Er Rashid Husain

Abstract Horror Romance

4  

Er Rashid Husain

Abstract Horror Romance

वो कोन थी

वो कोन थी

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889


जाड़ों की सर्द हवाएं चल रही थी रात के लगभग दो 2:00 बज चुके थे थोड़ी-थोड़ी देर बाद कुत्तों के भौंकने की आवाजें सन्नाटे को चीर रही थी अरुण जो अभी ऐसे बैठा था जैसे अभी शाम ही हुई हो। उसकी टेबल पर कुछ कोरे कागज बिखरे पड़े थे। साथ ही शराब से आधा भरा गिलास रखा था अरुण अपनी उंगलियों में दबे पेन से सर को खुजा रहा था बीच-बीच में गिलास उठा कर घूंट भर लेता लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी वह आज कुछ लिख नहीं पा रहा था। इसी बीच अरुण के नौकर बहादुर जिसे वह अपने साथ पहाड़ों से लेकर आया था और अब उसी के साथ रहता था दबी आवाज मे कहा साहब खाना लग गया है। अरुण ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे अभी-अभी वह कहीं बाहर से आया हो और अभी रुकने का इशारा किया इस पर बहादुर विनर्म मुद्रा में साहब चार बार खाना गर्म कर चुका हूं अगर आप नहीं खाएंगे फिर ठंडा हो जाएगा इस पर अरुण चुप रहा और ये कहकर बहादुर वहां से चला गया।

फरवरी माह की आज वही तारीख जिस दिन नीलिमा अरुण से पहली बार मिली थी बहुत कोशिश करने के बाद भी वो उसको भुला नहीं पा रहा था और बीती जिंदगी के ख्यालों में खोता चला गया।

बचपन से प्राकृतिक सौंदर्य का प्रेमी को जब पहली नौकरी का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो वह बहुत खुश था। लेकिन जब पहली पोस्टिंग ही उत्तराखंड के पहाड़ों में बसा सुंदर शहर अल्मोड़ा में मिली तब उसकी खुशी का ठिकाना ही ना रहा। अरुण ने जल्द ही अपनी पैकिंग की और कंक्रीट के जंगल एवं भागदौड़ से भरी जिंदगी से भरे शहर दिल्ली को अलविदा कहकर अल्मोड़ा चला गया।

अरुण ने अल्मोड़ा में नौकरी ज्वाइन करने के साथ ही पहाड़ों की सुंदरता को निहारने की अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए समय निकालना शुरू कर दिया वह छुट्टी के दिन अक्सर कभी रानीखेत कभी बिनसर कभी कौसानी तो कभी बागेश्वर घूमने चला जाता। कार्य दिवस में भी वह साइट और ऑफिस के काम निपटा कर अल्मोड़ा में ही दूर एक सुनसान पहाड़ की चोटी पर जाकर बैठ जाता और वहां से खूबसूरत शहर को निहारता रहता।

फरवरी की नर्म धूप में एक दिन अरुण उसी चोटी पर बैठा था दोपहर हो चुकी थी तभी पीछे से किसी की आहट हुई और कुछ ही देर में एक परछाई उस पर पड़ी वह कुछ घबरा गया उसके दिल की धड़कनें तेज हो गई तब एक सुरीली आवाज ने कुछ इत्मीनान दिया जब तक उसके सामने पहाड़ी वेशभूषा में एक खूबसूरत लड़की आ चुकी थी। शहर में आप अभी नए आए हैं साहब जी अरुण हकला गया हां ___क्या नाम है आपका जी जी _____अरुण और आपका और उन्हें खुद को संयम करते हुए पूछा नीलिमा_ नीलिमा रावत ओह बहुत सुंदर नाम है आपकी तरह वह मुस्कुरा कर चली गई। अरुण उसकी सुंदरता को देखता ही रह गया। और साप्ताहिक छुट्टी का इंतजार करने लगा की एक बार फिर मुलाकात हो जाए और सप्ताह भर बाद फिर उसकी मुलाकात हो ही गई फिर यह सिलसिला चलता रहा। दोनों के दिल में कब प्यार के अंकुर फूट गए पता ही नहीं चला। एक दिन नीलिमा रोती हुई अरुण से मिली और परिवार में झगड़े की बात कहते हुए सीधे शादी की बात कर डाली

 अरुण को जैसे इस दिन का बेसब्री से इंतजार था। प्यार में पागल अरुण ने ना ही नीलिमा के परिवार के बारे में जाना और ना ही अपने माता पिता से इजाजत लेना मुनासिब समझा। ऑफिस में काम करने वाले बुजुर्ग रहमान भाई जिनकी सभी इज्ज़त करते थे और अरुण भी अपनी हर बात उनसे साझा करता था उनके लाख समझाने के बावजूद भी अरुण ने मंदिर में जाकर नीलिमा से शादी रचा ली।

समय बीतता गया अरुण और नीलिमा का उस दिन खुशी का कोई ठिकाना ना रहा जिस दिन उनके घर मे औलाद के रूप में पुत्र का जन्म हुआ। अब उनके आंगन में भी बेटे की किलकारियां गूंजने लगी थी और उनका जीवन पहले से भी ज्यादा खुशगवार हो गया था। दोनों का जीवन सुकून से गुज़र रहा था।

अल्मोड़ा में अरुण के अब कई यार दोस्त भी बन गए थे। एक दिन शाम को अरुण अपने मित्रों के साथ बैठा गपशप कर रहा था दारू के गिलास छलकाए जा रहे थे। सभी मित्र अपनी_ अपनी गुजरी बातें कर रहे थे। माहौल रंगीन था। एक ने कहा रात देर से घर पहुंचने पर खाना नहीं मिला तो दूसरा बोला रात पत्नी ने दरवाजा ही नहीं खोला तब रात संजय के घर बितानी पड़ी तब तीसरे ने कहा यार यह बातें तो रोज होती रहती हैं तीनों की बातें सुनकर अरुण मुस्कुराया और बोला मेरी शादी को दो 2 साल हो गए हैं लेकिन मैं जब भी घर पहुंचता हूं पहली ही नॉक पर दरवाजा खुल जाता है और खाना भी ऐसा गर्म मिलता है जैसे अभी_ अभी ताजा बना हो। सभी यार दोस्त ताज्जुब से अरुण की ओर देखने लगे और कहा एक बार भी ऐसा नहीं हुआ हम नहीं मानते हां_ हां यही सच है सभी मित्र अचंभित फिर उनमें से एक ने कहा आज रात तुम दरवाजा खटखटा कर खिड़की से झांकना फिर देखना यह सब क्या है ? अरुण ने उस रात न चाहते हुए भी मित्रों की बात मानी और देर रात घर गया। ठंड का मौसम था उसने देखा कि नीलिमा सामने कमरे में जो लगभग मेन गेट से बीस 20 फुट की दूरी पर था बेड पर लेटी बेटे को थपकी देकर सुला रही थी जैसे ही अरुण ने नॉक किया नीलिमा ने वहीं से हाथ बढ़ाया और दरवाजा खोल दिया इतने किवाड़ खुलते वह अंदर आया तो वह किचन में थी जब अरुण हाथ धोकर बेडरूम में पहुंचा तो गर्म खाना लगा था जबकि हाथ धोने में मुश्किल से एक 1 मिनट भी नहीं लगा होगा! यह सब देख वह थोड़ा घबरा गया फिर हिम्मत जुटाते हुए अरुण ने नीलिमा से पूछ ही लिया कौन हो तुम.? वह बोली आपकी पत्नी वह तो मैं भी जानता हूं मगर तुम हो कौन? नीलिमा भी अब समझ चुकी थी कि मेरा राज़ फाश हो चुका है। नीलिमा ने आंखों से छलकते अपने आंसुओं को रोक कर खुद को संभालते हुए कहा आपकी तरह हम भी भगवान की बनाई इस कायनात का हिस्सा हैं। अरुण ने फिर कहा लेकिन तुम हो कौन? नीलिमा के चेहरे पर अब कठोर भाव थे मैं बताना जरूरी नहीं समझती आप बस इतना जान लो कि कोई है दुनिया में जो तुमसे प्यार करता है और हमेशा करता रहेगा। इतना कहकर वह हमारे बेटे को गोद में लेकर चल पड़ी अरुण चाहते हुए भी उसको रोक नहीं पाया। आधी रात के अंधेरे में धीरे _धीरे वह घूम होती चली गई। इस बात को को गुजरे हुए बीस 20 साल हो चुके हैं मगर उसकी पायल की छम _छम की आवाज आज भी अरुण के कानों में गूंजती हैं।

अरुण का अल्मोड़ा में रहना अब मुश्किल हो चुका था।

अब अरुण अमर प्रेम की निशानी के रूप में दुनिया भर में मशहूर ताज नगरी यानी आगरा में आकर बस गया। वह यहां रहते हुए आज भी अक्सर ताजमहल का दीदार करते हुए नीलिमा के अक्स को तलाशने की नाकाम कोशिश करता है। चिड़ियों की चहचहाहट से अरुण खयालों की खुमारी से जब बेदार हुआ और खिड़की से झांक कर देखने लगा सुबह हो चुकी थी। फिर उसने अपने घर में चारों तरफ नगर घुमाई नौकर बहादुर ड्राइंग रूम के सोफे से लगकर फर्श पर बैठा खर्राटे भर रहा था। अरुण की आंखों में भी नींद की खुमारी छा चुकी थी वह चुपचाप अपने बेड पर लेट कर सो गया।


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