Pammy Rajan

Abstract

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Pammy Rajan

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वो भागी हुई लड़की

वो भागी हुई लड़की

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जब से बुटीक से आई हूँ , बार बार उस गोरी सी लड़की का चेहरा अनायास ही आँखों के सामने आ जा रहा था। हरे रंग की सलवार कमीज पहने माथे पर दुपट्टा ओढ़े बुटीक के बाहर किसी लड़के से बात कर रही थी। साथ में एक पांच -छह साल का बच्चा भी था। 

पता नही क्यूँ, मुझे उसका चेहरा जाना-पहचाना सा लग रहा था। मै बार बार अपने दिमाग पर जोड़ डालकर उसे याद करने की कोशिश करने लगी। तभी अचानक दिमाग में एक नाम कौंधा। गोरकी! - हा हम सब उसे यही तो बुलाते थे।घर के पास वाले बस्ती में उसका बड़ा सा परिवार अपने पूरे कुनबे के साथ रहता था। वो दो बहन थी। बड़ी बहन जरूरत से ज्यादा सांवली और छोटी जरुरत से ज्यादा गोरी थी। यही वजह था कि दोनों बहनों का नाम कुछ दूसरा था।लेकिन सभी लोग उन दोनों बहनो के रंग को ही उनका नाम बना दिए थे।"सांवरी और गोरकी।"

बड़ी वाली बहन सांवरी काफी शांत और शालीन थी, वही छोटी बहन गोरकी, बिलकुल जिद्दी और ढीठ सी थी। दोनों बहन अक्सर अपनी माँ के साथ हमारे घर आया करती थी। दोनों बहन युवाव्स्था की दहलीज पर आ गई। इसी बीच बड़ी बहन की शादी तय हो गयी। छोटी बहन अपनी बहन की शादी में लाल रंग के सूट में काफी दमक रही थी। लेकिन बड़ी बहन की शादी के कुछ दिनों बाद ही अचानक ये खबर आई की छोटी बहन कही चली गयी है। घरवाले उसे कुछ दिन ढूढ़े ,फिर मन मार के अपने काम में लग गए।एकबार उसकी माँ मेरी माँ से कह रही थी- "जीजी, हम रोज कमाने वाले लोग ,उसे क्या ढूढ़े। पुलिस के पास जयेंगे तो वहाँ भी पैसा ही लगेगा। हम ये ही मान लेते है कि वो हमारी बेटी ही नहीं थी।एक ही बेटी से संतोष कर लिए है।

पिता और भाइयो ने उसे ज्यादा ढूढने की कोशिश भी न की। फिर समय पंख लगा के उड़ गया। मेरी भी शादी हुई और आज अचानक मेरी मुलाकात उससे हुई। मै सोची माँ को फोन कर उसके बारे में बताऊँ। पर फिर सोची पहले खुद ही एक बार उससे बात तो कर लूं।

फिर जिस दिन अपना ड्रेस लेने मै बुटीक गई। वो उस दिन भी मुझे दिख गई। पहले तो वो मुझसे नजरे चुरा कर निकल रही थी। लेकिन मैंने जब आवाज दी तो वो पास आ गई। और बोली- दीदी आप मुझे पहचान लिया। 

मै मुस्कुराते हुए बोली- " क्यूं, तुमने नही पहचाना क्या मुझे।"

गोरकी थोड़ा झिझकते हुए बोली- "पहचान तो आपको मै उसी दिन गयी थी। पर बोली नही, क्यूंकि पता न आप मुझे पहचानते या नहीं।"

मै बात का रुख बदलते हुए बोली- "कहा रह रही हो ?शादी कर ली क्या?"

गोरकी ने एक लड़के (जिससे उस दिन बाते कर रही थी)की तरफ इशारा करते हुए कहा - "वो हमारे शौहर है दीदी।फिर उस छोटे से बच्चे का हाथ पकड़ कर मुझे अपने साथ आने को बोल चलने लगी। मै भी यंत्रवत सी उसके पीछे पीछे आने लगी। कुछ तो उसके बारे में जानने की इच्छा और कुछ उसे यु मना करना ठीक न लगा।

एक दो गालियां पार करने के बाद एक पक्के घर के एक कमरे में ले गई। वो एक कमरा क्या था। उसका पूरा घर ही था।साइड में टेबल पर गैस रखा था। और नीचे ऊपर बर्तन और किचन का पूरा सामान।कमरे में एक चौकी थी, जिसपर अभी तो कपड़ो का ढेर रखा था। उसके नीचे भी सामानों का ढेर था। बच्चा घर पहुचते ही माँ का से हाथ छुरा कर पास वाली गली में खेलने भाग गया। अब घर में सिर्फ हम और वो ही थे। गोरकी घर की इकलौती कुर्सी पर मुझे बैठाते हुए बोली- "दीदी मेरा ये छोटा सा संसार आपको कैसा लगा।"

मै जो अभी तक पूरे घर का मुआयना कर रही थी। थोड़ा चौकते हुए गोरकी की तरफ देखी। फिर उससे बोली- " तेरा पति मुस्लिम है क्या?तूने मुस्लिम से शादी कर ली है।" 

वो थोड़ा नजर चुराते हुए बोली- "हा दीदी। इन्होंने ही मुझे घर से भागने में मदद की। फिर कुछ दिन बाद हमने निकाह कर लिया। 

मै थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली- तुम घर से भागी क्यूँ? ये तुमने काफी गलत किया। तुम्हे अपने घर वालो की याद नही आयी। उनकी इज्जत का थोड़ा भी ख्याल न आया। 

उहह ..इज्जत का ख्याल- थोड़ी नफरत से वो मुस्कुराई तो मैं थोड़ी चौक गई।लेकिन वो बोलते गई, शायद वो अपने दिल के अंगार आज निकलने को तैयार बैठी थी। 

"दीदी, अगर इतना ही इज्जत का ख्याल था तो मेरे घर वाले मुझे क्यूँ ना ढूढ़े? हम जिस समाज में रहते है वो सिर्फ लड़कियों को ही गलत मानता है। भले ही गलती उसकी न हो। दीदी आपसे तो हमारे घर की माली हालत छिपी न थी।लेकिन फिर भी दीदी की शादी में पापा और मम्मी ने अपने हैसियत से बढ़कर दीदी को दिया-लिया। दीदी भी खुश थी ,अपनी शादी से। लेकिन शादी के छः महीनों बाद दीदी को बच्चा न हो रहा था तो उनके सासुराल वाले उन्हें तंग करने लगे।बच्चे के बिना उनकी जिंदगी को सासरे वाले नर्क बनाने लगे।एक बार पापा और माँ ने जीजाजी को समझाने की कोशिश भी की तो उनका जबाब सुन सब कोई को सांप सूंघ गया।- वो शायद बोलते बोलते थक गई थी,पास में रखे गिलास से पानी पीने लगी। 

क्या बोल था तुम्हारे जीजा ने ? - मै उसके चेहरे पर नजर गराते हुए बोली।

आपलोगो अपनी छोटी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दीजिए। तभी आपकी बड़ी बेटी को भी मै रखूंगा।वरना नही।- बोलते हुए उसने मेरी ओर देखा।

सच कहती हूँ दीदी, मैने अपने जीजा से कभी कोई गलत बात भी न की थी। मैं तो अपनी बहन का घर उजाड़ने का सोच भी न सकती थी। अपनी बहन की शादी खतरे में देख मेरा दिल भी दुःख रहा था। इच्छा हो रही थी की अपनी शक्ल को आग लगा दूं।लेकिन किसी ने मेरे दिल की बात न समझी। बहन भी गुस्से में मुझे भला बुरा कहने लगी। पापा और भाइयो ने भी पहले तो मेरी खूब पिटाई की। फिर बाद में वो भी दीदी को समझने लगे।वो इस रिश्ते के लिए सहमति दे दे।क्यूंकि जीजा फ्री में मुझसे शादी जो करना चाहता था।

शायद वो लोग मेरा शादी का दिन भी पक्का कर दिए। लेकिन मैं शाहजान को पहले से जानती थी। मै उसके दुकान का कपड़ा लाकर सिलती थी। मैंने शाहजान से जब ये बाते कही तो उसने मुझे घर से भाग जाने को कहा। शादी करने का विचार तो न था हमारा। लेकिन शाहजान की बीबी शादी के दो सालो बाद ही रिजवान को जन्म देते हुए गुजर गई थी।शाहजान रिजवान की परवरिश अकेले कर रहे थे। जब रिजवान ने मुझे ही अपनी अम्मी समझ लिया। कुछ दिनों तक मै अपने घर वालो इंतजार की ,शायद वो आ जाते तो मै अपने जीजा से शादी शादी न करने की शर्त पर उनके साथ वापस भी जा सकती थी। लेकिन वो तो मुझे भुला ही दिए। कुछ दिनों के बाद शाहजान ने मुझसे निकाह कर लिया। अब तो मै भी उसके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ।

वो बच्चा तुम्हारा बेटा नही है- मै थोड़ा आश्चर्य से पूछी।

तभी रिजवान आ गया। और गोरकी को पकड़ लिया।- अम्मी मै तुम्हारा ही बेटा हूँ।

गोरकी मुझे चुप रहने का इशारा की और रिजवान को लाड़ करने लगी। थोड़ी देर बाद वो बोली।- दीदी ,अब आप ही बताओ। ज्यादा इज्जत का काम क्या है? बहन का बसा हुआ घर तोड़ना या किसी का उजड़ा हुआ घर सम्हालना। शाहजान ने कभी मेरे साथ कोई भी जबर्दस्ती न की। शायद यही वजह है कि मै इनकी ओर खिंची चली आई। -बोलते हुए उसकी आखो में आंसू आ गए। 

मै उससे पूछी- तू अब भी घर नही जाना चाहती?

शुरुआत में तो मुझे घर की काफी याद आती थी।कई बार फोन भी की। लेकिन वो लोग आवाज सुनकर ही काट देते थे। एक बार पता लगवाया तो पता चला की दीदी को भी बच्चा हो गया। जीजा भी अब शांत हो गया। लेकिन अब मै उनलोगों को नही देखना चाहती।क्यूंकि जीजा तो गैर था।पर मेरे अपनों ने भी मुझे उस वक़्त न समझा था।

दीदी आपसे भी विनती है, मेरी इस दुनिया के बारे में उन्हें नही बताइयेगा।जानती हूँ भागी हुई लड़की समाज का कलंक होती है, लेकिन मैं तो खुद को कलंक से बचाने के लिए भागी थी।- कहते हुए वो मेरे सामने हाथ जोड़ ली। मै उसके हाथ को अपने हाथों में ली और थपथपाते हुए बाहर आ गयी। शायद मेरी उस थपथपाहट में सबकुछ था। जो उसे चाहिए थी। 


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