Er Rashid Husain

Abstract Others

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Er Rashid Husain

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सहानुभूति की सजा

सहानुभूति की सजा

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काफी पुरानी बात है हमारे दादा जी के पास एक बड़ा मकान था जिसके वो इकलौते वारिस थे बच्चे छोटे थे इसलिए रहने के लिए काफी था उसी बड़े मकान से सटे हुए हमारे दो छोटे मकान और थे जो खाली पड़े थे । एक दिन एक औरत अपने चार छोटे छोटे बच्चों के साथ रोती हुई आई और रहने के लिए जगह मांगने लगी हमारे दादा जी को तरस आ गया इसी बीच मोहल्ले के कुछ लोग भी दादा जी से सिफारिश करने लगे की ये औरत बहुत सताई हुई है मजलूम है इसको छत दे दो हमारे दादा जी ने पास पड़े खाली मकान में उसे रहने के लिए कह दिया उसने उस वक्त दादा जी का बड़ा एहसान माना और रहना शुरू कर दिया। धीरे_ धीरे वक्त गुजरता गया उसके बच्चे भी बड़े होने लगे और हमारे पिताजी और चाचा जी बड़े होते गए। रहने के लिए इतना था की कभी उस मकान को खाली करने की जरूरत ही नहीं पड़ी । हमारे पिताजी और चाचा जी अपनी पढ़ाई और काम पर ध्यान देते थे । शरीफ खानदान है इसलिए गलत संगत और गलत कामों से दूर ही रहे ।लेकिन हमारे मकान में रह रही औरत के बच्चे मोहल्ले के गुंडों के पास बैठने लगे और खुद को भी दबंग समझने लगे ।इधर हम अपने मकान में कील भी ठोकते तो औरत और उसके बच्चों जो अब बड़े हो गए थे एतराज होता ।हमने उनसे कहा हमारा मकान खाली कर दो तो उन्होंने दबंगई दिखाने की कोशिश की लेकिन हम शरीफ तो थे पर कमजोर नहीं थे । इधर में और मेरे भाई भी दुनिया में आ चुके थे और हम भी जवानी की तरफ बढ़ रहे थे ।एक दिन मेरे चाचा जी घन और हथौड़ा लेकर छत पर चढ़ गए और अपने मकान जिसे हमने उस औरत को तरस खाकर रहने के लिए दिया था उसकी छत तोड़ने लगे।

इसी बीच मोहल्ले के तथाकथित गुंडे आ गए उसके समर्थन में और कहने लगे आप ये क्या कर रहे हैं? बैठकर बात कर लीजिए हमने कहा हम अपना मकान खाली करने के लिए बहुत कह चुके हैं। अब इसके अलावा कोई हल नहीं है ।इसी बीच हमसे ईर्ष्या रखने वाले कुछ और लोग पड़ोसी जिन्हें हम अपना भाई समझते थे जो सबके साथ की बात करते थे उन्होंने भी हमारे मकान पर कब्जा जमाए गुंडों के समर्थन का एलान कर दिया ।क्योंकि हमारे काफी रिश्तेदार भाई उसी मोहल्ले में रहते थे उन्होंने हमारा साथ दिया और हम कमजोर न पड़े और फैसले के अनुसार हमें अपना ही मकान खाली करने की कीमत चुकानी पड़ी कुछ लड़ाई करके कुछ पैसे देकर ।अब मेरे पिताजी तो इस दुनिया में रहे नहीं तो में अपने चाचा जी से पूछता हूं इतिहास के हमारे दादा जी ने ऐसी हमदर्दी क्यों दिखाई थी ? तब चाचा जी बताते हैं कि पहले के लोगों में इंसानियत थी और एक दूसरे का दुख दर्द समझते थे अब ये धीरे धीरे खत्म होती जा रही है मैंने उनसे पूछा हमें क्या करना चाहिए तो उन्होंने कहा की अगर भविष्य में किसी बड़े झगड़े से खुद को और अपनी बच्चों को बचाना चाहते हो तो अपने घर के बाहर खाली पड़े चबूतरे पर भी किसी का तख्त नहीं पड़ने देना कोई कुर्सी डाल कर थोड़ी बहुत देर के लिए बैठ जाए तो ठीक है। क्योंकि कुर्सी तो आसानी से हटाई जा सकती है लेकिन तख्त को हटाना मुश्किल होता है।

अल्लाह अल्लाह खैरसल्लाह



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