हत्यारा

हत्यारा

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कितनी बार मैंने उसके मुँह से सुना था, "करमजली मर क्यों नहीं जाती...न जाने कितनों को और खाएगी।" और आज वही रजिया अपनी उस जवान पगली बेटी की मौत पर बेतहाशा रोए जा रही थी, "मेरी फूल सी बच्ची...तेरे बिना मैं कैसे जियूँगी...।"

हालांकि मैय्यत उठने के बाद भी वह समय ऐसी बात कहने के लिए उपयुक्त नहीं था पर मेरे जिज्ञासु शब्द स्वतः ही मुँह से फिसल गए।

"पर रजिया...तुम तो खु़द ही..."सुन कर रज़िया का चेहरा दर्द की लकीरों से जैसे आढ़ा तिरछा हो गया।

"हाँ बीबीजी...मैं चाहती थी कि वह मर जाए...जानतीं हैं क्यों...क्योंकि वह बहुत खूबसूरत और जवान थी और साथ ही पागल भी...पर न उसे अपनी खूबसूरती का एहसास था न ही जवान जिस्म का...आसपास के लफंगे ताक लगाए रखते थे। उसके अब्बू और मैं आखिर कब तक उसकी हिफाज़त करते...हम गरीब मुश्किल से दो जून की रोटी ही खा पाते हैं उसका इलाज कहाँ से कराते...कई बार तो सुबह खेत में...।" उसका गला भर आया पर वह बोलती गई, "यहाँ तक कि उसे अकेले पा घर के सगे रिश्तेदारों ने भी...बीबीजी...आपको नहीं मालूम चार बार मैंने सरकारी अस्पताल मे उसके पेट की सफाई करवाई...आखिर और कितनी हत्याएँ करवाती मैं...मुझे अल्लाह को भी मुँह दिखाना है...पर वह मेरी बेटी थी मेरे जिगर का टुकड़ा...।" कहते हुए रजिया फूट-फूट कर रो पड़ी...।

और मैं सोच रही थी आखिर हत्यारा कौन था...रजिया...उसकी पागल बेटी रुखसाना या फिर वह दरिन्दा जिसने मानवता को शर्मसार किया था ?


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