँसों मे शराब की बदबू और लफ़्जों की बदज़ुबानी से उसे अपने अंधकारमय भविष्य का अंदाजा लग गया था पर हर दिन एक झूठी नयी उम्मीद और बदनामी के भय से वह जीती रही। इस बीच दो बच्चों का भविष्य भी उस से जुड़ गया था।
पति इन्श्योरैन्स मे थे पैसा भी ठीक ठाक था...पर प्रकाश का पशुवत व्यवहार.... गाली गलौज...
"बेटा..कैसे बोल रहे हो...",छैः वर्षिय सुमित के गंदे शब्दों पर उसने रोष जताया तो वह तुरन्त बोल उठा,
"पापा भी तो ऐसे ही बोलते हैँ"।
सन्न रह गयी शिखा....,'क्या बच्चों के इसी भविष्य के लिए वह इस खूंटे से बंधी है...कि दो प्रकाश और बना कर दो और ज़िन्दगियाँ ख़राब करे'।
रास्ता अभी बंद नहीं था। वह बी.एस.सी. थी कहीं भी नौकरी कर लेगी।मस्तिष्क के सारे जाले एक झटके से साफ हो गये।
बच्चों के कपड़े सूटकेस मे जमाते समय उसकी आंखों मे एक नयी उड़ान के सपनों की चमक भरी थी।
